राष्ट्रीय
स्वतंत्रता सेनानी ही नही वरन आधुनिक भारत के चुनिंदा निर्माताओं में से एक थे गोविन्द बल्लभ पंत
स्वतंत्रता सेनानी ही नही वरन आधुनिक भारत के चुनिंदा निर्माताओं में से एक थे गोविन्द बल्लभ पंत
-वर्ष 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के कारण पंत को किया था गिरफ्तार
सीएन, नैनीताल। पंडित गोविन्द बल्लभ पंत प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, वरिष्ठ भारतीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। गोविंद बल्लभ पंत के विद्यार्थी जीवन में महात्मा गांधी और अन्य लोगों के कार्यों का बड़ा प्रभाव पड़ा। कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर दिसंबर 1921 में उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। 9 अगस्त 1925 में हुए काकोरी कांड में पकड़े गए दोषियों के समर्थन में पंत जी ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को फांसी से बचाने के लिए मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर वायसराय को एक पत्र भी लिखा था लेकिन उसे गांधी जी का समर्थन प्राप्त ना होने के कारण वे अपने लक्ष्य में असफल रहे। साल 1930 में ब्रिटिशों के अन्याय पूर्ण नमक कानून को तोड़ने के लिए आयोजित किए गए दांडी मार्च में हिस्सा लेकर पंत जी ने आंदोलन को गति प्रदान की थी। जिसके बाद उन्हें और कई आंदोलनकारियों को कैद कर लिया गया था। उसी दरमियान वे नैनीताल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए स्वराजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुने गए। उम्मीदवार के पद पर रहते हुए उन्होंने कई पक्षपात और अन्याय पूर्ण प्रचलित प्रथाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से कार्य किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच हुए वैचारिक मतभेदों को दूर करने के लिए भी पंत जी ने बहुत प्रयास किया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के कारण गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार कर लिया गया था। इनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1954 तक रहा। बाद में ये भारत के गृहमंत्री भी 1955-1961 बने। भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृह मंत्रित्व काल में आरम्भ किया गया था। गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर 1887 को अल्मोड़ा जिले के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित गाँव खूंट में महाराष्ट्रीय मूल के एक कऱ्हाड़े ब्राह्मण कुटुंब में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने की। 1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित साहित्य और राजनीतिक विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ.साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। 1907 में बीए और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से लम्सडेन अवार्ड दिया गया। दिसम्बर 1921 में वे गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये। 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमे की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी.जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य भी थे। 1927 में राम प्रसाद व उनके तीन अन्य साथियों को फांसी के फंदे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके। 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्वसम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतंत्र भारत के नव नामित राज्य के भी वे 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्यमंत्री रहे। 7 मई 1961 को हृदयाघात से जूझते हुए पंत जी की मृत्यु हो गयी। उस समय वे भारत सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री थे। उनके निधन के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी बने।