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प्रदीप का दौड़ना.सवाल गर्व का नहीं शर्म का है…

प्रदीप का दौड़ना.सवाल गर्व का नहीं शर्म का है…
पहाड़ ने दौड़ाया, पहाड़ दौड़ा, पहाड़ ने देखा और पहाड़ ने गर्व किया
सीएन, नैनीताल।
पिछले दो दिनों से पहाड़ ट्विटर से लेकर फेसबुक और खबरों में छाया हुआ है। पहाड़ का एक लड़का नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा है और हमारा समाज गर्व कर रहा है। कितने गर्व की बात है न कि पहाड़ ने दौड़ाया, पहाड़ दौड़ा, पहाड़ ने देखा और पहाड़ ने गर्व किया। दो दिनों से हमारा समाज उस लड़के की लगन, परिश्रम, ज़ज्बे, साहस, पर बिना आईना देखे गर्व से भर गया है। बड़े-बड़े संस्थानों में बैठे मठाधीशो, नेताओं के साथ गलबहियां करने वाले पहाड़ के गर्बिले लोगो, अगर तुम्हारे काँच के मकानों में कहीं आईना हो तो उसके सामने खड़े होकर अपना चेहरा देखते हुए सोचना कि अल्मोड़ा का वह लड़का सेना में भर्ती होने के लिए सुबह 8 बजे से रात के 11 बजे तक यानी 15 घण्टे मैक्डोनाल्ड में काम करने के बाद 10 किलोमीटर नोएडा की कोल्तार की सड़कों पर दौड़ता है तो वह हमारे लिए कितने गर्व की बात है? गर्वोक्ति से भरे लोगो उस वीडियो को देखते हुए आपने यह सोचा कि 19 साल की उम्र में वह लड़का पहाड़ से नोएडा मैक्डोनाल्ड में काम करने के लिए क्यों पहुँचा होगा? किन परिस्थितियों के कारण पहुँचा होगा? पढ़ने और गाँवों के मैदानों में कूदने-दौड़ने की उम्र में वह लड़का 15 घण्टे काम करने के बाद कोल्तार की सड़कों पर 10 किलोमीटर दौड़ने पर क्यों मजबूर है? उस दौड़ते हुए लड़के को देखते हुए उसकी ईजा का चेहरा सामने आया कि नहीं? हर रोज नेताओं के साथ फोटो खिंचाने पर, मंत्रणा, विमर्श, शिष्टाचार, गहन मुद्दों पर चर्चा जैसे विशेषणों से ओतप्रोत लोगो, क्या कभी अल्मोड़ा के सांसद, विधायक, और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से पूछ पाओगे कि पहाड़ की जवानी नोएडा की सड़कों पर क्यों दौड़ रही है? क्यों 15 घण्टे उसे काम करना पड़ रहा है? घर का पेट पालने की चिंता में बचपन-जवानी को छोड़कर 15 घंटे काम करने के बाद सड़कों पर दौड़ने को मजबूर प्रदीप सिर्फ एक नाम या संख्या नहीं है-वह समूह और बहुवचन है। दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, मेरठ, लुधियाना, आगरा, देहरादून, मुम्बई आदि शहरों की सड़कों पर आपको हजारों प्रदीप मिल जाएंगे। कभी सोचा इतने प्रदीप क्यों दौड़ रहे होंगे? सवाल प्रदीप की मेहनत और सपनों का नहीं है बल्कि ऐसी परिस्थितियां को जन्म देने वाली व्यवस्था का है जिसने उसे मजबूर किया। सवाल गर्व का नहीं शर्म का है। इस बार जब मुख्यमंत्री जी को गुलदस्ता देने जाओगे तो उनसे पूछ लेना कि पहाड़ का वह बेटा पढ़ने और गाँवों के खेतों में दौड़ने की उम्र में नोएडा की सड़कों पर क्यों दौड़ रहा है?
अदम गोंडवी साहब ने लिखा है-
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है।
हमारे गाँव का ‘गोबर’ तुम्हारे ‘लखनऊ’ में है
जवाबी ख़त में लिखना, किस मोहल्ले का निवासी है।

‘गोबर’ सिर्फ नाम नहीं है और ‘लखनऊ’ भी सिर्फ लखनऊ नहीं है। आज गोबर, प्रकाश, प्रदीप, मनोहर, मोहन, श्याम , कैलाश, आनंद, गणेश कई नामों के साथ मौजूद है।
और अब कब तक पहाड़ महानगरों की सड़कों में दौड़ते रहेगा…..

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