Connect with us

राष्ट्रीय

बिजनौर के जिला कोषागार, जहां गांधी परिवार की रखी है एक बेशकीमती अमानत

बिजनौर के जिला कोषागार, जहां गांधी परिवार की रखी है एक अमानत
बबीता जैन, बिजनौर।
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले का जिला कोषागार, जहां गांधी परिवार की  रखी है एक अमानत। वह भी तकरीबन 50 साल से यानी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वक़्त से। सरकारी अमले को इंतज़ार है कि गांधी परिवार अपने इस ख़ज़ाने को ले जाने के लिए हां कर दे। लेकिन, उधर से कभी कोई दावेदारी की ही नहीं गई। अब ज़िला प्रशासन करे भी तो क्या। गांधी परिवार का यह ख़ज़ाना, जिसे अमानत के तौर पर बिजनौर का सरकारी अमला सहेज रहा है, वह उस तक कैसे पहुंचा, इसकी कहानी जानने के लिए आपको चलना होगा 1972 के दौर में। प्रधानमंत्री के तौर पर यह इंदिरा का दूसरा कार्यकाल था। कालागढ़ बांध, जो कि अब उत्तराखंड में है और इसे रामगंगा बांध के नाम से जाना जाता है, उसके काम का जायजा लेने वह बिजनौर पहुंची थीं। कालागढ़ बांध आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेहद महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक था, जिसकी शुरुआत 1961 में हुई थी। यह उस वक़्त एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध था। इसकी ज़रूरत इस लिहाज से थी, क्योंकि यह पहाड़ के तेज़ बहाव की नदी के प्रभाव को समतली इलाके़ में नियंत्रित करने में मददगार होता। इसके अलावा बांध की वजह से ऊर्जा का भी लाभ जनता को मिलता। काम में देरी होता देख इंदिरा बिजनौर के सीमावर्ती क्षेत्र में पहुंची थीं। परियोजना का एक हिस्सा बिजनौर ज़िले की सीमा के पास है। यह वो दौर था, जब इंदिरा गांधी की लोकप्रियता बहुत थी। उनको अपने बीच पाकर बांध के काम में जुटे कर्मचारी भी गदगद थे और फिर आम जनता का कहना ही क्या। बेहद उत्साहित। उन्हें एक झलक देखने भर की बेताबी लोगों में अलग ही थी। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का भविष्य में होने वाला लाभ भी उनके उत्साह को बढ़ा रहा था। देखते ही देखते उन्हें चांदियों से तौलने की योजना तैयार हो गई। जनता के अगाध प्रेम को देखते हुए इंदिरा भी ना नहीं कह सकीं।
आननफानन एक बड़े तराजू का इंतज़ाम हुआ। इंदिरा उसके एक पलड़े पर बैठीं और दूसरे पलड़े पर चांदी और दूसरे आभूषण रखे जाने लगे। चांदी की कुछ ईंटें भी थीं। ज़िले के कांग्रेस कार्यकर्ता भी दान कर रहे थे। तब इंदिरा का वजन तकरीबन 64 किलो था, लेकिन जनता कहां रुकने को तैयार थी। दूसरे पलड़े में चांदी के जवाहरात रखे जाने जारी थे। दूसरे पलड़े पर जब भार इतना बढ़ गया कि वह पलड़ा, जिसमें इंदिरा बैठी थीं, वह ज़मीन से काफी ऊपर उठ गया, तब ही जाकर लोगों ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया। बताते हैं कि दूसरे पलड़े के चांदी की तौल तब 73 किलो के करीब थी। इस अगाध प्रेम से अभिभूत इंदिरा ने जनता का दिल से आभार जताया, लेकिन इस ख़ज़ाने को वह अपने साथ नहीं ले गईं। इंदिरा गांधी की अमानत मानते हुए ज़िला प्रशासन ने सीलबंद संदूकों में ख़ज़ाना बिजनौर के कोषागार में जमा करवा दिया। इंदिरा गांधी ने अपने जीते जी ना कभी इस ख़ज़ाने को अपने पास भेजने के लिए कहा और ना ही उन्होंने इसे सरकारी ख़ज़ाने में दान कर देने की बात कही। उनके निधन के बाद भी गांधी परिवार के किसी शख़्स ने इस ख़ज़ाने पर अपना दावा पेश नहीं किया। अब ऐसे में यह ख़ज़ाना अब तक सरकारी तंत्र सहेज रहा है। उसे इंतज़ार है कि गांधी परिवार से ही अब कोई दोवदारी करे ताकि इसकी चौकीदारी से वह मुक्त हो सके। बिजनौर में मौजूदा समय में तैनात मुख्य कोषागार अधिकारी सूरज सिंह कहते हैं कि यह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निजी संपत्ति है। इसे उनके परिवार के सदस्यों को ही दिया जा सकता है। लेकिन, गांधी परिवार ने इतने साल में कभी इस पर अपना मालिकाना हक नहीं जताया। इस अमानत का क्या किया जाए, यह ज़िला स्तर पर तय भी नहीं हो सकता। सरकार कोई स्पष्ट निर्देश दे, तब ही कोई रास्ता निकल सकता है। इस ख़ज़ाने को निजी संपत्ति करार देने के पीछे जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री या कोई बड़ा ओहदेदार जब कभी किसी जगह जाता है, तो उसे काफी कुछ भेंट किया जाता है। यह भेंट चूंकि व्यक्तिगत होती है, लिहाजा इसे सरकार की संपत्ति नहीं माना जा सकता। ऐसे में यह तौल भी सरकारी नहीं हो सकती। एक बार बिजनौर के ज़िला कोषागार ने रिजर्व बैंक को इस संबंध में पत्र भी लिखा कि इस ख़ज़ाने को आरबीआई को ही सौंप दिया जाए। लेकिन, तब रिजर्व बैंक ने इसे निजी संपत्ति बताते हुए लेने से इनकार कर दिया। जब से यह ख़ज़ाना सीलबंद किया गया, तब से इन संदूकों को खोला नहीं गया है। हर साल संदूकों की जांच होती है। सिर्फ संदूकों की गिनती की जाती है। नया नंबर अलॉट होता है और फिर इंतज़ार होता है अगले साल तक। इसकी वजह है कि किसी की भी निजी संपत्ति एक साल से ज़्यादा ज़िला कोषागार में नहीं रखी जा सकती। चूंकि संपत्ति के दावेदार आ नहीं रहे और सरकार से निर्देश मिल नहीं रहा, इसलिए हर साल नया नंबर अलॉट हो जाता है। इन संदूकों को ना खोलने के पीछे की एक बड़ी वजह जिम्मेदारी है। इनमें क्या है, इसकी जिम्मेदारी सील बंद करने वाले तत्कालीन अधिकारियों की है। कोषागार वह जगह है, जहां क़ीमती सामान रखने की व्यवस्था होती है। क़ीमती सामान रखने और उसे यहां से निकालने के लिए पूरी सरकारी प्रक्रिया अपनाई जाती है। जैसे कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद में खोदाई के दौरान सोने के कुछ सिक्के मिले थे। इन्हें कोषागार में रखवाया गया। बाद में सरकार ने आदेश किया और इसे लखनऊ भेज दिया गया। आमतौर पर खोदाई में मिली ऐतिहासिक सामग्री या चुनाव के दौरान जब्त की गई संपत्ति कोषागार में रखवा दी जाती है। जब संपत्ति का मालिक उससे संबंधित कागजात दिखा देता है, तो जांच के बाद उसे सामान लौटा दिया जाता है। बिजनौर के मामले में दो ही सूरत हो सकती है, या तो सरकार अपने आदेश से इसे सरकारी संपदा मान ले या गांधी परिवार इसपर हक जताकर ले ले। इंदिरा गांधी को चांदी या आभूषणों में तौले जाने का यह पहला प्रसंग नहीं है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने सारे जेवर दान कर दिए थे। उनके इस दान का असर हुआ कि जनता उनकी आवभगत में अपना सब दान करने को तैयार हो जाती। साल 1965 में वह महोबा ज़िले के मुडारी गांव पहुंची थीं। तब भी उन्होंने सेना के लिए मदद मांगी थी। जनता ने उन्हें तब भी जेवरों में तौल दिया था। बाद में सभी अभूषण राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में जमा करवाए गए थे।

More in राष्ट्रीय

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING