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भारत के राष्ट्रपति के पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो प्रधानमंत्री के पास नहीं

भारत के राष्ट्रपति के पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो प्रधानमंत्री के पास नहीं
सीएन, नईदिल्ली।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू को चुन लिया गया है। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने वोटों के बड़े अंतर से विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हरा दिया। जहां द्रौपदी मुर्मू ने 6,76,803 वोट हासिल किए तो वहीं विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 3,80,177 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। कई बड़े नेताओं ने इस बात पर खुशी भी जाहिर की है कि पहली बार कोई आदिवासी महिला देश के सबसे ऊंचे पर आसीन हुई है।
राष्ट्रपति के पास होती हैं ये शक्तियां
देश के प्रधानमंत्री का न्यायिक व्यवस्था में कोई दखल नहीं होता है, लेकिन भारत के राष्ट्रपति पास ऐसी शक्ति होती हैं, जिसका इस्तेमाल करके वो कोर्ट के द्वारा दी गई फांसी की सजा को माफ कर सकते हैं। ऐसी शक्ति प्रधानमंत्री के पास नहीं होती है। इसके अलावा देश में इमरजेंसी घोषित करने का अधिकार भी देश के राष्ट्रपति के पास होता है। प्रधानमंत्री खुद इसका आदेश नहीं दे सकते हैं। हालांकि संविधान की धारा 74 (1) के तहत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति की सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल होगा और उसके प्रमुख प्रधानमंत्री होंगे। उनकी सलाह पर ही राष्ट्रपति तमाम आदेश देते हैं।
बड़े अंतर से द्रौपदी मुर्मू को मिली जीत
भारत के 15 वें राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू को चुन लिया गया है। एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को 2,824 प्रथम वरीयता मत मिले, जिनका मूल्य 6,76,803 था. वहीं, संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 1,877 वोट मिले, जिनका मूल्य 3,80,177 था।द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में 64 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए।
आजादी के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू स्वतंत्रता के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी। इसके अलावा वो अब तक की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति होंगी। वह दूसरी महिला हैं जो देश की राष्ट्रपति बनी हैं। द्रौपदी मुर्मू 25 जुलाई को पद और गोपनीयता की शपथ लेंगी।
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने के मायने
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना कई मायनों में अहम है। इसके राजनीतिक मायने भी हैं और इसके सामाजिक मायने भी हैं। पहले आपको इसके राजनीतिक मायने बताते हैं। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं। यानी उनके राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समुदाय में बीजेपी की स्वीकार्यता और बढ़ेगी। और इसका असर चुनावों में भी खास तौर पर दिखेगा। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधान सभा के चुनाव हैं, जहां आदिवासी समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। गुजरात की कुल आबादी में 14.8 प्रतिशत लोग आदिवासी समुदाय के हैं जबकि हिमाचल में 5.71 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। इसलिए राष्ट्रपति चुनाव का असर इन राज्यों के विधान सभा चुनावों में साफ दिख सकता है और बात सिर्फ़ इन दो राज्यों की नहीं है। अगले साल यानी वर्ष 2023 में 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं। इनमें मेघालय में 86.15, नागालैंड में 86.5, त्रिपुरा में 31.8, कर्नाटक में 7, छत्तीसगढ़ में 30.6, मध्य प्रदेश में 21.1, मिज़ोरम में 94.4, राजस्थान में 13.5 और तेलंगाना में 9.3 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। यानी अगले साल जिन 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं, उनमें से 6 राज्य ऐसे हैं, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के मायने भी बड़े प्रासंगिक हैं। दरअसल पीएम मोदी के अंत्योदय मिशन की देशभर में चर्चा है। अंत्योदय का मतलब होता है कि देश की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़ कर उसका समुचित विकास करना है। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू जो आदिवासी समुदाय से आती हैं उनके प्रेसिडेंट बनने के बाद इस समाज के कमज़ोर वर्ग का भरोसा मोदी सरकार पर बढ़ेगा। यानी केंद्र सरकार के प्रति लोगों की उम्मीदें बढ़ेंगी।

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