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आज पूरे भारत के लोगों द्वारा मनाया जायेगा 77 वां स्वतंत्रता दिवस

आज पूरे भारत के लोगों द्वारा मनाया जायेगा 77 वां स्वतंत्रता दिवस
 सीएन, नैनीताल।
इस साल 2023 में भारत में 77वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा। 15 अगस्त 1947 को भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था।
आजादी का अमृत मोहत्सव समारोह के श्रृंखला में, स्वतंत्रता दिवस 2023 की थीम “राष्ट्र पहले, हमेशा पहले” होगी। इस प्रयास के हिस्से के रूप में, सरकार विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं को चलाने के लिए प्रतिबद्ध है जो देश के भीतर मौजूद विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करेगी। अभियान का उद्देश्य यह है कि अपनी गतिविधियों का समन्वय करके और भारत और दुनिया भर के लोगों तक पहुंच कर, वे इस जन आंदोलन को और भी अधिक बढ़ावा दे सकें। इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस अमृत महोत्सव की 75-सप्ताह की उलटी गिनती के पूरा होने का भी प्रतीक होगा, जो 12 मार्च, 2021 को शुरू हुई और इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस पर समाप्त होगी।
 77 वां स्वतंत्रता दिवस मेरी माटी, मेरा देश नामक एक विशेष कार्यक्रम के साथ मनाएगा। यह अभियान देश के लिए शहीद हुए वीर जवानों को श्रद्धांजलि देगा। यह 9 अगस्त से 30 अगस्त तक होगा और इसमें राष्ट्रीय, राज्य, गांव और स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम शामिल होंगे। अभियान के हिस्से के रूप में, एक “अमृत कलश यात्रा” होगी, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से मिट्टी दिल्ली लाई जाएगी और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के पास “अमृत वाटिका” बनाने के लिए उपयोग की जाएगी। यह ‘अमृत वाटिका’ ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का शानदार प्रतिनिधित्व भी करेगी। इस परियोजना में स्वतंत्रता सेनानियों और सुरक्षा बलों को समर्पित स्मारक पट्टिकाओं की स्थापना के साथ-साथ पंच प्राण प्रतिज्ञा, वसुधा वंदन, वीरों का वंदन आदि जैसी पहल शामिल होंगी जो हमारे नायकों के साहसी बलिदानों को श्रद्धांजलि देती हैं। अभियान में छात्रों के बीच देशभक्ति और देश के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने के लिए पेड़ लगाना, नारे लिखना और स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करना जैसी गतिविधियाँ भी शामिल होंगी। भारत में राष्ट्रीय अवकाश के रुप में स्वतंत्रता दिवस को मनाया जाता है। इसे हर साल प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में पूरे उत्सुकता से देखा जाता है। स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले की शाम को “राष्ट्र के नाम संबोधन” में हर साल भारत के राष्ट्रपति भाषण देते है। 15 अगस्त को देश की राजधानी में पूरे जुनून के साथ इसे मनाया जाता है, जहां दिल्ली के लाल किले पर भारत के प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं। ध्वजारोहण के बाद, राष्ट्रगान होता है, 21 तोपों की सलामी दी जाती है तथा तिरंगे और महान पर्व को सम्मान दिया जाता है। अलग-अलग राज्य में विभिन्न सांस्कृतिक परंपरा से स्वतंत्रता दिवस का उत्सव मनाया जाता है। जहां हर राज्य के मुख्यमंत्री राष्ट्रीय झंडे को फहराते हैं और प्रतिभागियों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमोंके साथनभ मंडल की शोभा और बढ़ा जाती है।
स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास
भारत को अंग्रेजी शासन से जिस योजना के अधीन आजादी मिली थी उसे लार्ड माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है। उस समय भारत में लार्ड माउंटबेटन वाइसरॉय के पद पर था। ब्रिटेन की संसद के द्वारा नियुक्त वाइसरॉय ही उस समय भारत का प्रधान शासक कहलाता था उसी का शासन पुरे देश में चलता था। दरअसल, भारत को आजाद करना अंग्रेजो की मज़बूरी बन गई थी। इसके अनेक कारण थे। जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन सहित कई विकसित देशो की अर्थव्यवस्था का तहस नहस होना, अमेरिका का सुपर पॉवर बनना, ब्रिटेन का आर्थिक रूप से कमजोर होना, भारत में आजादी के लिए आंदोलनकारियों द्वारा विदेशी सत्ता का हर ओर घोर करना, सुभाष चंद्र बोस के द्वारा संघटित शक्ति से अंग्रेजो पर धावा बोलना, अंग्रेजों को अब भारत से अधिक आर्थिक लाभ का न होना और भारत की सभी जनमानस के द्वारा अंग्रेजी सत्ता का हर मोर्चे पर हिंसक विरोध करना मुख्य कारण कहे जा सकते है। दूसरी ओर ब्रिटेन अब इतना शक्तिशाली नहीं रह गया था कि अब वो भारत जैसे बड़े देश पर उतनी दूर से आकर शासन चला सकें। परिणामतः ब्रिटेन की संसद ने नवनियुक्त वायसरॉय लार्डमाउंबेटन के लिए एक आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि 30 जून, 1948 को भारत के समक्ष सत्ता हस्तांतरण की घोषण कर दें। इसलिए अब यह तय हो गया था कि 1948 के मध्य तक भारत आजाद हो जाएगा। लेकिन उस समय जिन्ना के नेतृत्व में हो रहे अलग मुस्लिम देश पाकिस्तान बनाने के कारण पुरे देश में मुस्लिम के द्वारा बड़े पैमाने पर दंगे किये जा रहे थे। वे हिंसक आन्दोलन कर रहे थे, जिसमें वे हिन्दुओ को लगातार निशाना बना रहे थे। देश में हर ओर अशांति ही अशांति थी। ईधर अंग्रेजी सरकार इन आंदोलन से अपने आपको दूर रखे हुए थी। उन्हें भारत के विभाजन में न तो कोई आपत्ति थी और न ही खुली समर्थन। क्योकि अब अंग्रेजी सरकार को भारत में शासन चलाने में  अधिक रूचि नहीं रह गई थी। परिणामतः लार्डमाउंटबेटन ने तय समय से पहले ही भारत को आजाद करने की घोषणा कर दी। 15 अगस्त 1947 से पहले भारत के गुलामी के वो दिन
भारत 15 अगस्त, 1947 से पहले अंग्रेजों के हाथों गुलाम था और देश की शासन व्यवस्था का सारा बागडोर अंग्रेजो के द्वारा चलाया जा रहा था। लेकिन देश के महान सपूत व आजादी के दीवाने भी कब तक पीछे रहने वाले थे। वे भी अपनी जान परिवार की परवाह किये ही लगातार अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। देश में आजादी के लिए लगातार आंदोलन हो रहे थे। उधर अंग्रेज अपनी क्रूरतापूर्ण दमनकारी नीतियों से उन्हें दबाने में लगे थे। मूली गाजर की तरह अंग्रेज आंदोलनकारियों की हत्या कर रहे थे। उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी जा रही थी। उन्ही यातनाओ में, जिसको हम किसी मानव को दी जाने वाली यातनाओं की पराकाष्ठा भी कह सकते है, वह था – ‘काला पानी की सजा’। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों पर लगातार कहर ढाये जा रही थी। अंग्रेजी सरकार अपने इसी घृणित उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारत के महान वीर सपूतो को काला पानी की सजा दिया करती थी। अंग्रेजो ने भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर सेल्युलर जेल बनाया था, इसी सेल्युलर जेल को काला पानी के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर कैदियों को एक से बढ़कर एक यातनाएं दी जाती थी। देश के महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर भी वहां की सजा काट चुके थे। वास्तव में, वो सेल्युलर जेल एक ऐसा जेल था, जो कैदी को हर पल मौत से भी बढ़कर यातना देता था। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रजो सरकार ने लाखो भारतीय आंदोलनकारियों को फांसी दे दी। अनेको को बिना किसी न्याय प्रक्रिया के ही फांसी दे दी गई। वैसे कानून भी उसी का था, अदालत भी उसी की थी और शासन की बागडोर भी उसी का था। इसलिए वो जो भी करता, वही कानून होता था। अनेको भारतीय आंदोलनकारियों को तोपों के मुँह पर बांधकर उड़ा दिया गया और कई ऐसे थे जिन्हे तिल तिल कर मरने के लिए भेज दिया गया था, जो काला पानी के नाम से जाना जाता था।

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