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मणिपुर में हिंसा : जल रही है सैंकड़ों साल पुराने आपसी सद्भाव की नींव, क्या है विवाद

मणिपुर में हिंसा : जल रही है सैंकड़ों साल पुराने आपसी सद्भाव की नींव, क्या है विवाद
सीएन, नईदिल्ली।
मणिपुर जल रहा है. जल रही है, उसकी सैंकड़ों साल पुराने आपसी सद्भाव की नींव। जल रही है अलग-अलग समुदायों के बीच हँसी-ख़ुशी साथ रहने की डोर भी। सच ये है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा भड़के हुए डेढ़ महीने से ज़्यादा हो चुका है लेकिन हालात वैसे ही तनावपूर्ण बने हुए हैं। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी इस हिंसा में 142 लोगों की मौत, क़रीब 60,000 लोग बेघर हो गये हैं। हिंसा का एक ऐसा चक्र जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। मणिपुर में मई के महीने में शुरू हुई जातीय हिंसा दो महीने बाद भी जारी है। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता है जब किसी न किसी इलाक़े से हिंसक झड़पों की ख़बर न आए। राज्य के मेतेई और कुकी समुदायों के बीच संघर्ष उफ़ान पर है और इस संकट को ख़त्म करने में हो रही देरी से लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। लेकिन हिंसा थम नहीं रही है और स्थानीय लोगों का सब्र ख़त्म सा हो रहा है। मणिपुर में हिंसा क्यों नहीं रोक पा रही है मोदी सरकार। मणिपुर की दो महिलाओं को भीड़ द्वारा कैमरे के सामने निर्वस्त्र घुमाने का वीडियो वायरल हो गया है। इस घटना के सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है। किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में संज्ञान लिया और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसी घटनाओं को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो हम करेंगे। अब जब मणिपुर में हो रही हिंसा के वीभत्स रूप सामने आ रहे हैं। ऐसे में जानिए कि आखिर राज्य में हिंसा हो क्यों रही है? क्यों मैतेई और नगा कुकी समुदाय के बीच हिंसा की आग भयावह हो गई है और दोनों समुदायों के संबंधों में गहरी खाई बन गई है? दोनों समुदाय की आबादी और राज्य की भौगोलिक संरचना व ताजा हिंसा के बीच क्या संबंध है? मणिपुर में मैतेई बहुसंख्यक हैं लेकिन ये राज्य के करीब 10 फीसदी हिस्से में रहते हैं जो इंफाल घाटी का हिस्सा है। करीब 64.6 फीसदी मैतेई आबादी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व ज्यादा है। वहीं 40 फीसदी नगा और कुकी आदिवासी राज्य की 90 प्रतिशत जमीन पर रहती है। नगा और कुकी जनजाति को आदिवासी का दर्जा मिले है और वे मुख्य रूप से ईसाई हैं। राज्य में मैतेई आदिवासी दर्जा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 1949 में उन्हें मणिपुर की जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था लेकिन संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 के मसौदे के बाद उन्हें यह दर्ज खो दिया था। मैतेई इसे लेकर मणिपुर हाई कोर्ट गए। इस पर 19 अप्रैल को कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह चार सप्ताह में मैतेई समुदाय की मांग पर विचार करे और 29 मई तक केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश भेजे। मैतेई को एसटी का दर्जा देने का कुकी और नगा जनजाति के लोग विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि मैतेई राज्य में प्रमुख आबादी है और राजनीति प्रतिनिधित्व में भी उसका प्रभुत्व है। मैतेई समुदाय मुख्य तौर पर हिंदू है। यह पहले से एससी और ओबीसी के तहत वर्गीकृत है। मणिपुर हाई कोर्ट ने 3 मई को गैर जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करने का निर्देश दिया। इस फैसले के विरोध में 3 मई को चुराचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ने आदिवासी एकजुटता मार्च बुलाया। इसके बाद इलाके में हिंसा भड़क गई। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच ऐसी जातीय हिंसा भड़की है कि इसकी आग शांत ही नहीं हो रही है।

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