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अजित की यह बगावत भी क्या कोई चाल है, शिंदे को हटाकर अजित की होगी अजित की होगी ताजपोशी : उद्धव

अजित की यह बगावत भी क्या कोई चाल है, शिंदे को हटाकर अजित की होगी अजित की होगी ताजपोशी : उद्धव
सीएन, मुबई।
शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर बगावत हो गई। इस बार भी बागी बने शरद पवार के भतीजे अजित पवार। उन्होंने एनसीपी के दो दर्जन से ज़्यादा विधायकों के साथ बीजेपी सरकार से हाथ मिला लिया। बदले में उन्हें डिप्टी सीएम का पद मिला है। छगन भुजबल, दिलीपराव दत्तात्रय वलसे, हसन मियालाल, धनंजय पंडितराव मुंडे, धर्मरावबाबा भगवंतराव, आदिति सुनील तटकरे, संजय बाबूराव बनसोडे और अनिल भाईदास पाटील ने मंत्री पद की शपथ ली। अजित ने इसके पहले भी एक बार बगावत की थी। हालांकि तब उनकी वापसी हो गई थी एनसीपी में। कहा यह भी गया कि वह चाल थी शरद पवार की, ताकि बीजेपी अपनी सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति शासन हटा दे। क्या हुआ था तब, आइए जानते हैं। उस वक़्त बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में अचानक शपथ ली थी। एक बार 22-23 नवंबर की उस रात को फिर याद कर लेते हैं। बीजेपी और शिवसेना की दोस्ती टूट चुकी थी। शिवसेना मुख्यमंत्री पद चाहती थी और बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी। इसी के चलते बीजेपी ने दूसरे साथी तलाशने का प्रयास किया। एनसीपी में टूटफूट की संभावना को तलाशा जा रहा था। अजीत पवार शिकार हो सकते थे। उनका 40-50 विधायकों के साथ होने का दावा था। बीजेपी तुरंत तैयार हो गई। रातभर चक्र घूमे। राष्ट्रपति शासन तड़के उठा लिया गया। अजीत 15 विधायकों से ज़्यादा जुटा नहीं पाए और यह सरकार 80 घंटे में ही गिर गई। चाचा के पास लौट आए अजीत। उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की अभिलाषा पूरी हुई। बाद में शिवसेना के टूटने, बीजेपी के सहयोग से एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस के उपमुख्यमंत्री बनने के राजनीतिक ड्रामे का सब लुत्फ उठा चुके हैं। लेकिन, भोर की शपथ-विधि, अजीत की बगावत, उस रात के तेज़ी से होते घटनाक्रम आज भी रहस्यमय बने हुए हैं। पिछले तीन बरसों में किसी भी नेता ने इस पर चुप्पी नहीं तोड़ी। ना फडणवीस बोलते थे, ना अजीत और ना शरद पवार। लेकिन, सरकार बदलते ही फडणवीस ने पहली बार चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘शरद पवार से बाकायदा चर्चा हुई थी। उनकी जानकारी में ही यह सब हुआ है।’ इस पर पवार ने पलटवार किया, ‘फडणवीस बहुत समझदार और सज्जन व्यक्ति हैं। मुझे कभी नहीं लगा कि वह इस तरह झूठ का सहारा लेंगे।’ फडणवीस ने इसका करारा जवाब दिया, ‘मैं और ज़्यादा बोलूंगा तो महाराष्ट्र में एक और राजनीतिक भूचाल आ जाएगा। सच-झूठ सामने आ जाएगा। आज वह वक़्त नहीं है।’ शरद पवार बाद में इस मामले में बचाव में आते दिखाई दिए। उन्होंने कहा, ‘भोर की उस शपथ-विधि का एक फायदा तो ज़रूर हुआ कि राज्य से राष्ट्रपति शासन हट गया। तब क्या-क्या हुआ था, इसे आज कंफर्म करते रहने की क्या ज़रूरत? मैं फिर एक बार साफ़-साफ़ कहता हूं कि फडणवीस-अजीत सरकार नहीं बनती तो राष्ट्रपति शासन नहीं हटता और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री नहीं बनते।’ पवार का यह बयान राजनीतिक चतुराई से भरा है, लेकिन इससे एक बात के संकेत ज़रूर मिलते हैं कि उनको सबकुछ पता था। यह एक तरह से फडणवीस के रहस्योदघाटन की पुष्टि हो गई। फिर भी यह सवाल हमेशा उठेगा कि क्या शरद पवार ने ही यह व्यूह रचा था और फडणवीस इसमें फंस गए? फडणवीस ने भी कबूल किया है कि ‘अजीत को साथ लेकर सरकार बनाना उनकी भारी राजनीतिक भूल थी।’ मतलब कुछ साफ़-साफ़ चित्र अब उभरता जा रहा है। विधानसभा त्रिशंकु थी। किसी के पास बहुमत था नहीं। राष्ट्रपति शासन जारी रखने के लिए यह बहाना बहुत था। केंद्र में बीजेपी सत्ता में थी और इसलिए राज्य बीजेपी के इतर सरकार बनाने में बहुत अड़चनें थीं। उद्धव की मुख्यमंत्री बनने की जिद उन्हें पवार के करीब लायी। उद्धव जानते थे कि पवार ही कांग्रेस को साथ ला सकते हैं और सरकार बन सकती है। पवार अब किंगमेकर की भूमिका में थे। राजनीतिक व्यूहरचना में वैसे भी वह माहिर माने जाते हैं।व्यूह रचना की यह कहानी 22-23 नवंबर 2019 को लिखी गई। इस घटनाक्रम को जानें, तो पृष्ठभूमि और स्पष्ट हो जाएगी। इसके कुछ दिन पहले अजीत पवार की अमित शाह से मुलाकात हुई थी। शायद इसी मुलाकात में हरी झंडी मिली और अगली रणनीति बन गई। बीजेपी के पास 105 सीटें थीं। बहुमत का जादुई आंकड़ा था 145 यानी बीजेपी को 40-45 सीटों की दरकार थी। अजीत ने कह दिया कि उनके पास उतने विधायक हैं। तय हुआ कि एनसीपी के कथित बागी विधायकों के मुंबई पहुंचते ही उन्हें दिल्ली या हरियाणा भेज दिया जाए। उनके लिए चार्टर्ड विमानों की भी व्यवस्था की गई। इस बीच राज्यपाल विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर देंगे। यही स्पीकर नए सदन की अध्यक्षता करता है। फिर सदन में बहुमत हासिल करने में सुविधा होगी। अजीत दादा ने अपने पक्षधर 38 विधायकों से संपर्क किया। उन्हें मुंबई में बैठक की सूचना दी। जो विधायक अजीत के साथ नहीं थे, उनको मुंबई की बैठक के बारे में पता ही नहीं था। एक-दूसरे तक सूचना पहुंची। जब इन 38 विधायकों को पता चला कि शरद पवार साथ में नहीं हैं, तो उनमें से अधिकांश ने कन्नी काट ली और ‘नॉट रिचेबल’ हो गए। पहुंचे केवल 15 विधायक। वे भी बाद में कतरा गए। कहीं शरद पवार की रणनीति का तो यह अंग नहीं था, यह सवाल बना हुआ है। उधर, अजीत ने 54 विधायकों के समर्थन वाला पत्र राज्यपाल को दे दिया। इस पत्र में इन सभी विधायकों के हस्ताक्षर थे। अब बहुमत का आंकड़ा हो गया 159। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय मेहता को दिल्ली से तुरंत बुलाया गया। उनकी देखरेख में सारे दस्तावेज बने। राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की। दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय इसी के इंतज़ार में था। पीएमओ ने इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा। राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हट गया। ये सारी घटनाएं रात 12 बजे से लेकर सुबह लगभग पांच बजे तक हुईं। राष्ट्रपति शासन हटने में केवल पांच-छह घंटे लगे! राजभवन में शपथ ग्रहण की तैयारी कर ली गई थी। सुबह पौने आठ बजे फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस समारोह में बीजेपी के राज्य अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील और फडणवीस के करीबी गिरीश महाजन उपस्थित थे। अजीत की ओर से उनकी पत्नी सुनेत्रा, उनके पुत्र पार्थ, उनके भाई श्रीनिवास आदि थे। लगभग सभी इस शपथ-विधि से चकित थे। समारोह में बहुत कम उपस्थिति थी। विपक्ष में से शायद ही कोई हो। अब बारी थी सदन में बहुमत साबित करने की।
शिंदे को सीएम पद से हटाकर अजित पवार की होगी ताजपोशी : उद्धव
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक बड़ी बात कही है। दरअसल सामना में लिखे एक लेख में शिवसेना ने दावा किया है कि एकनाथ शिंदे को सीएम पद से हटाने के लिए भाजपा ने अजित पवार से हाथ मिलाया है। लेख के अनुसार, जल्द ही अजित पवार, एकनाथ शिंदे के जगह ले लेंगे। बता दें कि रविवार को अजित पवार ने एनसीपी में बगावत कर दी और शिवसेना-भाजपा सरकार से हाथ मिलाते हुए डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। अजित पवार के साथ आठ एनसीपी विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। सामना में शिवसेना ने दावा किया कि ‘अजित पवार सिर्फ डिप्टी सीएम बनने के लिए सरकार में शामिल नहीं हुए हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को जल्द ही अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और पवार की ताजपोशी होगी।’ लेख में ये भी लिखा गया है कि ‘राज्य की राजनीति में जो भी घट रहा है, वो लोगों को पसंद नहीं आएगा। महाराष्ट्र में ऐसी राजनीतिक परंपरा नहीं रही है और लोग कभी भी इसका समर्थन नहीं करेंगे।’

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