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नितिन गडकरी की किसको सलाह-लोकतंत्र में शासक असहमति बर्दाश्त करता है, विरोध है तो राजा आत्ममंथन करे

नितिन गडकरी की किसको सलाह-लोकतंत्र में शासक असहमति बर्दाश्त करता है, विरोध है तो राजा आत्ममंथन करे
सीएन, नईदिल्ली।
हमारे लोकतंत्र की असली परीक्षा यह है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को भी बर्दाश्त करे और विरोध है तो आत्ममंथन करें। यह बात केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कही। उन्होंने विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों से बिना किसी डर के अपनी राय रखने का आग्रह किया। मंत्री ने कहा इस समय हमारा देश मतभेदों की नहीं, बल्कि मतभेदों की कमी की समस्या से जूझ रहा है। अगर विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों को लगता है कि उनके विचार देश और समाज के हित में हैं, तो उन्हें अपनी राय रखनी चाहिए। नितिन गडकरी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने यह भी कहा, हमें लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चार स्तंभों पर खड़ा है। हमारा संविधान सभी के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करता है। यही संविधान विचारकों को बिना किसी डर के राष्ट्रहित में अपनी राय रखने की अनुमति देता है। पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मराठी में बोलते हुए गडकरी ने कहा लोकशाहीची सबसे गंभीर परीक्षा ही असल की राजा विरुद्ध कितिही प्रखर विचार मांडले तरी राजाने ते सहन केले पाहिजे, त्याग चिंतन केले पाहिजे। लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि राजा अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को सहन करने और आत्मनिरीक्षण करने में सक्षम है। गडकरी ने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि भारत विश्व गुरु बने तो हमें सामाजिक समरसता का रास्ता अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चार स्तंभों पर खड़ा है। हमारा संविधान प्रत्येक के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करता है। गडकरी ने कहा कि यही संविधान विचारकों को बिना किसी डर के राष्ट्रहित में अपनी राय रखने की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि जाति या धर्म से प्रेरित सामाजिक असमानता के साथ देश आगे नहीं बढ़ सकता। गीता कुरान और बाइबिल की मूल भावना एक ही है। यह व्यक्ति की पसंद है कि वह अपने ईश्वर से कैसे प्रार्थना करे। जिस तरह हमें बोलने की स्वतंत्रता है उसी तरह हमें धर्म की भी स्वतंत्रता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा शिवाजी महाराज से बड़ा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व का कोई उदाहरण नहीं हो सकता। उन्होंने कभी भी अन्य धर्मों के पूजा स्थलों को नष्ट नहीं किया। अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश विश्वगुरु बने तो हमें सामाजिक सद्भाव का रास्ता अपनाना चाहिए। गडकरी ने भारत में सामाजिक असमानता को एक चिंताजनक प्रवृत्ति बताया और कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति का कद जाति, भाषा, धर्म या लिंग पर निर्भर नहीं करता है।

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