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उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में शहरी सरकार पर किसकी होगी भाजपा, सपा या बसपा की सरदारी

सीएन, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अब नगर निकाय चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है। शहरी निकायों की सरकार को लेकर दावेदारी भी इसी आधार पर तेज हो रही है। तमाम राजनीतिक दल अपनी तैयारियों को कसने में जुटे हुए हैं। यूपी चुनाव 2022 में भारी जीत के बाद से नगर निकाय चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी की अपनी अलग ही दावेदारी है। लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में यूपी में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद नगर निकाय चुनाव 2017 में अलग ही माहौल देखने को मिला था। कुछ इसी प्रकार की स्थिति इस बार भी दिख रही है। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा का विजय रथ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के बाद भी नहीं रुक सका था। यूपी चुनाव 2022 में मुकाबले को लगभग दो ध्रुवीय बना दिया गया। इसके बाद भी समाजवादी पार्टी 111 सीटों पर सिमटी और सपा गठबंधन 125 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। निकाय चुनाव से पहले सवाल यह उठ रहा है कि क्या एक बार फिर भाजपा का विजय रथ दौड़ेगा? क्या इस चुनाव में भाजपा को चुनौती मिलेगी? अगर चुनौती मिलेगी तो किस दल से पार्टी को सबसे अधिक खतरा है? यूपी में निकाय चुनाव की कवायद काफी तेज हो गई है। प्रशासनिक स्तर पर तैयारियों को पूरा कराया जा रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से वोटर लिस्ट पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू हो रही है। वहीं, वार्डों की बाउंड्री तय होने के बाद नए परिसीमन के आधार पर आरक्षण रोस्टर तैयार किया जा रहा है। नए गठित वार्डों में वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर नए वार्डों का आरक्षण रोस्टर तैयार किया जाना है। इसके लिए सरकार की ओर से सभी डीएम को आदेश जारी किए गए हैं। इस आदेश के तहत 4 नवंबर तक फाइनल रोस्टर का प्रारूप सॉफ्ट कॉपी में मंगाया गया है। जिलों में भी इस दिशा में काफी तेजी से काम चल रहा है। वहीं, चुनावी कार्यक्रमों को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जल्द ही तैयारियों को पूरा कर तिथियों का ऐलान होगा। इस सबके बीच राजनीतिक दलों की अपनी तैयारियां हैं। यूपी में कुल 17 नगर निगम हैं। इनमें आगरा, अलीगढ़, अयोध्या, बरेली, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, गोरखपुर, झांसी, कानपुर, लखनऊ, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, प्रयागराज, सहारनपुर, शाहजहांपुर और वाराणसी शामिल हैं। शाहजहांपुर को हाल ही में नगर निगम घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में कुल 198 नगर पालिका परिषद और 493 नगर पंचायतें हैं। कुल 708 निकायों में चुनाव कराए जाएंगे। समाजवादी पार्टी की ओर से तैयारियों को तेज किया गया है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा नेता शोक से उबर कर चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। अखिलेश यादव के नेतृत्व में योजना तैयार की जा रही है। हालांकि, विधानसभा चुनाव के बाद से समाजवादी पार्टी को कई झटके लगे हैं। सबसे पहले महान दल अलग हुआ। इसके बाद ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी सपा से दामन छुड़ा लिया है। ऐसे में समाजवादी पार्टी को जमीन पर अपनी स्थिति को मजबूत करना होगा। इसके लिए अखिलेश यादव को बड़े स्तर पर काम करना होगा। समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ी परेशानी उसके कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद कई पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी का मामला उभरने लगा है। शिवपाल यादव इस मामले को उभार रहे हैं। संभल में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में आए शिवपाल ने कहा कि मैं समाजवादी पार्टी में नहीं हूं। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को बढ़ा रहा हूं। मुलायम के निधन के पहले शिवपाल अकेले अपनी पार्टी को निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव के लिए तैयार करने की बात कर रहे थे। एक बार फिर वे इसी प्रकार की बात करते दिख रहे हैं। शिवपाल की रणनीति अखिलेश की शहरी सरकार में पार्टी की भागीदारी को मजबूत कर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मजबूत फौज तैयार करने की योजना पर पानी फेर सकती है। इसका कारण शिवपाल उनके ही वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे। वहीं, समाजवादी पार्टी को केवल राष्ट्रीय लोक दल का साथ मिलता दिख रहा है। लेकिन, रालोद वोट निकाय चुनाव में किस स्तर पर सपा को ट्रांसफर होगा, देखना दिलचस्प रहेगा। यूपी चुनाव के समय में दोनों दलों के वोट एक-दूसरे को उस स्तर पर ट्रांसफर नहीं हो पाए थे। निकाय चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी की ओर से अपनी तैयारी चल रही है। लगातार बसपा प्रमुख मायावती के स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है। पिछले दिनों कांग्रेसी से सपा के हुए इमरान मसूद, बसपाई हो चुके हैं। पश्चिमी यूपी में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। उनकी पूरी कोशिश इस बार मुस्लिम वोट बैंक के ध्रुवीकरण को रोकने की है। यूपी चुनाव में मुस्लिम वोटों का काफी हद तक सपा के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ था और इसका सीधा असर बसपा के चुनाव परिणाम पर दिखा। निकाय चुनाव उनके लिए परीक्षा के समान है। ऐसे में बसपा अपनी तैयारियों को पूरी गंभीरता से पूरी करती दिख रही है। शहर की सरकार को लेकर कांग्रेस की तैयारी अधूरी ही दिख रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद भी पार्टी की ओर से अब तक प्रदेश स्तर पर खुद को मजबूत बनाने की रणनीति पर काम नहीं हो पा रहा है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सक्रिय दिख रही है। जमीनी स्तर पर उतर रही है। पूर्वांचल के इलाकों में इसका असर दिखाई दे सकता है। प्रदेश के अन्य इलाकों में पार्टी का असर उस स्तर का नहीं है। कुछ यही स्थिति भाजपा के सहयोगी अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी की है। दोनों दल भाजपा की रणनीति पर काम करते दिख रहे हैं। अन्य राजनीतिक दल बड़े स्तर पर तैयारियों को अंजाम देते नहीं दिख रहे हैं। भाजपा की तैयारियां तेज हैं। प्रदेश स्तर पर सभी विधायक और मंत्रियों को जिम्मेदारी बांट दी गई है। सीएम योगी आदित्यनाथ और दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एवं ब्रजेश पाठक 25-25 जिलों का प्रभार रखे हुए हैं। लगातार योजनाओं की गति से लेकर तमाम स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत बनाने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। बूथ कमेटियों को धार दी जा रही है। इसका सीधा फायदा निकाय चुनाव के दौरान पार्टी को मिल सकती है। ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा की तैयारियों को किस पार्टी से निकाय चुनाव में बड़ी चुनौती मिल सकती है? जमीनी स्तर पर भाजपा का जिस प्रकार का संगठन है, उस प्रकार का संगठन क्षेत्रीय दलों में बसपा के पास है। अगर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज करने में कामयाब होती है तो एक बार फिर भाजपा और बसपा निकाय चुनाव में आमने-सामने आ सकते हैं। समाजवादी पार्टी बूथ स्तर तक अगर अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में कामयाब होती है तो मुकाबला त्रिकोणीय होगा। हालांकि, इन तीन दलों के अलावा निकाय चुनाव की तैयारियों में अन्य दलों के बीच अधिक उत्साह जैसी स्थिति नहीं दिख रही है। नगर निकाय चुनाव 2017 में भाजपा ने 16 में से 14 नगर निगमों पर अपना कब्जा जमाया था। यहां पार्टी के मेयर बने। दो नगर निगम में बसपा के मेयर बने। 198 नगर पालिका परिषद के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने 67 में अपने अध्यक्ष बनाए। बसपा के 28, माकपा के 1, कांग्रेस के 9 और समाजवादी पार्टी के 45 अध्यक्ष बने थे। निकाय चुनाव में 43 नगर पालिका अध्यक्ष पद पर निर्दलीयों ने जीत हासिल की।
नगर पंचायत के 438 सीटों में से भाजपा ने 100 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, समाजवादी पार्टी को 83, बसपा को 45, कांग्रेस को 17, रालोद को तीन, राजद को दो, एआईएमआईएम को एक और ऑल इण्डिया फारवर्ड ब्लॉक को एक सीट पर जीत मिली थी। नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर सबसे अधिक 181 निर्दलीयों ने कब्जा जमाया था। वहीं, दो सीटों पर बिना मान्यता प्राप्त दल को जीत मिली थी। इस बार निकायों की संख्या में वृद्धि हुई है। नगर निकाय चुनाव लड़ने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से 30 साल समय सीमा का निर्धारण किया गया है। नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशी के लिए भी यही उम्र सीमा निर्धारित की गई है। वहीं, नगर निकायों में वार्ड पार्षद पद पर चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 21 साल निर्धारित की जानी चाहिए। पर्चा दाखिल करते समय प्रत्याशी के साथ दो प्रस्तावक और दो समर्थक होना चाहिए। प्रस्तावक को संबंधित वार्ड के निवासी होना अनिवार्य किया गया है। निर्वाचन आयुक्त मनोज सिन्हा का कहना है कि 7 नवंबर तक मतदाता सूची पर दावे अैर आपत्तियां ली जाएंगी। 8 से 12 नवंबर के बीच दावे और आपत्तियों का निस्तारण होगा। 14 से 17 नवंबर तक सप्लीमेंट्री वोटर लिस्ट तैयार कर उन्हें मूल सूची में शामिल किया जाएगा। अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 18 नवंबर को होगा।

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