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नैनीताल सीट पर पंत परिवार का रहा दबदबा, कुमाऊं की एकमात्र महिला सांसद रहीं इला पंत

नैनीताल सीट पर पंत परिवार का रहा दबदबा, कुमाऊं की एकमात्र महिला सांसद रहीं इला पंत
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की नैनीताल लोकसभा सीट का इतिहास काफी रोचक रहा है। यहां पर आजादी के बाद भारत रत्न स्वर्गीय पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार का दबदबा रहा है। इला पंत कुमाऊं की एक मात्र महिला सांसद रही है। इला पंत के बाद आज तक कोई भी महिला कुमाऊं क्षेत्र से संसद में नहीं गई है। नैनीताल संसदीय सीट ने एक जीवंत राजनीतिक इतिहास देखा है। पहाड़, भाबर व तराई वाले तीन तरह की भूमि के मिश्रणों वाली नैनीताल लोकसभा सीट अपने पहले लोकसभा चुनाव के दिनों से ही ऐसी है। राज्य बनने से पहले इसमें उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की बहेड़ी विधानसभा सीट भी शामिल थी। राज्य बनने के बाद 2005 से 2007 तक नए सिरे परिसीमन की प्रक्रिया चली तो नैनीताल जिले की रामनगर विधानसभा सीट पौड़ी गढ़वाल  लोकसभा सीट में शामिल हो गई। बहेड़ी विधानसभा सीट तो राज्य बनने के बाद ही अलग हो गई। इस तरह देखें तो नैनीताल लोकसभा सीट के आकार व क्षेत्र में भी समय समय पर परिवर्तन होता रहा है। अपने प्रारंभिक काल पहले आम चुनाव 1951-52 से ही नैनीताल लोकसभा सीट कांग्रेस के गढ़ की तरह रही है। नैनीताल संसदीय सीट पर आजादी के बाद से देखा गया है कि भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत परिवार का दबदबा रहा है। यहां से उनके दामाद, बेटे और बहू भी सांसद रह चुके हैं। देश के पहले चुनाव में 1951-52 में गोविन्द बल्लभ पंत के जवाई सीडी पांडे और 1957 के दूसरे चुनाव में भी कांग्रेस के ही सीडी पांडे सांसद बनने में सफल रहे। लगातार पांच बार कांग्रेस यहां से विजयी होती रही। इससे पहले केसी पंत लगातार तीन बार 1962, 1967 और 1971 में इस सीट से कांग्रेस के सांसद चुने जाते रहे। उससे पहले भी दो चुनावों में कांग्रेस के पास ही यह सीट रहीं देश के पहले चुनाव में 1951-52 में गोविन्द बल्लभ पंत के जवाई सीडी पांडे और 1957 के दूसरे चुनाव में भी कांग्रेस के ही सीडी पांडेय सांसद बनने में सफल रहे। पहले लगातार पांच बार कांग्रेस यहां से विजयी होती रही। नैनीताल संसदीय सीट पर गोविंद बल्लभ पंत की बहू इला पंत एकमात्र महिला सांसद रह चुकी हैं। आजादी के बाद कई वर्षों तक कुमाऊं की राजनीति में पंत परिवार का दबदबा रहा। कई रिकॉर्ड भी अभी तक उन्हीं के नाम कायम हैं। गोविंद बल्लभ पंत के पुत्र और इला पंत के पति केसी पंत ने 1962 से लगातार तीन चुनाव जीते, यानी वो लगातार 15 सालों से तक सांसद रहे हैंए अभी तक नैनीताल लोकसभा सीट पर ये रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका है। 18 वीं लोकसभा के चुनाव आसन्न है। इस बार फिर यहां मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच है। 1998 के बाद इस सीट पर पंत परिवार की ओर से कोई दावेदारी नही की गई लेकिन भाजपा की ओर से पंत परिवार के बारिशों की ओर से सहयोग की अपेक्षा अवश्य की गई।
राज्य बनने से पूर्व कांग्रेस 10 बार व भाजपा तीन बार चुनाव जीती
नैनीताल। राज्य बनने के बाद बीते चार चुनावों में इस सीट पर दो बार कांग्रेस के केसी सिंह बाबा व दो बार भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी व अजय भट्ट चुनाव जीते। 2004 में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा ने भाजपा को हरा कर यह सीट जीती थी। तब बाबा 49ए184 मतों के अंतर से जीते थे। 2009 में बाबा ने भाजपा के बची सिंह रावत को 88,412 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। 2014 में मोदी लहर के चलते इस सीट पर रिकॉर्ड मतदान हुआ। तब भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी ने कांग्रेस के केसी सिंह बाबा को 2,84717 मतों से पराजित कर दिया। अब इस सीट पर भाजपा के अजय भट्ट व कांग्रेस के हरीश रावत के चुनाव मैदान में होने से चुनाव का संग्राम दिलचस्प रहा।  इस सीट पर 2002 में कांग्रेस के डा. महेन्द्र सिंह पालए 1999 में कांग्रेस में नारायण दत्त तिवारी, 1998 में भाजपा की श्रीमती ईला पंत, 1996 में तिवारी कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी, 1991 में भाजपा के बलराज पासीए 1989 में जनता दल के डा. महेन्द्र सिंह पालए 1984 में कांग्रेस के सत्येन्द्र चन्द्र गुड़िया, 1980 में कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी, 1977 में बीएलडी के भारत भूषण, 1971 में कांग्रेस के कृष्ण चन्द्र पंत, 1967 में कांग्रेस के कृष्ण चन्द्र पंत, 1962 में कांग्रेस के कृष्ण चन्द्र पंत, 1957 में कांग्रेस के सीडी पांडे, 1952 में कांग्रेस के सीडी पांडे चुनाव जीते थे। इस सीट पर अब तक विजेता सांसद सीडी पांडे, केसी पंत, नारायण दत्त तिवारी, बलराज पासी, केसी सिंह बाबा व भगत सिंह कोश्यारी सबसे बड़ी जीत के गवाह बने हैं। 17 वीं लोक सभा में भाजपा के अजय भट्ट ने पूर्व सीएम व कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत के हरा कर रिकार्ड जीत दर्ज की। 18 वीं लोकसभा चुनाव में इस बार फिर भाजपा के अजय भट्ट व कांग्रेस के प्रकाश जोशी आमने सामने है। देखना यह है कि जनता किसके हक में फैसला देती है।

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