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उत्तराखण्ड

नंदा महोत्सव पर विशेष-600 वर्ष पूर्व गढ़वाल से हुआ नंदा देवी पूजन व नंदा देवी मेलों का आरंभ

किवदंती में कंस के हाथों से बची कन्या ही है हिमालय नंदाकोट की नंदा
आज भी लोग नंदाकोट पर्वत को नंदा का निवास मान कर उसकी करते है पूजा
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
उत्तराखंड  के विभिन्न स्थानों में उत्तराखंड की अराध्य देवी नंदा की स्तुति में मेलों व पूजन रविवार से शुरू हो जायेगा। आज व कल केले के खाम लाये जायेंगे। कलाकारों द्वारा मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण किया जायेगा। रविवार को कुमाऊं के विभिन्न स्थानों में ब्रह्म मुहूर्त में देवी स्थापना के बाद पूजन आरम्भ हो जायेगा। सात सितंबर को देवी विसर्जन के साथ भव्य मेले का समापन भी हो जायेगा। नैनीताल सहित उत्तराखंड के विभिन्न स्थनों में नंदा देवी महोत्सव दो वर्ष बाद मनाया जा रहा है। मां नंदा कई रूपों में पूजी जाती है। जहां वह चन्द राजाओं की कुलदेवी मानी गई है। वहीं वह पार्वती व सती के रूप में भी पूजी जाती है। शैलपुत्री भी नंदा को माना गया है। नंदा नवदुर्गा के रूप में भी विराजमान मानी गई है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक 600 वर्ष पूर्व गढ़वाल से पूजन व मेलों का आरंभ हुआ। 16 वीं सदी में नंदा मेला मनाने की शरूआत इतिहासकार मानते हैं। चन्द राजाओं ने अल्मोड़ा में मेले का आयोजन शुरू करवाया। इसके बाद 1883 के आसपास नैनीताल में नंदा की पूजा के बाद मेले का आयोजन शुरू हुआ। इसके बाद कुमाऊं के अन्य स्थानों में नंदा देवी मेलों का आयोजन शुरू हुआ। आज सभी स्थानों में महोत्सव ने भव्य रुप ले लिया है।
नंदा को चन्द राजाओं की कुलदेवी की मान्यता

नंदा को चन्द राजाओं की कुलदेवी माना जाता है। लेकिन उत्तराखंड में मां नंदा कई रूपों में पूजी जाती है। किवदंतियों में भी नंदा को नंद यशोदा की संतान कहा गया है। जब नंद यशोदा की आठवीं संतान के रूप में कन्या पैदा हुई तो मामा कंस ने उसे मारना चाहा तो वह उड़ कर हिमालय की ओर आ गई। कहा जाता है कि हिमालय के नंदाकोट चोटी ही नंदा का घर है। इस चोटी में बसी ही मां नंदा है। आज भी लोग नंदाकोट पर्वत को नंदा का निवास मान कर उसकी पूजा करते है। इन दिनों इसी नंदा की पर्वतीय क्षेत्रों ही नही वरन मैदानों में भी पूजा अर्चना की जा रही है। मालूम हो कि नंदा देवी मेला आयोजित करने की उत्तराखंड में प्राचीन परंपरा है। उसका एक रूप सती का भी माना गया है। नैनीताल में नैनी झील का संबंध सती से भी बताया गया है। नंदा को नंद यशोदा की पुत्री भी माना गया है। माना जाता है कि उत्तराखंड के जिन स्थानों से इस शिखर के दर्शन होते हैं वहां नंदा शिखर यानी कोट को नंदा के आवास की मान्यता देकर उस दिशा की ओर पूजा की जाती है।
शास्त्रों व पुराणों में भी है नंदा के नाम का उल्लेख
नैनीताल।
राज पुरोहित स्व. दामोदर जोशी के अनुसार नंदा देवी का उल्लेख शास्त्रों व पुराणों में भी है। गिरीराज हिमाचल के यहां वह नंदा-सुनंदा के नाम से जानी जाती है, वहीं देवी संसार में सताकक्षी, शाकांबरी, दुर्गा, परारंबा, भीमादेवी व भ्रामरी आदि के नामों से पूजी जाती है। उत्तराखंड में परांबा ही नंदा देवी है। सती का नेत्र गिरने से वही नैना देवी कही गई। नैना के नाम से ही नैनीताल नाम हुआ। ताल का स्वरूप आंखों की तरह है यहां वह नयना देवी कहलाई।
गढ़वाल से कुमाऊं में हुई नंदा की प्रतिमा स्थापित
नैनीताल।
उत्तराखंड के गढ़वाल में देवी रूप में नंदा को पूजा जाता है। कुमाऊं में यही देवी नंदा-सुनंदा के रूप में पूजी जाती है। इतिहास में इसका रोचक वर्णन है। इतिहासविद् प्रो. अजय रावत के अनुसार जब 17 वीं शताब्दी में चन्द राजा बाजबहादुर के राज्य में रोहिलों व अंग्रेजों की ओर से राज्य हड़पने की कोशिश की जा रही थी तो राजा बाजबहादुर गढ़वाल के परमारवंशीय शासक पृथ्वीपद शाह से सहायता मांगने पहुंचे तब पृथ्वीपद शाह से राजा को यह भी ज्ञात हुआ की मां नंदा की पूजा करने के कारण उन्हें दुश्मनों का कोई भय भी नही है। गढ़वाल के राजा ने बाजबहादुर चन्द को सुझाव दिया कि वह नंदा की प्रतिमा को लेकर कुमाऊं में स्थापित करें। राजा प्रतिमा को लेकर जब गढ़वाल से लेकर बैजनाथ बागेश्वर पहुंचे और कोट नामक स्थान पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया। जब सिपाहियों ने देवी प्रतिमा को उठाने की कोशिश की तो प्रतिमा दो भागों में विभाजित हो गई। तब राजा ने दोनों प्रतिमाओं को अल्मोड़ा में स्थापित करवाया और इन्हें नंदा सुनंदा का नाम दिया गया।  चन्द राजाओं की बहनों का नाम भी नंदा-सुनंदा था। मां नंदा की शक्ति का भी जिक्र करते हुए इतिहासकारों ने कहा है कि 1816 में अंग्रेज कमिश्नर ट्रेल ने अल्मोड़ा के मल्लामहल में स्थापित नंदा मंदिर को अल्मोड़ा के उत्तरी स्थान पर स्थापित करवाया तो वह अंधा हो गया। स्वप्न में उसे मां की पूजा करने का आदेश हुआ। ईसाई होने के बावजूद कमिश्नर ट्रेल ने मां नंदा की पूजा करवाई उसके बाद वह देखने लगा।

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