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वह बंदर प्रजाति जिनकी गाने की क्षमता से वैज्ञानिक भी हैरान, हर बात के लिए गाते हैं गाना

वह बंदर प्रजाति जिनकी गाने की क्षमता से वैज्ञानिक भी हैरान, हर बात के लिए गाते हैं गाना
सीएन, नईदिल्ली।
वानरों की एक प्रजाति ऐसी भी है, जो गाकर अपना काम करते हैं। वो लय में हुंकार भरते हैं जो उनके साथियों को समझ में आ जाती है। इन वानरों को गिब्बंस भी कहते हैं। ये पूरे जंगल को अपने गानों से गुंजा देते हैं। अगर आपने ये सुना हो कि दुनिया में या तो मनुष्य गाते हैं या फिर कुछ पक्षी तो आप शायद गलत हैं। जानवरों की दो प्रजातियां भी सुरीले तान छेड़ती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि गिब्बन नामक वानर न केवल गाना पसंद करती है बल्कि जोड़े में युगल गीत भी गाती है। समकालिक नोट्स का उपयोग करते हुए नर और मादा लार गिब्बन को एक साथ धुन बजाते हुए रिकॉर्ड किया गया है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि गिब्बन के गान से ये पता लग सकता है कि मानव ने कैसे गाना और संगीत बनाना शुरू किया होगा और उसमें प्यार का क्या महत्व होगा। जिस तरह से गिब्बन गाते हैं उसे आइसोक्रोनस कहा जाता है जो अनिवार्य रूप से एक ही समय में कहने का एक फैंसी तरीका है। शोधकर्ताओं ने उनके सैकड़ों गाने रिकॉर्ड किए हैं। पुरुषों ने एकल गायन की तुलना में युगल के दौरान अधिक नियमित धुनों के साथ गाया। एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में हेन्कजन होनिंग ने कहा कि जब गिब्बन एक.दूसरे को बुलाते हैं तो उनके स्वर प्रदर्शन के मिलान के तरीके के रूप में ये कौशल विकसित हो गया होगा। नर और मादा गिब्बन अक्सर जब साथ होते हैं तो युगल गायन करते हैं। वो अपने क्षेत्र को चिह्नित करने के हुंकार गान करते हैं तो अपने बंधनों को मजबूत करने के लिए गाते हैं। जब वो गाते हैं तो पूरे जंगल में उनका तेज आवाज में सुनाई पड़ता है। गिब्बन वानरों के परिवार अक्सर अपनी सीमाओं की घोषणा करने के लिए सुबह एक क्षेत्रीय गीत गाते हैं। गिब्बन पेड़ों पर रहने वाले वानर हैं। इन्हें लंगूर, ऊलक, शाखा.वानर और लंबे हाथ वाला बंदर भी कहा जाता है। चिड़ियाघरों में इन्हें हुक्कू बंदर भी कहते हैं। गिब्बन विशाल वानरों के विपरीत छोटे वानर होते हैं। ये तेज़ और फुर्तीले होते हैं जो 35 मील प्रति घंटे की गति से पेड़ों की चोटी पर उड़ते हैं। ये उच्च बुद्धि वाले होते हैं जो मजबूत पारिवारिक बंधन बनाते हैं। थाईलैंड में देखा जाने वाला सफेद हाथ वाला गिब्बन इतनी जोर से गा सकता है कि उसे एक मील से भी अधिक दूर से सुना जा सकता है। वैसे गिब्बन को जंगल का ओपेरा गायक कहा जाता है ये अपनी हुंकार कुछ उसी तरह निकालते हैं और इसमें आरोह.अवरोह भी होता है। इनका गान सुनते समय कई बार ये लग सकता है कि आप किसी तेज गाने वाले आपेरा गायक को सुन रहे हैं। वैज्ञानिकों ने जब उन पर परीक्षण किया तो पता लगा कि ये बंदर पेशेवर गायकों की तरह गाते हैं। अपनी आवाज को कम.ज्यादा करने के लिए मुंह और जीभ का बखूबी इस्तेमाल करते हैं। क्योटो विश्वविद्यालय में प्राइमेट रिसर्च इंस्टीट्यूट के ताकेशी निशिमुरा के अनुसार यह एक ऐसा कौशल है जिसमें केवल कुछ ही इंसानों को महारत हासिल है। गिब्बन थोड़े से प्रयास से इसे करने में सक्षम हैं। गिब्बन दिन में सक्रिय होते हैं और रात में विश्राम करते हैं। दिन में पेड़ों में घूमकर ये फल, पत्ते और कीट खाते हैं। प्रजनन में इनकी मादा 7 महीने का गर्भ धारण करती है। शिशु सफेद या भूरे बालों के साथ जन्म लेते हैं। जन्म लेने के 6 महीने बाद नरों का रंग काला होने लगता है लेकिन मादाओं का रंग भूरा ही रहता है। 8 से 9 वर्षों में वो पूरी तरह बड़े हो जाते हैं। वन में प्राकृतिक अवस्था में उनका औसत जीवनकाल लगभग 25 वर्ष है। वैसे तो गिब्बन को भी दुनिया की सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों में एक है लेकिन ये भारत में भी मिलते हैं और इनकी वो प्रजाति हूलॉक गिब्बन कहलाती है। ये खासकर अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और मेघालय में मिलते हैं।

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