उत्तराखण्ड
पहाड़ में पूरे चैत्र मास में विवाहित बेटी को भिटौली देने की है परंपरा
लोग बेटी के घर जाकर उपहार स्वरूप फल, मिठाई व वस्त्र आदि करते भेंट
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। देवभूमि उत्तराखंड में पूरे चैत्र मास की शुरुआत हो।ते ही किसी भी एक दिन विवाहित लड़की के घर जाकर उसके मायके वाले उससेे मुलाकात करते है और उसे उपहार स्वरूप फल, मिठाई व वस्त्र आदि भेंट करते (भिटौली देने जाते है) है। फूल देई या फूल संक्रांति जो चैत्र मास की संक्रांति या चैत्र मास के प्रथम दिन मनाया जाता है और इस दिन से हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन से पूरे चैत्र मास में हर विवाहित लड़की को उसके मायके से भेंट दी जाती है जिसे भिटौली कहते हैं। यह एक विशिष्ट उत्तराखंडी परंपरा हैं और हर विवाहित महिला के लिए यह खास है। भिटौली का मतलब है भेंट करना या मुलाकात करना। अपनी विवाहित बेटी या बहन से चैत्र मास के पहले दिन से ही भिटौली का यह महीना शुरू हो जाता है और पूरे महीने भर यह सिलसिला चलता रहता है और हर कोई अपनी सुविधा के अनुसार अपनी बेटी या बहन के घर पहुंचकर उसे भेंट करते हैं। आज से कुछ वर्ष पूर्व तक जब कोई व्यक्ति भिटौली देने जाता था तो उसके घर में सुबह से ही कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते थे। जिसमें पूरी, सेल, खीर, खजूरे होते थे। उसके बाद यह सारे व्यंजनों को एक टोकरी में रखा जाता था और कपड़े से बाँध कर इसे या तो पीठ में रखकर या फिर सिर में रखकर बेटी के ससुराल ले जाया जाता था। इसके साथ ही साथ बेटी के लिए फल ,मिठाइयां व वस्त्र भी ले जाते थे और बेटी के ससुराल में व्यंजनों को पूरे गांव के हर घर में बांटा जाता था। बेटी के ससुराल में मायके से आए इन मेहमानों की खातिरदारी के लिए तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते थे। इस से गांव में सामाजिक सौहार्द व भाईचारे को बढ़ावा मिलता था और रिश्तो में मजबूती आती थी।
वक्त बदला तो भिटौली के उपहार भी बदले
नैनीताल। बदलते सामाजिक परिवेश में भिटौली का स्वरूप भी बदल गया है। आज जहां लोग अत्यधिक व्यस्त है।वही दूर संचार के माध्यमों ने लोगों के बीच की दूरी को घटाया है। जहां पहले महीनों तक बेटियों से बातचीत नहीं हो पाती थी या उनको देखना भी मुश्किल हो जाता था।आज स्मार्टफोन ,कंप्यूटर के जमाने में आप उनको आसानी से देख सकते हैं या उनसे आसानी से बात कर सकते हैं वह भी जब चाहो तब।
विवाहित बेटियों को भिटौली क्यों दी जाती है
नैनीताल। पुराने समय में लोगों के पास बहुत सारी जमीन व पशु होते थे।और वही उस वक्त में जीविका का एक मात्र साधन भी वही थे। जब बेटी ब्याह कर अपने ससुराल जाती थी तो उसे घर परिवार व खेती-बाड़ी के कामों से फुरसत ही नहीं मिल पाती थी कि वह अपने मायके जाकर परिजनों से मिल सके और उस वक्त यातायात और दूरसंचार के साधन भी उतने ज्यादा नहीं थे।
बहुत ही मर्मान्तक है भिटौली की लोक कथा
नैनीताल। उत्तराखंड के हर गांव के घर घर में आज भी बड़े-बूढ़े इस कहानी को बड़े शौक से सुनाते हैं। खासकर इस महीने में भिटौली की कहानी भाई बहन के अथाह प्यार से जुड़ी है। कहा जाता है कि देवली नाम की एक महिला अपने नरिया नाम के भाई से बहुत प्यार करती थी। लेकिन जब बहन की शादी दूसरे गांव में हो गई। वह चैत्र के महीना लगते ही अपने भाई का इंतजार करने लगी। बिना कुछ खाए-पिए व बिना सोए इंतजार करने लगी। ऐसे कई दिन बीत गए लेकिन किसी वजह से भाई नहीं आ पाया। इस वजह से जिस दिन उसका भाई उसके घर आया। वह उसका इंतजार करते-करते सो गई। इस बीच भाई घर आया और अपनी बहन को सोता हुआ देख अपने साथ लाया उपहार व अन्य सामान सोती हुई बहन के पास रख कर उसे प्रणाम कर वापस अपने घर को चला गया क्योंकि अगले दिन शनिवार था और पहाड़ों में कहा जाता है कि शनिवार को न किसी के घर जाते हैं और न किसी के घर से आते हैं यह अपशकुन माना जाता है। इसी वजह से भाई अपने घर चला गया। लेकिन जब बाद में बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास रखा हुआ सामान देखा और उसे एहसास हुआ कि जब वह सोई थी तो उसका भाई आया और उस से बिना मिले बिना कुछ खाए पिए भूखा-प्यासा ही वापस चला गया। इस वजह से वह बहुत दुखी हुई और पश्चाताप से भर गई। और एक ही रट लगाए रहती थी। भै भूखो- मैं सिती, भै भूखो-मैं सिती…और इसी दुख में उसके प्राण चले गए। अगले जन्म में वह न्योली नाम एक चिड़िया के रूप में पैदा हुई और कहा जाता है कि वह इस मास में आज भी दुखी रहती है और जोर-जोर से गाती है भै भूखो-मैं सिती जिससे आप आराम से सुन सकते हैं।