उत्तराखण्ड
नैनीताल का मालिकाना पर्सी बैरन के छल से अंग्रेजों ने नरसिंह थोकदार से हथियाया
नैनीताल का मालिकाना पर्सी बैरन के छल से अंग्रेजों ने नरसिंह थोकदार से हथियाया
सीएन, नैनीताल। सन 1842 में शिकार के शौकीन मि. पर्सी बैरन के द्वारा नैनीताल का पता लगा लेने तक यहां पर एक झोपड़ी तक नहीं हुआ करती थी। इस समय नैनीताल झील और इसके आसपास का जंगल थोकदार नरसिंह के अधिकार क्षेत्र में हुआ करता था। बैरन एक अंग्रेज कारोबारी था और शाहजहांपुर में उसकी चीनी मिल हुआ करती थी। बैरन यात्राओं का बहुत शौकीन था। वह पहला विदेशी पर्यटक था जिसने बद्रीनाथ और केदारनाथ की पैदल यात्रा की। वह पिलग्रिम उपनाम से लेखन भी करता था और अच्छा लेखक था। 1838.40 में बैरन ने नोट्स ऑन पिलग्रिम्स वांडरिंग्स इन द हिमालया नाम से लेखमाला आगरा अखबार के लिए लिखी, जो बाद में वांडरिंग्स इन द हिमालयाज नाम से किताब के रूप में प्रकाशित हुई। कहा जाता है कि 1839 में बैरन अपने एक इंजीनियर मित्र से मिलने खैरना गया। पर्यटन व शिकार के शौकीन इस मित्र के साथ नैनीताल की पहाड़ी के पीछे रातीघाट के सामने की पहाड़ी पर चढ़कर शेर का डांडा पहुंचा। यहां देवदार के जंगलों के बीच सरोवर के मोहपाश ने उसे ऐसा बंधा कि उसने अपने चीनी के कारोबार को छोड़कर इस झील के आसपास एक यूरोपियन कॉलोनी बनाने का निश्चय किया। कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल इस झील के बारे में जानते थे, लेकिन इसकी पवित्रता बनाये रखने के लिए उन्होंने इसका प्रचार करना उचित नहीं समझा। इसके अलावा कमिश्नर ट्रेली भी इसका पता लगा चुके थे। उस समय इस क्षेत्र पर अधिकार को लेकर थोकदार नरसिंह और ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच विवाद चल रहा था। मि. बैटन द्वारा इस विवाद का निरयन कंपनी के पक्ष में कर देने के बाद थोकदार ने बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू में इसके खिलाफ मुकदमा दायर किया हुआ था। इस दौरान बैरन ने किस तरह धोखाधड़ी से इसे हस्तगत किया इसका वर्णन खुद उन्हीं ने अपने नोट्स में किया है। बैरन अपने दो मित्रों बूटन व कैप्टन बिलर को लेकर भीमताल की ओर से नैनीताल पहुंचे। वे अपने साथ 6 मीटर लम्बी नाव लेकर आये थे। यहां पहुंचकर उन्होंने नाव को झील में उतारकर पतवार के सहारे चलाया। लोग पानी में मय सवारियों के चलने वाली इस गाड़ी नुमा चीज को देखकर हैरान थे। बहुत से लोग इस नजारे को देखने के लिए इकठ्ठा हो गए, नरसिंह भी इनमें से एक था। इन तीनों सवारों को सकुशल किनारे पर पहुंचा देखकर लोग उन्हें श्रद्धा व प्रशंसा के भाव से देखने लगे। इसके बाद उन्होंने नरसिंह थोकदार को नाव पर बैठने को कहा। उसके तैयार न होने पर उन्होंने बहला.फुसलाकर उसे नाव में बैठने के लिए राजी कर लिया। बैरन नरसिंह थोकदार को लेकर नदी के बीचों.बीच पहुंचा। उसने तैयार कागजात और पेन्सिल निकालकर थोकदार से कहा कि वह इस क्षेत्र पर अपना अधिकार त्याग कर कंपनी के नाम कर दे अन्यथा उसे बीच में ही नाव से फैंक दिया जायेगा। अपनी जान पर बन आने की वजह से थोकदार इस क्षेत्र पर अपना अधिकार त्यागने के लिए तैयार हो गया थोकदार ने बैरन द्वारा तैयार किये गए दस्तावेजों पर दस्तखत कर दिए। इसके बाद बैरन ने नाव किनारे पर लगायी और वहां इकट्ठा लोगों को कागज का मजमून पढ़कर सुनाया और उनके सामने थोकदार की स्वीकारोक्ति ली।
उत्तराखण्ड ज्ञानकोष प्रो. डीडी शर्मा के आधार पर