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उत्तराखण्ड

अगस्त क्रांति : कुमाऊं के जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान

सीएन, नैनीताल। 1942 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया तो उसे अगस्त क्रांति का नाम दिया गयाः पूरे देश के साथ ही उत्तराखंड में भी आंदोलन तेज हो गया। कुमाऊं के सारे हिस्सों में आजादी के लिए जुनून पैदा हो गया। इस आंदोलन में अल्मोड़ा जनपद का योगदान. कभी नही भूला जा सकता है खासतौर पर सालम पट्टी का। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आठ अगस्त 1942 में बांबे में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत छोड़ो का नारा दिया। जिसके बाद पूरे अल्मोड़ा जिले में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए। सालम में हुए आंदोलन में दो वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपना बलिदान दिया। आंदोलन को सालम क्रांति नाम दिया गया। जिसके बाद जगह-जगह आंदोलन हुए। जिसके परिणाम स्वरूप आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं। भारत छोड़ो आंदोलन में कुमाऊं के जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अल्मोड़ा जनपद के पूर्वी छोर पर बसे सालम क्षेत्र को पनार नदी दो हिस्सों में बांटती है। यहां की 25 अगस्त 1942 की अविस्मरणीय घटना इतिहास के पन्नों में ‘सालम की जनक्रांति’ के नाम से जानी जाती है। ‘भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो‘ का प्रस्ताव पास होने के बाद नौ अगस्त की सुबह ही महात्मा गांधी व गोविंद बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का असर कुमाऊं में भी पड़ा। कई नेताओं व कार्यकर्ताओं की धर पकड़ हुई। सालम में भी 11 अगस्त को पटवारी दल सांगण गांव में रामसिंह आजाद के घर पंहुचा, जहां बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे। रामसिंह आजाद शौच के बहाने से फरार हो गए। 19 अगस्त को स्वयंसेवकों के सचल दल की जब नौगांव में आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की जा रही थी तो पुलिस बल ने गांव को चारों तरफ से घेरे दिया और बैठक में शामिल 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। 25 अगस्त 1942 के दिन आसपास के कई गांवों के लोग, तिरंगे, ढोल नगाड़ों के साथ धामदेव पर एकत्र होने लगे। थोड़ी देर बाद खबर मिली कि ब्रिटिश फ़ौज पूरे दल बल के साथ आ रही है। हजारों की संख्या में लोग पूरे जोश से जुटने लगे। ब्रिटिश फ़ौज ने जनता को डराने के लिए हवाई फायर की। इससे जनता भड़क गई और ब्रिटिश सेना पर पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। धामदेव का मैदान पूरा युद्ध का मैदान बन गया। एकतरफ दलबल के साथ ब्रिटिश सेना, दूसरी ओर कुमाऊं के निहत्थे स्वतंत्रता सेनानी। एक गोली चैकुना गांव के नर सिंह धानक के पेट में लगी और वो बलिदान हो गए। उसके बाद एक गोली टीका सिंह कन्याल को लगी। वो भी गंभीर रूप से घायल हो गए जो बाद में बलिदान हो गए। शाम होते-होते यह संघर्ष खत्म हो गया। इसमें जो कौमी दल के सदस्य पकड़े गए, उन पर जुल्म करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

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