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नेपाल ने यूक्रेन पर किए गए आक्रमण की रूस की निंदा की

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध विराम के कोई संकेत मिलते नज़र नहीं आ रहे अब तक
सीएन, दिल्ली।
रूस नें 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया हैं, इन दोनों देशों के बीच युद्ध विराम के कोई संकेत मिलते नज़र नहीं आ रहे हैं. दिन बीतने के साथ स्थिति और भी बदतर होती जा रही है. रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए अपने आक्रमण का यह कहकर बचाव किया गया कि उनका नाटो समूह में शामिल होने का निर्णय रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है, चूंकि मास्को, यूक्रेन से महज 600 किलोमीटर की दूरी पर होगा. हालांकि, विश्व के कई देश रूस द्वारा दिए गए इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं, और सीधे तौर पर रूस के यूक्रेन पर किए गए आक्रमण का विरोध किया. दक्षिण एशिया में, यूक्रेन और रूस के बीच के युद्ध को लेकर भारत ने, अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से तटस्थ स्थिति अपनाई है. हालांकि, नेपाल नें संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनी वोटिंग के दौरान यूक्रेन पर किए गए आक्रमण की बड़ी मजबूती से रूस की निंदा की है. नेपाल ने रूस से “तत्काल प्रभाव से, बगैर किसी शर्त के, पूरी तरह से अपनी सेना को यूक्रेन की सीमा से हटा लेने की” मांग की है. जबसे रूस नें 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया हैं, इन दोनों देशों के बीच युद्ध विराम के कोई संकेत मिलते नज़र नहीं आ रहे हैं. दिन बीतने के साथ स्थिति और भी बदतर होती जा रही है. रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए अपने आक्रमण का यह कहकर बचाव किया गया कि उनका नाटो समूह में शामिल होने का निर्णय रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है, चूंकि मास्को, यूक्रेन से महज 600 किलोमीटर की दूरी पर होगा. हालांकि, विश्व के कई देश रूस द्वारा दिए गए इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं, और सीधे तौर पर रूस के यूक्रेन पर किए गए आक्रमण का विरोध किया. दक्षिण एशिया में, यूक्रेन और रूस के बीच के युद्ध को लेकर भारत ने, अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से तटस्थ स्थिति अपनाई है.. हालांकि, नेपाल नें संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनी वोटिंग के दौरान यूक्रेन पर किए गए आक्रमण की बड़ी मजबूती से रूस की निंदा की है. नेपाल ने रूस से “तत्काल प्रभाव से, बगैर किसी शर्त के, पूरी तरह से अपनी सेना को यूक्रेन की सीमा से हटा लेने की” मांग की है.जबसे रूस नें 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर आक्रमण किया हैं, इन दोनों देशों के बीच युद्ध विराम के कोई संकेत मिलते नज़र नहीं आ रहे हैं. दिन बीतने के साथ स्थिति और भी बदतर होती जा रही है. रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए अपने आक्रमण का यह कहकर बचाव किया गया कि उनका नाटो समूह में शामिल होने का निर्णय रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है, चूंकि मास्को, यूक्रेन से महज 600 किलोमीटर की दूरी पर होगा. हालांकि, विश्व के कई देश रूस द्वारा दिए गए इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं, और सीधे तौर पर रूस के यूक्रेन पर किए गए आक्रमण का विरोध किया. दक्षिण एशिया में, यूक्रेन और रूस के बीच के युद्ध को लेकर भारत ने, अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से तटस्थ स्थिति अपनाई है. हालांकि, नेपाल नें संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनी वोटिंग के दौरान यूक्रेन पर किए गए आक्रमण की बड़ी मजबूती से रूस की निंदा की है. नेपाल ने रूस से “तत्काल प्रभाव से, बगैर किसी शर्त के, पूरी तरह से अपनी सेना को यूक्रेन की सीमा से हटा लेने की” मांग की है. स वक्त नेपाल के लिए जो बात मायने रखती है वो है यूक्रेन में फंसे हुए उनके नागरिकों की सुरक्षा. इसके बावजूद, यूक्रेन में कितने नेपाली नागरिक फंसे हुए है, इसकी कोई सूचना अब तक उपलब्ध नहीं है. लेकिन रिपोर्ट के अनुसार बड़ी संख्या में यूक्रेन में रह रहे नेपाली नागरिकों ने युद्ध के चलते विभिन्न यूरोपियन देशों में शरण ले रखी है. 12 मार्च तक, कुल 580 नेपाली नागरिक जो यूक्रेन से भागे थे, उनमें से 466 पोलैंड, 87 स्लोवाकिया और 28 रोमानिया और 8 नागरिक हंगरी पहुँच चुके हैं. भारत के विपरीत, जिसने “ऑपरेशन गंगा” के तहत यूक्रेन में रह रहे अपने सभी नागरिकों को सुरक्षित निकाला, जबकि नेपाल ने अपने लोगों को निकालने के लिए काफी कम कार्य किए हैं. यूक्रेन से 6 नेपाली नागरिकों को निकालने का श्रेय भी भारत को जाता है, जो अब सुरक्षित रूप से नेपाल पहुंच चुके हैं. इससे पहले भी, जब अफ़गानिस्तान, तालिबानियों के हाथ में चला गया था, तब भी भारत को नेपाली नागरिकों को सुरक्षित निकालने का श्रेय प्राप्त है. अपनी पढ़ाई के सिलसिले में यूक्रेन गए नेपाली छात्र रोशन झा ने यूक्रेन के ऊपर रूस द्वारा किए गए आक्रमण के बाद की हृदयविदारक स्थिति के बारे में विस्तार सेबताया. ये उन छह छात्रों मे से एक है जिन्हें भारतीय सरकार द्वारा यूक्रेन से बचा कर लाया गया है. भारत सुरक्षित आने के बाद, रोशन झा ने कहा “मुझे वहां से सुरक्षित निकालने के लिए मैं भारत सरकार का शुक्रगुजार हूं, जहां मेरे देश नें अपने लोगों को रेस्क्यू करने में किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिया.”
यूक्रेन में 1300 सैनिक मारे जा चुके हैं
11 मार्च तक, यूक्रेन में 1300 सैनिकों के अलावा 564 आम नागरिक मारे जा चुके हैं; जबकि रूस में 400 सैनिक मारे गए हैं. अमेरिकी अनुमान के मुताबिक, रूस में हताहतों की संख्या 2000 से 4000 तक है. 1.5 मिलियन यूक्रेनी नागरिक अपनी जान बचाने के लिए अपने-अपने घरों को छोड़ कर पड़ोसी देशों में भाग गए हैं. अगर दोनों देशों के बीच युद्ध जल्द समाप्त नहीं हुआ तो, 5 से 10 मिलियन लोग यूक्रेन छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे और विभिन्न यूरोपियन देशों में शरणार्थी के तौर पर रहने को मज़बूर हो जाएंगे.
तीसरे विश्व युद्ध की संभावना बढ़ा रही बेचैनी
अगर वर्तमान में चल रहे रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध खत्म नहीं हुआ तो तीसरे विश्व युद्ध की संभावना बेचैनी बढ़ा रही हैं. अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो, ज्यादातर देशों के लिए तटस्थ बने रहना मुश्किल हो जाएगा. उन्हें फिर किसी एक का पक्ष लेने को मजबूर होना पड़ेगा. फिर चाहे वो अमेरिका-नाटो के समर्थन में यूक्रेन हो या फिर रूस के पक्ष में. यूक्रेन में आगे क्या होगा? यह बता पाना मुश्किल होगा. यूक्रेन की प्रो-पश्चिमी सरकार यूरोपियन यूनियन और नाटो समूह में शामिल होना चाहती है. हालांकि, रूस कीव में प्रो-रूसी शासन कायम करना चाहता है. यूक्रेन और रूस के बीच की विषम सैन्य शक्ति समीकरण के मद्देनज़र, यूक्रेन की सरकार के लिए रूसी सैन्य ताक़त का सामना करना मुश्किल होगा. पर ऐसी संभावना प्रबल है कि यूक्रेनी जनता और सेना दोनों ही आने वाले समय में रूसी सेना का कड़ा प्रतिरोध करेगी. अगर ये युद्ध लंबा चला तो, मास्को का कोष खाली होता जाएगा, जिसकी वजह से उससे यूक्रेन से बिल्कुल उसी तरह से अपनी सेना वापस बुलानी करनी पड़ सकती है जैसे वर्ष 1979 में, अफगानिस्तान पर रूसी सेना के आक्रमण के वक्त जहां 15000 रूसी सैनिक मारे गए थे, वहां से उन्होंने वापसी की थी. विश्व के किसी भी कोने में युद्ध ने कभी भी शांति पर विजय नहीं पाई है. देर-सबेर, रूस और यूक्रेन दोनों को एक-दूसरे के समक्ष आना ही पड़ेगा और अपने मतभेदों को कूटनीतिकी तरीकों से निपटाना पड़ेगा. हालांकि, दोनों देशों के बीच मध्यस्थता इसलिए भी ज़रूरी है ताकि न केवल युद्ध को रोका जा सके बल्कि सैनिकों और नागरिकों की होने वाली मौत पर भी रोक लगाई जा सके. मध्यस्थता की ज़रूरत इसलिए भी है ताकि यूक्रेनी लोगों या फिर अन्य देशों के नागरिक जैसे यूक्रेन में रह रहे नेपाली लोगों की पीड़ा कम की जा सके जो या तो देश छोड़ कर भाग रहे हैं या फिर दुविधापूर्ण जीवन जी रहे हैं. हालांकि, ये मध्यस्थता उन देशों के जरिए कतई नहीं आ सकती जिन्होंने पहले ही रूस अथवा यूक्रेन का पक्ष ले रखा है. ऐसी स्थिति में, ऐसे देश जिन्होंने रूस-यूक्रेन संकट में अपना तटस्थ रुख अपना रखा है, वे ही इन दो युद्धरत देशों के बीच एक मजबूत मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं. वैश्विक समुदाय, जिनमें राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी वर्ग, शिक्षाविद, पत्रकार और खासकर महिलायें आदि का ये पवित्र धर्म है कि वे अपनी सम्पूर्ण ताक़त का इस्तेमाल कर रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को समाप्त करवाएं. ऐसा कर पाने मे असफल होने की स्थिति में, ये न केवल रूस और यूक्रेन के लिए, अपितु सम्पूर्ण मानवजाति के लिए भी विनाशकारी साबित होगा. चूंकि, हम सब एक ही नाव में सवार हैं, हम या तो साथ तैरेंगे या साथ डूबेंगे.

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