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पाकिस्तान का स्थाई इलाज हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करे भारत, कश्मीर में नहीं घुस पाएंगे आतंकी

पाकिस्तान का स्थाई इलाज हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करे भारत, कश्मीर में नहीं घुस पाएंगे आतंकी
सीएन, नई दिल्ली।
पहलगाम जैसे आतंकी हमले के बाद हाजी पीर दर्रे की बात सामने आ रही है। हाजी पीर दर्रा हिमालय की पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में है। कहा जा रहा है कि 60 साल पहले की एक गलती भारत को बार-बार पुलवामा, पहलगाम जैसे घाव देती रहती है। यह भी कहा जा रहा है कि यह जम्मू और कश्मीर के पुंछ को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पीओके के रावलकोट से जोड़ता है। भारत हाजी पीर दर्रे को अपने पास रखकर पाकिस्तान को जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ करने से रोक सकता था। इससे इस्लामाबाद की भारत के जम्मू और कश्मीर में परेशानी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती। वह बस बिलबिला कर रह जाता। पहलगाम हमले के बाद भारत की ओर से बड़ी कार्रवाई किए जाने की मांग की जा रही है। लोग बदले की मांग कर रहे हैं। हाजी पीर दर्रा अगर भारत के पास हो तो रणनीतिक रूप से यह कई तरह से फायदेमंद है। अभी यह पाकिस्तान के कब्जे में है। अगर यह दर्रा भारत के पास होता तो इससे पुंछ और उरी के बीच सड़क की दूरी 282 किलोमीटर से घटकर 56 किलोमीटर हो जाती है। इससे जम्मू और कश्मीर घाटी के बीच बेहतर कनेक्टिविटी होती। इससे सेना की रसद आपूर्ति और कारोबार में भी सुधार होता। विभाजन से पहले उत्तर कश्मीर यानी जम्मू घाटी को दक्षिण कश्मीर यानी घाटी से जोड़ने वाली मुख्य सड़क हाजी पीर से ही होकर गुजरती थी। हालांकि 1948 में पाकिस्तान ने पीओके पर कब्जा कर लिया, जिसमें हाजी पीर दर्रा भी शामिल था। इससे यह रास्ता भारत के हाथ से निकल गया। यह दर्रा भारत के एक बड़े हिस्से तक आसानी से पहुंचने में मदद करता। इससे पाकिस्तान को लगातार अपनी नाजुक स्थिति का एहसास होता रहता। भारत ने 1965 में ताशकंद समझौते के दौरान पाकिस्तान को अपनी जीती हुई जमीन वापस कर दी थी। भारत की स्थिति मजबूत होने के बावजूद उसने हाजी पीर दर्रा इस्लामाबाद को लौटा दिया। यह गलती आज भी भारत को बार.बार घाव दे रहा है। पाकिस्तान हाजी पीर दर्रे का इस्तेमाल कश्मीर में घुसपैठ और आतंकवाद के लिए करके भारत को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। 1948 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने कश्मीर के लगभग एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान ने एक बार फिर 1965 में पूरे कश्मीर पर कब्जा करने की सोची। उसी साल अगस्त में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कश्मीर को अस्थिर करने और अंततः पाकिस्तानी सेना की मदद से उस पर कब्जा करने के लिए बड़ी संख्या में छापामारों को गुप्त रूप से कश्मीर में भेजने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर को मंजूरी दी। 15 अगस्त 1965 को भारतीय सेना ने संघर्ष विराम रेखा को पार किया और तीन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। हाजी पीर बुलगे पर कब्जा करने का भी निर्णय लिया गया, क्योंकि यह पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुख्य घुसपैठ मार्ग थ। इस ऑपरेशन को ऑपरेशन बख्शी नाम दिया गया था। भारत का यह ऑपरेशन बेहद कामयाब रहा था। 1965 के युद्ध के दौरान पश्चिमी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह ने हाजी पीर का प्लान बनाया। हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करने की कमान मेजर जनरल एसएस कलां के नेतृत्व वाली 19 इन्फैंट्री डिवीजन और ब्रिगेडियर जेडी बख्शी के नेतृत्व वाली 68 इन्फैंट्री ब्रिगेड को दी गई थी। 26 अगस्त को, 1 पैरा बटालियन सांक की ओर बढ़ी। उन्हें भारी बारिश में खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी। सांक पर कब्जा करने के बाद भारतीय सेना ने लेडवाली गली पर दबाव डाला और अगले दिन उस पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना की योजना बिंदोरी पर कब्जा करने की थी। मगर ब्रिगेडियर बख्शी समझ गए थे कि अब तक पाकिस्तान को पता चल गया होगा कि भारतीय हाजी पीर दर्रे के लिए दबाव बना रहे हैं। ऐसे में उन्होंने हाजी पीर दर्रे के लिए सीधे जाने का एकतरफा फैसला लिया। मेजर रंजीत सिंह दयाल को यह काम देते हुए ब्रिगेडियर बख्शी ने कहा अगर आप हाजी पीर जीतते हैं तो आप एक हीरो होंगे लेकिन अगर आप नहीं जीत पाते हैं तो मुझे एकतरफा फैसला लेने के लिए गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मेजर रंजीत सिंह दयाल 27 अगस्त की पूरी रात भारी बारिश में पैदल चले और 28 अगस्त को भारी बाधाओं के बावजूद हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने 29 अगस्त को इस दर्रे पर फिर से कब्जाने की कोशिश की मगर भारतीय सेना ने उन हमलों को विफल कर दिया। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौता हुआ जिसमें भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं को 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति में लौटने का प्रावधान था। इस यथास्थिति में बहादुरी से जीते गए हाजी पीर दर्रे को वापस करना भी शामिल था। उस वक्त भारत ने पाकिस्तानी क्षेत्र के 1,920 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया था जिसमें मुख्य रूप से सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्रों की उपजाऊ भूमि शामिल थी। इसी में रणनीतिक हाजी पीर दर्रा भी शामिल था। बाद में 2002 में एक इंटरव्यू में खुद ले. जनरल दयाल ने कहा था कि यह दर्रा भारत को एक राजनीतिक फायदा देता। इसे वापस सौंपना एक गलती थी।

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