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अंतरराष्ट्रीय

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दो ध्रुवों में बंटी दिखाई दे रही दुनिया

यूक्रेन समर्थक देश रूस के खिलाफ निंदा और प्रतिबंध को बना रहे हथियार
सीएन, नईदिल्ली।
रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे महायुद्ध में यूक्रेन में बड़ी तबाही मची है, लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और रूस पर लगाए गए तमाम तरह के आर्थिक-सामाजिक प्रतिबंधों के बावजूद पुतिन की सेना पीछे हटने को तैयार नहीं है. दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, इंटरनेशनल कोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में युद्ध को रोकने के लिए कई बार कहा जा चुका है, लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला है और युद्ध जारी है. दोनों देश अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और अब आम नागरिक भी मारे जा रहे हैं. यूक्रेन के कई शहर रूसी हमले के बाद वीरान और खंडहर नजर आ रहे हैं, लेकिन यूक्रेनी सेना रूसी सेना को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैइसी बीच एक बड़ी खबर है, जिसमें रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े इस युद्ध के बीच रूसी बॉर्डर से चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. रूसी बॉर्डर पर एक-दो नहीं बल्कि नाटो देशों के 30 हजार सैनिक युद्धाभ्यास कर रहे हैं. इस युद्धाभ्यास में परमाणु पनडुब्बी तक शामिल हैं, तो क्या नाटो देश जेलेंस्की की दो टूक सुनकर रूस पर किसी बड़े एक्शन की तैयारी कर रहे है? एक इंटरव्यू में जेलेस्की ने कहा है, “नाटो को या तो अब कहना चाहिए कि वह हमें स्वीकार कर रहा रहा है, या खुले तौर पर कहे कि वह हमें स्वीकार नहीं कर रहा है. नाटो देश रूस से डरते हैं, जो सच है.” क्रेन पर रूस के हमले (Russia Ukraine War Latest Updates) को लेकर पूरी दुनिया दो ध्रुवों में बंटी दिखाई दे रही है। एक पक्ष यूक्रेन के समर्थन में खड़ा है, जिसकी अगुवाई अमेरिका कर रहा है। दूसरा पक्ष रूस का समर्थन कर रहा है, जिसमें चीन और बेलारूस का नाम प्रमुखता से शामिल है। बाकी के अधिकतर देश गुप्त रूप से किसी एक पक्ष का समर्थन या विरोध कर रहे हैं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि इस लिस्ट में भारत (India on Russia Ukraine Crisis) का नाम भी शामिल है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि दुनिया में दूसरा शीतयुद्ध (Cold War 2) शुरू हो चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस ने भले ही यूक्रेन पर हमला (Russia Invade Ukraine) किया है, पर वास्तव में वह अपने रणनीतिक और चिर प्रतिद्वंदी दुश्मन अमेरिका को निशाना बना रहा है। यूक्रेन पर रूस के हमले का पैमाना और दायरा शीत युद्ध के दौरान मास्को की खतरनाक शक्ति प्रदर्शन की तरह लगता है। क्योकि, सोवियत संघ ने उस जमाने में 1956 में हंगरी, 1968 में चेकोस्लोवाकिया और 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया था। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बयानों को देखते हुए लग रहा है कि रूस अभी अपने अभियानों को पूरी ताकत से अंजाम नहीं दे रहा है। अपने हालिया भाषणों में पुतिन ने यूक्रेन के संप्रभुता और स्वतंत्रता के अधिकार को चुनौती दी है। उन्होंने इस हफ्ते की शुरुआत में दो अलग-अलग पीपुल्स रिपब्लिक डोनेट्स्क और लुहान्स्क को मान्यता देने के बाद सेना को पूर्वी यूक्रेन में शांतिरक्षक के रूप में तैनात करने का आदेश दिया था। इसके बाद उन्होंने एक विशेष सैन्य अभियान शुरू किया, जिसकी जद में राजधानी कीव समेत पूरा यूक्रेन आ गया। रूसी सेना के हवाई हमलों में यूक्रेन को भारी नुकसान पहुंचा। यूक्रेनी सेना अपने से कई गुना ताकतवर रूस के हमले का जवाब देने में बिलकुल भी सक्षम नहीं दिखी। रूस ने हमले के शुरुआती घंटे में ही यूक्रेन के एयर डिफेंस को तबाह कर दिया। इतना ही नहीं, पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन के सभी सैन्य ठिकानों को रूसी सेना ने लगभग बर्बाद कर दिया है।रूसी हमले के जवाब में अमेरिका समेत पश्चिमी शक्तियों ने निंदा और प्रतिबंधों को अपना हथियार बनाया। यूक्रेन समर्थन इन देशों ने रूस के ऊपर अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन करने का आरोप लगाया। अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के शब्दों में यह सिर्फ कार्रवाई की शुरुआत है। रूस को हर एक जान की कीमत अदा करनी पड़ेगी। अमेरिका समेत नाटो के कई सदस्य देश रूस को पूरी तरह से अलग-थलग करने के लिए लगातार प्रतिबंधों का ऐलान कर रहे हैं। लेकिन, देखने से लग रहा है कि रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को लेकर पहले से ही तैयार बैठा है। अगर इतिहास पर भी निगाह डालें तो रूस कभी भी पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के दबाव के आगे झुका नहीं है। सोवियत संघ का विघटन भी पश्तिमी देशों के प्रभाव के कारण ही हुआ था। इसके बावजूद रूस ने खुद को एक बड़ी सैन्य और आर्थिक ताकत बनाए रखा।

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