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आज 19 अप्रैल को है पुण्यतिथि : आदमखोर बाघों के शिकारी जिम कॉर्बेट कुछ खास थे कॉर्बेट
आज 19 अप्रैल को है पुण्यतिथि : आदमखोर बाघों के शिकारी जिम कॉर्बेट कुछ खास थे जिम कॉर्बेट
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। विख्यात लेखक व शिकारी जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 में नैनीताल में ही हुआ था। उन्हें पर्यावरण रक्षक के रूप में जाना जाता है। उन्हें ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कर्नल की रैंक प्राप्त थी। जिम का निधन आज के ही दिन 19 अप्रैल 1955 को केन्या में हुआ था। पहाड़ और जंगल में रहने की वजह से वह जानवरों को उनकी आवाज से पहचान लेते थे। उन्हें पर्यावरण और पशु.पक्षियों से काफी लगाव भी था। आदमखोर बाघों के शिकारी जिम कॉर्बेट कुछ खास थे जिम कॉर्बेट जिम कॉर्बेट को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। इंडो चाइनीज टाइगर को कार्बेट टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। रिटायर होने के बाद जिम कॉर्बेट ने मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं नाम की पुस्तक भी लिखी थी। 1928 में केसर.ए.हिंद की उपाधि से भी उन्हें नवाजा गया था। जिम कॉर्बेट ने शेरों को संरक्षित करने का सुझाव दिया था। जिसके बाद नेशनल पार्क की स्थापना की गयी। 1957 में इस नेशनल पार्क का नाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया। बतौर रेलवे कर्मचारी शुरु किया था जीवन नैनीताल में ही शुरुआती शिक्षा फिलैंडर स्मिथ कॉलेज से की और 19 वर्ष की आयु में रेलवे में नौकरी करनी शुरु कर दी। जिम की प्रारम्भिक शिक्षा नैनीताल के ओपनिंग स्कूल से की बाद में सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के कारण पढाई बीच में छोड़कर 18 वर्ष की उम्र में मोकामा घाट ;बिहारद्ध जाकर वहाँ रेलवे में नौकरी करने लगे। जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे। उन्हीं की तरह उनकी बहन ने भी विवाह नहीं किया। दोनों भाई-बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का दुख बांटते रहे। कुमाऊं तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे। जिम कार्बेट एक कुशल शिकारी थे। वे शिकार करनें में यहाँ दक्ष थे, वहीं एक अत्यन्त प्रभावशील लेखक भी थे। शिकार.कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणी है। उनकी श्माई इण्डिया पुस्तक बहुत चर्चित है। भारत.प्रेम उनका इतना अधिक था कि वे उसके यशगान में लग रहते थे। कुमाऊं और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था। ऐसे कुमाऊं-गढ़वाल के हमदर्द व्यक्ति के नाम पर गढ़वाल.कुमाऊं की धरती पर स्थापित पार्क का होना उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाने के ही बराबर है। अतरू जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र भी गौरवान्वित हुआ है, जिम कार्बेट के प्रति यह कुमाऊं.गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है। इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है। आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रूप में आदर से लिया जाता है। आदमखोर बाघों औऱ तेंदुओं में था कॉर्बेट का खौफ जिम कॉर्बेट को तत्कालीन अंग्रेजी सरकार उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाया जाता था। गढ़वाल और कुमाऊं में उस वक्त आदखोर शेरों का आतंक मचा हुआ था जिसे खत्म करने का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है। जिस पहले शेर को जिम कॉर्बेट ने मारा था उसने 436 लोगों को हत्या की थी। जिम कार्बेट ने जिस पहले शेर को मौत के घाट उतारा था उसने 1200 लोगों को मारा था। हालांकि दस्तावेजों में कॉर्बेट के नाम तकरीबन 12 शेर और तेंदुए मारने का बात है, लेकिन वास्तविकता में उन्होंने इससे कहीं ज्यादा आदमखोर शेरों का शिकार किया था। 1910 में जिस पहले तेंदुए को जिम ने मारा था उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था। जबकि दूसरे तेंदुए ने 126 लोगों को मौत के घाट उतारा था, उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था। बाघों और जंगली जानवरों से था खासा लगाव शेरों का शिकार करते.करते इनसे प्यार हो गया, कॉर्बेट ने कभी भी किसी ऐसे शेर को नहीं मारा जिसने किसी आदमी को नहीं मारा हो। शेरों से प्यार के चलते ही उन्होंने इनके लिए नेशनल पार्क बनाने का सुझाव दिया था। जिम कॉर्बेट अपनी बहन मैगी कॉर्बेट के साथ गर्नी हाउस में रहते थे। जिसे उन्होंने 1947 में केन्या जाते वक्त कलावती वर्मा को बेच दिया था, जिसे बाद में कॉर्बेट म्यूजियम के रूप में स्थापित कर दिया गया है।
नैनीताल में पर्यटन का बीड़ा उठाने वाली पहली ब्रिटिश महिला जेन मैरी कॉर्बेट
औपनिवेशिक काल में अपनी खोज के बाद से ही नैनीताल कई लोगों के लिए गर्मियों का ठिकाना रह चुका है। आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र और पहाड़ी शहर नैनीताल उस ब्रिटिश महिला के बारे में जानकारी शून्य है जिसने नैनीताल को एक टूरिस्ट हब बनाने का प्रयास सर्वप्रथम किया था। अचूक शिकारी, वन्यजीव संरक्षणकर्ता और पर्यावरणविद जिम कार्बेट की माँ मैरी जेन कार्बेट ने आज से सैकड़ों साल पहले नैनीताल में टूरिस्टों के लिए पहली आवास सुविधा का श्रीगणेश किया था। सन 1862 में जिम कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम कोए जो कि पहले अफगान युद्धों और बाद में 1840 के सिख युद्धों और विद्रोह के एक अनुभवी भी थे, को नैनीताल में पोस्ट मास्टर के रूप में नियुक्त किया गया था। एक पोस्टमास्टर की सीमित आय पर पंद्रह सदस्यों वाले बड़े परिवार का पालन-पोषण करना कठिन होने के कारण मैरी जेन ने परिवार की आय में इजाफे के लिए आगंतुकों के ठहरने की सुविधा के रूप में अपना आधा घर किराए पर लगा दिया था। यह पहली बार था जब नैनीताल में आगंतुकों के लिए ठहरने की सुविधा हुई थी।
