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दोस्त प्रिगोझिन की बगावत के बाद क्या होगा पुतिन का? किधर जाएगा रूस

दोस्त की बगावत के बाद क्या होगा पुतिन का? किधर जाएगा रूस
सीएन, मास्को।
रूस में भाड़े के सैनिकों के संगठन वैगनर ग्रुप का तेवर नरम पड़ गया है। उसके चीफ येवगेनी प्रिगोझिन ने रूसी सेना और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ झंडा उठा लिया था। यूक्रेन सीमा के पास रूस के दक्षिणी शहर रोस्तोव पर कब्जा करने के बाद प्रिगोझिन ने मॉस्को तक जस्टिस मार्च का ऐलान कर दिया था। रूस सहित पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई। पुतिन को देश को संबोधित करना पड़ा। उन्होंने प्रिगोझिन की हरकत को देशद्रोह करार दिया। प्रिगोझिन तब भी नहीं रुका। उसका दस्ता मॉस्को के काफी करीब तक चला आया। लेकिन फिर बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको ने बात की। तय हुआ कि रूस में वैगनर ग्रुप के लड़ाकों और प्रिगोझिन पर मुकदमे हटाए जाएंगे और प्रिगोझिन अब बेलारूस जाएगा। लेकिन क्या इस तरह मामला सुलझ गया है? क्या रूस अब यूक्रेन से पहले की तरह लड़ पाएगा? क्या इस घटनाक्रम से यूक्रेन मामले पर पुतिन नैतिक रूप से कमजोर नहीं पड़ गए हैं? पुतिन के बेहद करीबी आदमी ने बगावत की है। क्या अब यह मामला दब सकता है? प्रिगोझिन और पुतिन की दोस्ती उन दिनों की है, जब पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग के डिप्टी मेयर हुआ करते थे। रूस में पुतिन के मजबूत होने के साथ प्रिगोझिन का जलवा भी बढ़ा। फिर रूस ने जब क्रीमिया पर कब्जा किया, उन्हीं दिनों प्रिगोझिन ने भाड़े के लड़ाकों को जुटाना शुरू कर दिया। पुतिन ने क्रीमिया में उसका सहारा लिया। एक तरह से वैगनर ग्रुप पुतिन की प्राइवेट आर्मी की तरह काम कर रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से प्रिगोझिन ने रूसी डिफेंस मिनिस्टर सर्गेई शोइगु और रशियन आर्मी चीफ वालेरी गेरासिमोव को निशाने पर ले लिया था। वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसके बगावत कर सकने की भनक पुतिन को भी लग गई थी। इसीलिए यूक्रेन सीमा पर मौजूद सभी प्राइवेट लड़ाकों से कहा गया था कि वे रशियन आर्मी के पास रजिस्ट्रेशन कराएं। इसकी डेडलाइन 30 जून थी। प्रिगोझिन ने रजिस्ट्रेशन प्रोसेस का विरोध किया। उसे लगा कि रशियन आर्मी ने उसके ग्रुप का वजूद मिटा देने की चाल चल दी है। उसने बगावत कर दी। पेच लेकिन तब फंसा, जब पुतिन ने प्रिगोझिन की हरकत को देशद्रोह करार दिया। तब प्रिगोझिन ने भी कहा कि जल्द ही रूस को नई मिलिट्री लीडरशिप और नया प्रेसिडेंट मिलेगा। अब हालांकि बीच-बचाव के बाद प्रिगोझिन पीछे हट गया है। उसका कहना है कि रूसियों का खून बहे, ऐसा वह नहीं चाहता है, लिहाजा वह बेलारूस जा रहा है और उसके लड़ाके वापस यूक्रेन लौट रहे हैं, जहां रूसी सैनिकों के साथ वे मोर्चा संभाले हुए थे। लेकिन वैगनर के लड़ाकों पर मुकदमे वापस लेने और प्रिगोझिन के बेलारूस जाने से बात दबने वाली नहीं है। प्रिगोझिन के मुंह में खून लग चुका है। पुतिन ने भी कहा है कि ‘रूस के लोगों की पीठ में खंजर मारा गया।’ ऐसे में यह मामला कभी ठंडा नहीं होने वाला। प्रिगोझिन और पुतिन के रहने तक यह आग सुलगती रहेगी। दूसरा मुद्दा यह है कि क्या रूस अब यूक्रेन से पहले की तरह लड़ पाएगा? वैगनर ग्रुप यूक्रेन के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहा था। यूक्रेन में बाखमुत और दोनबास जैसे इलाकों पर रूसी दबदबा कायम करने में वैगनर के लड़ाकों का बड़ा रोल रहा है। वे डिजिटल वॉरफेयर के तौर-तरीकों से भी वाकिफ हैं। उनकी ताकत यूक्रेन के सैनिक भी मानते हैं। उनका कहना है कि वैगनर के लड़ाके बड़ी तादाद में हमला करते हैं। इसमें उनकी जान भी ज्यादा जाती है, लेकिन उनसे निपटना मुश्किल हो जाता है। इससे पहले रूसी सेना को भी कबूल करना पड़ा था कि वैगनर के लड़ाके रूसी हितों के लिए जान लड़ा देते हैं। लेकिन अब वह जज्बा शायद न रहे। वैगनर ग्रुप में भाड़े के सैनिक हैं। वे प्रिगोझिन के इशारे पर काम करते हैं। अब हो सकता है कि उनमें से कई लड़ाके अलग हो जाएं। यह भी हो सकता है कि अच्छा पैसा मिलने पर वे यूक्रेन का साथ देने लगें। इसके साथ ही रूसियों के कुछ राज यूक्रेन के हाथ लग सकते हैं। खुद रूसी सेना को भी इस बगावत के दौरान जिस तरह अपना फोकस, हथियार और सैनिक इसकी ओर शिफ्ट करने पड़े हैं, उसका असर आने वाले दिनों में दिख सकता है। रूसी सेना के लिए इतनी जल्दी वैगनर ग्रुप का विकल्प तैयार करना आसान नहीं है। तीसरा मुद्दा यह है कि क्या यूक्रेन पर हमले को लेकर पुतिन नैतिक रूप से कमजोर हो गए हैं? वैगनर ग्रुप के चीफ प्रिगोझिन ने यूक्रेन पर हमले के आधार पर एक बड़ा सवाल उठाया है। उसका कहना है कि रूस की लीडरशिप यूक्रेन पर हमले की वजहों के बारे में झूठ बोलती आ रही है। उसने पुतिन के इस दावे को खारिज कर दिया है कि 24 फरवरी 2022 को उन्होंने यूक्रेन पर इसलिए धावा बोला क्योंकि यूक्रेन क्रीमिया और दोनबास इलाके पर हमला करने वाला था। प्रिगोझिन का दावा है कि ’24 फरवरी से एक दिन पहले ऐसा कुछ नहीं होने वाला था।’ प्रिगोझिन ने कहा है, ‘रक्षा मंत्रालय जनता और राष्ट्रपति को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। वह गलतबयानी कर रहा है कि यूक्रेन पूरे नैटो देशों के साथ मिलकर हम पर हमला करने वाला था।’ प्रिगोझिन का कहना है कि रूस की लीडरशिप चाहती तो यूक्रेन के प्रेसिडेंट जेलेंस्की से बातचीत कर मामला सुलझा सकती थी और युद्ध की नौबत नहीं आती क्योंकि ‘जब जेलेंस्की राष्ट्रपति बने, तो वह समझौतों के लिए तैयार थे।’ प्रिगोझिन ने इस युद्ध के लिए सीधे तौर पर रूसी रक्षा मंत्री की महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार ठहराया। उसने भले ही पुतिन का नाम नहीं लिया, लेकिन युद्ध के फैसलों पर मुहर तो पुतिन की ही थी। पुतिन कहते रहे हैं कि जब सोवियत संघ के बिखरने के बाद यह तय हो गया था कि अमेरिका की अगुवाई में नैटो पूर्वी यूरोप की ओर विस्तार नहीं करेगा, तो उस बात को क्यों नहीं माना गया। वह रूस के पड़ोस तक में नैटो के कदम रखने से नाराज रहे हैं। यूक्रेन को पश्चिमी देश आज नहीं, करीब एक दशक से मिलिट्री ट्रेनिंग और हथियार दे रहे हैं। रूस के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ब्लैक सी में अमेरिका और ब्रिटेन के जंगी जहाज गश्त लगाने लगे थे। यूक्रेन भी नैटो की ओर झुकने लगा था। खतरे को देखते हुए रूस ने पहले क्रीमिया को कब्जे में किया और फिर भी जब यूक्रेन का रुख नहीं बदला, तब पुतिन ने उस पर हमला कर दिया। रूसी रक्षा मंत्री से नाराज होकर प्रिगोझिन ने यूक्रेन हमले की वजहों पर सवाल उठाए हैं। वह क्रूर अपराधी रहा है। करीब एक दशक उसने जेल की सजा काटी है। पुतिन के संग-साथ से वह एक बड़ी ताकत बन गया, लेकिन कूटनीतिक मामलों की उसे कितनी जानकारी और समझ है, इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर उसके कहने के मुताबिक जेलेंस्की समझौते के लिए तैयार थे, तो पिछले करीब डेढ़ साल में उन्होंने इस दिशा में क्या किया? फिर भी पुतिन के लिए यह बगावत एक झटका तो है ही। और जब करीब रहा शख्स सवाल उठाए तो उसकी आंच से बचा नहीं जा सकता। इस बगावत के चलते रूस में भी पुतिन की पकड़ कमजोर हो सकती है। चौथा मुद्दा यह है कि पिछले कुछ समय से यूक्रेन के जवाबी हमले कामयाब नहीं हो पा रहे थे, लेकिन क्या अब उसका हौसला बढ़ेगा? हौसला बढ़ेगा नहीं, बढ़ चुका है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की कह रहे हैं कि पुतिन ‘बहुत डरे हुए हैं। उन्हें पता है कि उन्हें किसका डर है क्योंकि खुद उन्होंने ही यह खतरा पैदा किया है। दुनिया ने देख लिया है कि रूस के बॉसेज के कंट्रोल में कुछ भी नहीं है।‘ यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा ने कहा, ‘दुश्मन के खेमे में कोई भी उठापटक हमारे फायदे की बात है।’ यूक्रेन के नेताओं का हौसला बढ़ने की वजहें साफ हैं। यूक्रेन के लुहांस्क और दोनेस्क इलाकों पर रूस का कब्जा हो चुका है। वहां वैगनर ग्रुप के ठिकाने हैं। लेकिन वहां से कई लड़ाके प्रिगोझिन के निेर्देश पर मॉस्को कूच कर गए थे। इससे उन इलाकों में यूक्रेन को पलटवार करने में आसानी होगी। बताया जा रहा है कि बगावत के बाद यूक्रेन की सेना ने बाखमुत के कुछ हिस्सों पर दोबारा कब्जा कर लिया है। वैगनर ग्रुप के लड़ाके पूरे जोशोखरोश के साथ लड़ रहे थे, लेकिन अब शायद वैसी बात न दिखे। रूस ने जो करीब 2 लाख सैनिक यूक्रेन युद्ध में लगा रखे हैं, उनमें से काफी लोगों को पिछले सालभर में रिक्रूट किया गया है। उन्हें दूसरे सैनिकों की तरह ज्यादा ट्रेनिंग नहीं मिली है। ऐसे में वैगनर ग्रुप के साथ तनातनी का फायदा यूक्रेन को मिलेगा। पांचवां मुद्दा यह है कि क्या अब लड़ाई खत्म होने की उम्मीद की जा सकती है? लड़ाई जल्द खत्म हो या न हो, रूसी आक्रमण की धार कुंद पड़ जाएगी, इतना तो साफ लग रहा है। घर में ही बगावत होने से रूसी सेना का फोकस बंट गया है। उसे वैगनर ग्रुप के लड़ाकों पर नजर रखनी होगी। देखना होगा कि कितने लड़ाके उसके रजिस्ट्रेशन प्रोसेस में उसके पाले में आते हैं। जो नहीं आएंगे, वे क्या करेंगे, इस पर भी रशियन आर्मी को नजर रखनी होगी। पिछले 15 महीनों से चल रही लड़ाई की भारी कीमत रूस को चुकानी पड़ी है। आर्थिक प्रतिबंधों के बीच इतने लंबे समय से युद्ध का खर्च एक बड़ा बोझ बन चुका है। दूसरी ओर, पश्चिमी देश यूक्रेन के लिए अपना खजाना खोले हुए हैं। ऐसे में हो सकता है कि वैगनर ग्रुप की बगावत के बाद रूस इस युद्ध को और बढ़ाने के बजाय इसका दायरा घटाने पर ध्यान दे। हो सकता है कि जिन इलाकों पर वह आसानी से कब्जा बनाए रख सकता हो, वहीं तक खुद को समेट ले। दूसरी ओर यूक्रेन का हौसला बढ़ तो गया है, लेकिन जमीनी हकीकत और रूसी सेना की ताकत को एकदम खारिज नहीं किया जा सकता। इसी जून महीने में यूक्रेन ने दोनबास के रूसी कब्जे वाले इलाकों और क्रीमिया को जोड़ने वाले कॉरिडोर पर धावा बोला था। खेरसोन और जैपोरिजिया के इलाकों में हमला किया। लेकिन उसके सैनिकों को कुछ खास सफलता नहीं मिल पा रही थी क्योंकि रूसी सैनिकों ने दबाव बना रखा था। हो सकता है कि स्टेलमेट जैसी सिचुएशन बन जाए। जंग का जो करीब 600 मील लंबा मोर्चा है, वही एक तरह से यूक्रेन और रूस के बीच नया बॉर्डर बन जाए। या यह भी हो सकता है कि बढ़े हुए हौसले और पश्चिमी देशों के नए हथियारों के दम पर यूक्रेन आने वाले हफ्तों में रूस को पीछे धकेल दे। रूसी सैनिकों का मनोबल कमजोर पड़ा और पुतिन के लिए अंदरूनी हालात ज्यादा मुश्किल हो गए, तो यूक्रेन को कामयाबी मिल सकती है।

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