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वाईटीडीओ नैनीताल दे रहा मुक्तिनाथ (नेपाल ) यात्रा का सुनहरा अवसर

मुक्तिनाथ 108 दिव्य देशों में से एक, अनेक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित
सीएन, नैनीताल।
पर्यटन नगरी नैनीताल की प्रसिद्ध टूर एजेंसी वाईटीडीओ 8 दिवसीय मुक्तिनाथ (मुस्तान्ग ) नेपाल यात्रा आयोजित कर रही है।1 जून से 8 जून 2022 के मध्य यह यात्रा होगी। इसके अलावा 15 जून से 22 जून को भी मुक्तिनाथ (मुस्तान्ग ) नेपाल यात्रा आयोजित यह यात्रा हवाई जहाज से होगी। टूर एजेंसी वाईटीडीओ के संचालक विजय मोहन सिंह खाती ने बताया कि यात्रा के अन्य आर्कषण पोखरा, पशुपतिनाथ ( काठमांडू ) धनगड़ी से पोखरा, पोखरा से जोम सोम, जोमसोम से काठमांडू, धनगड़ी। (हवाई यात्रा) होंगे। उन्होंने बताया कि यात्रा में जाने के लिए यात्री 05942-235557, 9557324687, 9412986477 पर संपर्क कर सकते है।
मुक्तिनाथ 108 दिव्य देशों में से एक
मुक्तिनाथ 108 दिव्य देशों में से एक है। यह ‘दिव्य देश’ वैष्णवों का पवित्र मंदिर होता है। पारंपरिक रूप से विष्णु शालिग्राम शिला या शालिग्राम पत्थर के रूप में पूजे जाते हैं। इस पत्थर का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में पाए जाने वाले कीटों के जीवाश्म से हुआ था, जो मुख्यत: टेथिस सागर में पाए जाते थे। जहां अब हिमालय पर्वत है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। इन्हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्णु ने उनकी मदद की थी। कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्नी वृंदा अपने सतीत्व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था। ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर में निवास करते हैं। मुक्तिनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसी स्थान से होकर उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र के महान बौद्ध भिक्षु पद्मसंभव बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए तिब्बत गए थे। मुक्तिनाथ हेलिकॉप्टर के द्वारा पोखरा-मुक्तिनाथ मार्ग या जोमसोम मार्ग से भी एक दिन में जाया जा सकता है। इस मार्ग ने परंपरागत चढ़ाई के रास्ते को कुछ हद तक कम किया है। लेकिन आज भी आम लोग मुक्तिनाथ जाने के लिए चढ़ाई को ही प्राथमिकता देते हैं। चढ़ाई के समय दो अलग-अलग रास्ते मिलते हैं, जो काली गंडक नदी के पास तातोपानी नामक जगह पर जाकर आपस में मिल जाती है। रास्ते में आमतौर पर सभी जगहों पर रुकने के लिए निजी लॉज मिल जाते हैं। ये लॉज सभी तरह की मुलभूत सुविधाएं मुहैया कराते हैं। कई बार तो यात्रियों के लिए काफी बेहतर सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। इन सबके बावजूद तीर्थयात्रियों को अपने साथ स्लिपींग बैग भी जरूर ले जाना चाहिए ताकि किसी भी तरह के अतिरिक्त परेशानियों से बचा जा सके। यात्रा के दौरान मार्ग में पिट्ठू आसानी से उपलब्ध हो जाते हें। इन पिट्ठुओं को यात्रियों के द्वारा ही भोजन दिया जाता है। चूंकि इस मार्ग का उपयोग विदेशियों के द्वारा भी किया जाता है, अत: यहां खाने की अच्छी व्यवस्था होती है। भोजन में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन उपलब्ध रहते हैं। इसके अलावा सीलबंद पानी भी आसानी से मिल जाता है। लेकिन सामान्यत: नेपाली शैली का भोजन दाल-भात आसानी से मिलता है। अगर आप गाइड रखना चाहते हैं तो वह भी मिल सकता है।
पहचान पत्र और मुद्रा
भारतीयों के लिए वीजा की कोई आवश्‍यकता नहीं है। लेकिन वैसे यात्री जो हवाई मार्ग से यात्रा करते हैं, उनके लिए मतदाता पहचानपत्र या पैन कार्ड संबंधी दस्‍तावेज देना आवश्‍यक है। भारतीय मुद्रा अबाध रूप से लाया जा सकता है। विनिमय की सुविधा भी उपलब्‍ध है। लेकिन 100 रूपये से ज्‍यादा का नोट ले जाना प्रतिबंधित है। भारत के 100 रूपये के नोट के बदले 160 नेपाली रूपए दिया जाता है।
भारत से मुक्तिनाथ
राजधानी दिल्‍ली से काठमांडु के लिए नियमित रूप से फ्लाइटें हैं। इसके अलावा कोलकाता, वाराणसी, बेंगलोर और पटना से भी नियमित फ्लाइटें हैं। दिल्‍ली और कोलकाता से सड़क मार्ग के द्वारा भी यात्रा किया जा सकता है। इसमें कुल 8-10 घंटे लगते हैं। नेपाल स्थित बीरगंज रक्‍सौल से काफी नजदीक है। यहां से काठमांडु के लिए हवाई यात्रा का मार्ग मात्र 30 मिनट की है। गोरखपुर से भी काठमांडु जाया जा सकता है।
काठमांडु से मुक्तिनाथ
पोखरा को मुक्तिनाथ का ‘गेटवे’ भी कहा जाता है जो केंद्रीय नेपाल में स्थित है। दर्शानार्थियों को यह सलाह दी जाती है कि वे पहले काठमांडु आएं तथा वहां से पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्‍यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर पोखरा पहुंचने के लिए कुल 200 किमी की दूरी तय करनी होती है। पोखरा से मुक्तिनाथ के लिए 8-9 घंटे की चढ़ाई करनी होती है। इसके साथ ही टट्टू से भी जाया जा सकता है।

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