धर्मक्षेत्र
सावन के हर मंगलवार को करते हैं मंगला गौरी व्रत, जानें कथा
सावन के हर मंगलवार को करते हैं मंगला गौरी व्रत, जानें कथा
सीएन, उज्जैन। हिंदू धर्म में श्रावण यानी सावन मास का विशेष महत्व है। वैसे तो ये महीना भगवान शिव को समर्पित है, लेकन इस महीने में देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भी कई व्रत किए जाते हैं। मंगला गौरी व्रत भी इनमें से एक है। ये व्रत सावन मास के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। इस बार सावन का अधिक मास होने से मंगला गौरी व्रत की संख्या में भी वृद्धि हुई है। जय दुर्गा ज्योतिष सेवा संस्थान एवं अनुष्ठान केंद्र मंदसौर के ज्योतिषाचार्य पंडित यशवंत जोशी के अनुसार, मंगला गौरी व्रत महिला प्रधान है। ये व्रत कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं। पुराणों की मानें ते विवाह योग्य कन्या ये व्रत मनचाहे पति के लिए करती हैं और विवाहित महिलाएं ये व्रत परिवार में सुख-समृद्धि के लिए। इस व्रत के शुभ प्रभाव से वैवाहिक जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती है।
अधिक मास होने से 9 बार किया जाएगा ये व्रत
पंचांग के अनुसार, इस सावन का अधिक मास होने से मंगला गौरी व्रत की संख्या में भी वृद्धि होगी। आमतौर पर सावन मास में ये व्रत 4 से 5 बार किया जाता है, लेकिन इस बार ये व्रत 9 बार किया जाएगा। सावन मास का आरंभ 4 जुलाई से होगा और समापन 31 अगस्त को। इस दौरान अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा। इसके पहले सावन का अधिक मास साल 2004 में आया था।
कब-कब किया जाएगा मंगला गौरी व्रत?
– चौथा मंगला गौरी व्रत- 25 जुलाई
– पांचवां मंगला गौरी व्रत- 1 अगस्त
– छठां मंगला गौरी व्रत- 8 अगस्त
– सातवां मंगला गौरी व्रत- 15 अगस्त
– आठवां मंगला गौरी व्रत- 22 अगस्त
– नौवां व अंतिम मंगला गौरी व्रत- 29 अगस्त
मंगला गौरी व्रत कथा
एक नगर में एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ सुखी से जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे धन दौलत की कोई कमी नहीं थी और वह खुशहाल जिंदगी बिता रहा था। लेकिन उस व्यापारी को एक ही दुख था कि उसके कोई संतान नहीं थी। इसलिए सारी सुख सुविधाएं होते हुए थी दोनों पति पत्नी खुश नहीं रहते थे। रात-दिन पूजा-पाठ में लगे रहते थे और बहुत पूर्जा अर्चना करने के बाद उन्हें पुत्र का वरदान प्राप्त हुआ। लेकिन उसके जन्म के समय ज्योतिषियों ने कहा कि वह अल्पायु है और 16 साल का होते ही सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानने के बाद पति पत्नी और भी दुखी हो गए। लेकिन उन्होंने इसे ही अपना और पुत्र का भाग्य मान लिया। उन्होंने 16 साल की उम्र से पहले ही अपने बेटे का विवाह एक सुकन्या से कर दिया। इस कन्या की माता मां मंगला गौरी का व्रत किया करती थी और उसने अपनी पुत्री को भी विवाह के बाद सुखी जीवन के लिए मां मंगला गौरी का व्रत रखने की सलाह दी। विवाह के बाद कन्या ने ससुराल आकर विधि-विधान से मंगला गौरी व्रत किया और मां गौरी की पूजा-अर्चना की। जिसके परिणाम स्वरूप उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और सेठ के पुत्र की मृत्यु टल गई। तभी से मंगला गौरी व्रत की मान्यता अधिक बढ़ गई।
