धर्मक्षेत्र
गुप्त नवरात्र पर विशेष : उत्तराखंड में आदि शक्ति मां अंबिका देवी का दरबार आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण
रमाकांत, पिथौरागढ़। जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत कोठेरा गांव में स्थित आदि शक्ति मां अंबिका देवी का दरबार आध्यात्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थान है। परम आस्था का केंद्र रही देवी की यह पावन भूमि परम पूजनीय है। सुंदरहारी पर्वत शृंखलाओं की गोद में स्थित इस मंदिर के चारों ओर का आभामंडल बरबस ही मन मोह लेता है। माता पार्वती से संबंधित स्थल के बारे में महर्षि व्यास जी ने कहा है कि ‘शैल’ पर्वत के उत्तम प्रदेश में कालिका मंदिर हैं। पहले ‘कौशिकी’ नाम से ‘चंडमुंड’ वध और ‘रक्तबीज’ का रुधिर-पान कराया गया था। वह काल को भी देवताओं का नाश करने वाली ‘काली’ ‘शैल’ पर्वत पर स्थित हैं। देवी ‘त्रिशूल’, ‘पट्टिश’, ‘पाश’, ‘मुद्दगर’, ‘शक्ति’ आदि धारण करने वाली घोररूपा विशालाक्षी होने के साथ ही भक्तों के लिए वरदा ‘काली’ हैं। उहोंने ‘शैल’ पर्वत के पूर्व भाग में स्थित है। वह देवताओं की मुख्य शक्तियाँ’, सेल ‘मातृकाओं’ और ‘विद्याधरों’ से सेवित हैं। उनका समरूप पापात्मा नहीं जा सकता। उन ‘कालिका’ के स्मरण-मात्र से काली-कल्मषों का नाश, बालग्रहों तथा बलवान नक्षत्र का निरा-करण हो जाता है। राक्षस भाग जाते हैं। मनुष्य को सिद्धि प्राप्त होती है। वह देवों से सेवित हैं। व्यवसाय होने पर अभी भी प्रस्ताव मिलता है। रुष्ट होने पर भी विनाश होता है। उनके माहात्म्य में कहा गया है कि चर-अचर को विनाश कर, शक्तिशाली देवताओं का युद्धक्षेत्र में विनाश कर, शैलवासिनी कालिका माता के प्रसंग में मां अंबिका देवी की महिमा का वर्णन पुराणों के अनुसार वर्णित है, जिसके अनुसार मां अंबिका के दर्शन और पूजन का महत्व सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला बताया गया है। अंबिका माता को देवी दुर्गा का एक रूप माना जाता है, अर्थात आदिशक्ति, शक्ति और ब्रह्मांड की मां के रूप में भी पूजा की जाती है। शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। यहां देवी की शिव व शक्ति दोनों सैद्धांतिक में पूजा होती है, इस स्थान पर पिंडी स्वरूप में देवी के दर्शन होते हैं, साकार स्वरूप में मां आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, तीसरे हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र की मूर्ति है। अम्बिका माता को अम्बा, भगवती, ललिताम्बिका, भवानी, और महामाया जैसे तारामंडल से भी जाना जाता है। कालिका माता व मां अंबिका देवी के विभिन्न सिद्धांतों से लेकर शोभित शैल पर्वत पर ‘शुंभ’ दैत्यों से पराजित देवगणों ने यही ग्यान भगवती की स्तुति की स्तुति से मां काली ने विभिन्न रूपों में अवतार लेकर देवताओं का वध किया, मां अंबिका के अवतारों में से एक यह स्तुति मानसखंड में सुंदर शब्दों में वर्णित है। जिसमें ‘शेष’ भगवान के भी अपने विशाल प्रशंसकों को नीचे झुका कर नम्र हो जाते हैं, वह देवी अम्बिका सदा अपने भक्तों पर कृपा करती हैं, जो कि व्यासजी ने अम्बिका देवी की महिमा के साथ वर्णित की हैं –ततोअम्बिका महादेवी शैलो देश निवासिनीम् सेवितां देवराजेन चन्द्राबिम्बभोजनानाम् सम्पूज्य विधिवद् विप्रा गंधपुष्पाक्षतैः शुभै:। मानवोऽभिप्सितान् कामानवाप्नोति न संशयः कुल समग्र भगवती अम्बिका का पौराणिक स्थल जिला पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर एक बार देवी की पूजा करने से संपूर्ण बुराइयां शांत हो जाती है।
रमाकांत पन्त
