धर्मक्षेत्र
आज 5 मार्च को है नवरात्र की अष्टमी : सुने राहु ग्रह को नियंत्रित करने वाली मां महागौरी की कथा
आज 5 मार्च को है नवरात्र की अष्टमी : सुने राहु ग्रह को नियंत्रित करने वाली मां महागौरी की कथा
सीएन, हरिद्वार। नवरात्रि हिंदू धर्म का बहुत ही पवित्र त्यौहार है। यह 9 रात और 10 दिनों के लिए मनाया जाता है। भले ही देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से में इसे दशहरे के रूप में मनाया जाता हो, लेकिन भारत के पूर्वी राज्यों में दुर्गा पूजा के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि के आठवें दिन नवदुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा.अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती है। जिसे एक अशुभ ग्रह भी माना जाता है। बैल पर बैठने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। मां महागौरी की चार भुजाएँ बताई गई है। जिनमें उन्होंने एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरू, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चौथा हाथ में वरद मुद्रा बनाये हुए है।
मां महागौरी की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव देवी सती के निधन के कारण बहुत दुखी थे। वे बहुत ही गहन समाधि में चले गए। सब देवतायों ने उनसे अपनी समाधि तोड़ने की बहुत प्राथना की। लेकिन भगवान शिव ने समाधि से बाहर आने से इनकार कर दिया और कई वर्षों तक अपनी समाधि में बैठे रहे। इसी बीच, तारकासुर नाम का एक राक्षस स्वर्ग में अशांति पैदा कर रहा था। तब देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा की और उनसे राक्षस को हराने का उपाय पूछा। तब देवी दुर्गा ने कहा की जब देवी सती का दूसरा जन्म होगा। वो भगवान शिव को उनकी समाधि से बाहर लेकर आएगी। उसके बाद उनका शिव से विवाह होगा फिर उनकी संतान ही इस राक्षस का वध करेंगी। देवताओं की प्रार्थना के बाद, देवी सती ने हिमालय की बेटी मां शैलपुत्री के रूप में पुनर्जन्म लिया। उन्हें मां पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। एक दिन, नारद ऋषि मां पार्वती के महल में पहुंचे और उन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में सब याद दिलाया। तब नारद मुनि ने उनको बताया की भगवान शिव को पाने के लिए उन्हें कठिन तपस्या करनी होगी, ताकि भगवान शिव को उसके पिछले जीवन के बारे में पता चल सके। माँ पार्वती ने भी सहमति व्यक्त की और अपने शाही निवास की सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया। वह एक जंगल में गई। वहा पर तपस्या करते हुए कई हजारों साल बीत गए लेकिन मां पार्वती ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठंड, मूसलाधार बारिश और तूफान सभी मौसम में लगातार तपस्या करती रही। कुछ समय बाद उन्होंने अन्न और जल भी त्याग दिया। जिसकी वजह से उनका शरीर बहुत ही कमजोर हो गया। अत्यधिक तपस्या के कारण माँ पार्वती ने अपनी सारी शक्तियां खो दीं। अंत में भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से यह भी जान लिया की वे देवी सती का ही पुनर्जन्म है। सब कुछ जानने के बाद भगवान शिव और पार्वती से शादी करने को तैयार हो गये। चूंकि माँ पार्वती अधिक तपस्या की वजह से बहुत ही दुर्बल हो गई थी। इसलिए भगवान शिव ने उनका श्रृंगार किया। भगवान शिव ने अपने बालों से गंगा के पवित्र जल से माँ पार्वती नहलाया। इस पवित्र जल ने माँ पार्वती के शरीर से सभी अशुद्धियों को धो दिया, और वह अपनी शक्ति और तेज को दोबारा पा लेती है। माँ दुर्गा के इसी रूप को महागौरी के नाम से जाना जाता है। अपने असाधारण तेज के कारण, माँ पार्वती को महागौरी के नाम से भी जाना जाने लगा। महागौरी सफेद कपड़े पहनती है, सफेद रंग के बैल की सवारी करती हैए और उनकी चार भुजाएँ हैं। वह अपने प्रत्येक हाथ में एक त्रिशूल, कमल और डमरू रखती है। उनका चौथा हाथ अपने भक्तों को हमेशा आशीर्वाद देता है। माँ महागौरी हर जीव की रक्षा करती है। वे आपकी आराध्य देवी भी हो सकती है जो अपने भक्तों की हमेशा देखभाल करती है और उनकी परेशानियों को भी दूर करती है। महागौरी का वाहन बैल है। उन्हें हमेशा एक बैल पर सवार दिखाया जाता है। बैल पर सवार होने की वजह से इनको वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
महागौरी मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
 
 
																						








 
												



















 






 
















