धर्मक्षेत्र
महाशिवरात्रि की कथा: जब शिकार की तलाश में गुरुद्रुह से अनजाने में शिव पूजा हो गई
महाशिवरात्रि की कथा: जब शिकार की तलाश में गुरुद्रुह से अनजाने में शिव पूजा हो गई
सीएन, हरिद्वार। महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग जो महादेव का विशालकाय स्वरूप ज्योर्तिलिंग माना गया है। शिवपुराण के अनुसार, किसी समय काशी में एक भील रहता था, उसका नाम गुरुद्रुह था। वो जंगली जानवरों का शिकार करके अपना घर चलाता था। एक बार गुरुद्रुह महाशिवरात्रि के दिन शिकार करने जंगल में गया। लेकिन दिन भर उसे कोई शिकार नहीं मिला। शिकार की तलाश में वह रात के समय एक बिल्व के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था। कुछ देर बाद गुरुद्रुह को एक हिरनी दिखी। जैसे ही गुरुद्रुह ने हिरणी को मारने धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते शिवलिंग पर गिर गए। इस तरह रात के पहले पहर में शिकारी से अनजाने में शिव पूजा हो गई। हिरनी ने शिकारी को देखकर बोला मुझे अभी मत मारो, मेरे बच्चे मेरा रास्ता देख रहे हैं। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर तु लौट आऊंगी। गुरुद्रुह ने उस हिरनी को छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद हिरनी की बहन वहां आई। इस बार भी गुरुद्रुह ने उसे मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो शिवलिंग पर पुन बिल्व पत्र आ गिरे और शिवजी की पूजा हो गई। हिरनी की बहन भी बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने का कहकर चली गई। कुछ देर बाद वहां एक हिरन आया, इस बार भी ऐसा ही हुआ और तीसरे पहर में भी शिवजी की पूजा हो गई। कुछ देर बाद दोनों हिरनी और वह हिरन अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए स्वयं शिकार बनकर गुरुद्रुह के पास आ गए। उन्हें मारने के लिए गुरुद्रुह ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया, इस समय चौथे पहर में भी शिवजी की पूजा हो गई। गुरुद्रुह दिन भर से भूखा-प्यासा तो था ही। इस तरह अंजाने में उससे महाशिवरात्रि का व्रत-पूजा भी हो गई, जिससे उसकी बुद्धि निर्मल हो गई। ऐसा होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी भगवान शिव भी शिकार पर प्रसन्न होकर वहां प्रकट हो गए। शिवजी ने उसे वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम तुमसे मिलेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता भी करेंगे। वही शिकारी त्रेतायुग में निषादराज बना, जिससे श्रीराम ने मित्रता की। महाशिवरात्रि पर जो ये कथा सुनता है, उसका व्रत पूर्ण हो जाता है और उसकी हर इच्छा भी पूरी हो जाती है। इस कथा को सुनकर व्यक्ति मृत्यु के बाद शिव लोक में वास करता है।
राजा चित्त्रसेन और महाशिवरात्रि की कथा
एक समय की बात है, एक सम्राट चित्त्रसेन अपने राज्य में बहुत ही खुशहाल जीवन जी रहा था। वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और हर वर्ष महाशिवरात्रि का व्रत विधिपूर्वक करता था। एक वर्ष जब महाशिवरात्रि का दिन नजदीक आया, वह बहुत बीमार हो गया। उसका शरीर कमजोर था और वह पूजा करने के लायक नहीं था। तभी उसकी पत्नी ने उसे एक सुझाव दिया कि वह महाशिवरात्रि का व्रत पूरी श्रद्धा से करने के बजाय एक दिन पहले एक छोटी सी पूजा कर ले और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उसकी पूजा और व्रत का महत्व समझे। राजा ने अपनी पत्नी की बात मानी और पूजा शुरू की। उस रात भगवान शिव ने राजा को दर्शन दिए और उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसे स्वास्थ्य, दीर्घायु और अपार सुखों का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव ने राजा से कहा जो भी मेरी पूजा और व्रत सच्चे दिल से करता हैए वह चाहे जिस भी अवस्था में हो, उसकी संजीवनी शक्ति उसे प्राप्त होती है।
भगवान शिव और मदनासुर की कथा
किसी समय की बात है, एक राक्षस का नाम मदनासुर था। वह बहुत ही शक्तिशाली और दुष्ट था। उसने देवताओं से युद्ध किया और उन्हें पराजित कर दिया। भगवान शिव के दर्शन करने के बाद उसने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया कि वह अमर हो जाएगा। मदनासुर ने यह वरदान प्राप्त करने के बाद देवताओं के लिए बहुत परेशानियां खड़ी कर दी थीं। भगवान शिव ने महाशिवरात्रि के दिन मदनासुर को चुनौती दी और कहा कि जो कोई भी महाशिवरात्रि के दिन व्रत और पूजा करेगा वह अमर नहीं हो सकता। भगवान शिव ने मदनासुर को बताया कि उनकी पूजा से भक्ति और सत्य का सच्चा रूप ही अमरता की प्राप्ति का मार्ग है। इसके बाद मदनासुर ने शिव पूजा को स्वीकार किया और उसकी बुराई समाप्त हो गई।
गंगा का पृथ्वी पर आगमन और महाशिवरात्रि
यह कथा विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। यह कथा एक अद्भुत साक्षात्कार की ओर संकेत करती है, जो महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। एक समय की बात है, जब गंगा देवी ने स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का निर्णय लिया था। देवता चिंतित थे क्योंकि गंगा का प्रलयकारी जल पृथ्वी पर आने से कई तबाही कर सकता था। भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित करने का निर्णय लिया ताकि वह पृथ्वी पर धीरे.धीरे बह सके और कोई भी भय नहीं हो। महाशिवरात्रि के दिन जब गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो रही थी भगवान शिव ने अपने जटाओं में गंगा को धारण किया, जिससे उसका वेग नियंत्रित हो सका। इस महान घटना की याद में महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने की परंपरा बनी।
पार्वती जी की तपस्या और महाशिवरात्रि
यह कथा विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित है। एक समय की बात है, देवी पार्वती ने भगवान शिव के साथ विवाह के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखा और रात भर जागरण किया। उनके इस तप के परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उनसे प्रसन्न होकर विवाह का प्रस्ताव दिया। इस दिन को श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक रूप में मनाना शुरू हुआ।
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