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खतरा : उत्तराखंड में भी भूकंप का साया, म्यांमार की इस आपदा ने दी है एक गंभीर चेतावनी

खतरा : उत्तराखंड में भी भूकंप का साया, म्यांमार की इस आपदा ने दी है एक गंभीर चेतावनी
सीएन, नैनीताल।
हाल ही में म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप ने 3,000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। इस घटना ने न सिर्फ म्यांमार में तबाही मचाई बल्कि हिमालय क्षेत्र में मंडरा रहे भूकंपीय खतरों की ओर भी ध्यान खींचा है। विशेषज्ञ इसे बेहद सक्रिय और खतरनाक रूप से संवेदनशील क्षेत्र मानते हैं। भूकंप की संवेदनशीलता के आधार पर हिमालयन रीजन को जोन 4 और 5 में रखा गया है। यानी पूरा हिमालयन बेल्ट भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। जहां कभी भी भूकंप आ सकता है। ऐसे में बीती वर्ष तिब्बत में 7.1 मैग्नीट्यूड का भूकंप आने के बाद भारत के संवेदनशील क्षेत्रों में भूकंप आने की चिंताओं को और ज्यादा बढ़ा दिया है। ऐसे में वैज्ञानिक हिमालयन क्षेत्र में पहले आए भूकंप के पैटर्न पर काम कर रहे हैं। ताकि आने वाले भूकंप का अनुमान लगाया जा सके। म्यांमार की इस आपदा ने उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों के लिए एक गंभीर चेतावनी दी हैए जहां घनी आबादी वाले इलाकों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। म्यांमार में यह भूकंप सागाइंग फॉल्ट के साथ शुरू हुआ, जो भारतीय प्लेट और सुंडा प्लेट के टकराव से बना एक टेक्टोनिक क्षेत्र है। इसकी तीव्रता इतनी थी कि 1,000 किलोमीटर दूर बैंकॉक तक इमारतें हिल गईं। दूसरी ओर उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र मुख्य हिमालयी थ्रस्ट और हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट जैसे फॉल्ट सिस्टम से प्रभावित है। यहाँ भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट हर साल 4.5 सेंटीमीटर की रफ्तार से एक दूसरे से टकराती हैं। इस टक्कर से जो ऊर्जा जमा होती है, वह हिमालय में बड़े भूकंपों का कारण बन सकती है। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक विनीत गहलोत कहते हैं हिमालय में बड़े भूकंप का खतरा म्यांमार के सागाइंग फॉल्ट से कहीं ज्यादा है। अगर गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र में 7.7 तीव्रता का भूकंप आया, तो इसका असर 1,500 किलोमीटर दूर गुजरात तक जा सकता है। वे बताते हैं कि म्यांमार में हुई घटना एक क्लासिक प्लेट सीमा भूकंप थी, जो हिमालय की भूकंपीय गतिविधियों से मिलती.जुलती है। म्यांमार में भूकंप का कारण प्लेटों का पार्श्विक खिसकाव यानी स्ट्राइक-स्लिप फॉल्टिंग था जबकि हिमालय में प्लेटें आमने.सामने टकराती हैं। इस टक्कर से भारी ऊर्जा जमा होती है जो फॉल्ट के जटिल जाल में फैलती है। यह स्थिति हिमालय को और भी विनाशकारी भूकंपों के लिए संवेदनशील बनाती है। गहलोत कहते हैं, पिछले 500 सालों से हिमालय में 8 या उससे ज्यादा तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप नहीं आया। टेक्टोनिक तनाव लगातार बढ़ रहा है, जिससे कभी भी बड़ा धमाका हो सकता है। हालांकि यह कब होगा, इसका सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है। उत्तराखंड में यह खतरा इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि यहाँ की आबादी घनी है और कई इलाके भूकंपीय जोन में आते हैं। यहाँ की पहाड़ी संरचना और कमजोर मिट्टी भूकंप के झटकों को और खतरनाक बना सकती है। उत्तराखंड का भूवैज्ञानिक इतिहास चिंताजनक है। यहाँ आखिरी बड़ा भूकंप 1344 में आया था, जिसकी तीव्रता 8 से ज्यादा थी। इसके बाद 1803 में देवप्रयाग और श्रीनगर के आसपास एक भूकंप आया, जो सीमित क्षेत्र तक रहा। हाल के दशकों में 1991 का उत्तरकाशी भूकंप 6.8 तीव्रता थी। 700 से ज्यादा मौतें हुई और 1999 का चमोली भूकंप 6.6 तीव्रता थी। 100 से ज्यादा मौतें भी हुई। ये भूकंप बड़े नहीं थे, लेकिन इनसे हुए नुकसान ने यह साफ कर दिया कि यह क्षेत्र कितना संवेदनशील है। वरिष्ठ भूवैज्ञानिक पीयूष रौतेला कहते हैं, म्यांमार का भूकंप हिमालय की भूकंपीय संवेदनशीलता की याद दिलाता है। यहाँ छोटे-मोटे झटके भी बड़े खतरे का संकेत हो सकते हैं। हमें तैयारी पर ध्यान देना होगा। उत्तराखंड के लिए सबक और तैयारी म्यांमार की घटना उत्तराखंड के लिए एक सबक है। यहाँ की घनी आबादी, अनियोजित निर्माण और पहाड़ों पर बढ़ता दबाव खतरे को और बढ़ा रहे हैं। रौतेला कहते हैं, छोटे भूकंपों में जमा ऊर्जा का सिर्फ एक हिस्सा ही निकलता है। बड़ा खतरा अभी बाकी है। वे सख्त भवन नियमों और जन जागरूकता को सबसे जरूरी कदम मिलते हैं। रौतेला का भी मानना है कि भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में ज्यादा विकास से बचना चाहिए। हमें मजबूत इमारत बनानी होंगी और लोगों को भूकंप से बचाव के तरीके सिखाने होंगे। उत्तराखंड सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं जैसे उत्तराखंड भूकंप अलर्ट ऐप और भूदेव ऐप जो भूकंप की चेतावनी दे सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जमीनी स्तर पर अभी बहुत काम बाकी है। म्यांमार का भूकंप भले ही दूर की घटना हो, लेकिन यह उत्तराखंड के लिए एक आईना है। यहाँ की भूकंपीय संवेदनशीलता और जमा होती टेक्टोनिक ऊर्जा किसी बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है। अगर हम अभी नहीं चेते, तो आने वाली आपदा भारी नुकसान कर सकती है। जरूरत है सख्त नियमों, बेहतर तैयारी और जागरूकता की। उत्तराखंड के पहाड़ खूबसूरत हैं, लेकिन इनकी नीचे छिपा खतरा हमें अनदेखा नहीं करना चाहिए।

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