Connect with us

देहरादून

सांकृत्यायन की बौद्धिक विरासत एनजीओ को देने का विरोध, बेटी ने लिखा नितिश को पत्र

1950 में नैनीताल में आवास बना कर रहे, यहा उनका विवाह कमला सांकृत्यायन से हुआ
सीएन, देहरादून।
विश्वप्रसिद्ध साहित्यकार और अपनी घुमक्कड़ी के लिए ख्यातिलब्ध महापंडित राहुल सांकृत्यायन की बेटी जया सांकृत्यायन बिहार के पटना म्यूजिमय में पिता की रखी बौद्धिक विरासत को नौकरशाहों की एक स्वयंसेवी संस्था बिहार म्यूजियम को सौंपे जाने से व्यथित हैं। देहरादून के पुरुकुल इलाके में रह रहीं उनकी पुत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस कवायद का कड़ा विरोध किया है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि बिहार सरकार संग्रह की देखरेख के योग्य नहीं है तो उनके परिवार और देश के गंभीर अनुसंधानकर्ताओं की कमेटी बनाकर उसे इसके भविष्य का निर्णय करने का अधिकार देना चाहिए। बता दें कि जया इससे पहले वर्ष 2017 में भी मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं। बकौल जया, तब पत्र लिखने के बाद म्यूजियम में पिता की रखी धरोहर को सौंपने की कोशिशें थम गई थीं। उन्हें फिर पता लगा कि बिहार सरकार पटना म्यूजियम के प्रबंधन का अधिकार बिहार म्यूजियम को सौंप रही है। बताया जा रहा है कि यह म्यूजियम सेवानिवृत्त नौकरशाहों की एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा संचालित हो रहा है। मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसका कड़ा विरोध किया है। मेरा मानना है कि मेरे पिता ने कठोर तपस्या से जो बौद्धिक संपत्ति अर्जित की, उसे इस तरह से किसी को सौंपा नहीं जा सकता। वहां 106 साल पुरानी दुर्लभ धरोहर रखी है। दुनिया को समझने के लिए नई पीढ़ी के अध्ययन की वह एक नायाब विरासत है। राहुल सांकृत्यायन के संग्रह के बारे में कोई भी फैसला लेने से पहले उनके परिवार से परामर्श लिया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने यह अमूल्य धरोहर पटना म्यूजियम को सशर्त उपहार स्वरूप दिया था। पटना म्यूजियम में रखी तिब्बत से लाई हुई थांगका पेंटिंग अमूल्य हैं। उन्होंने तिब्बत की तीन और यात्राएं कीं। वहां से बहुत सी पांडुलिपियां, सिक्के, कपड़े व चित्र व अन्य सामग्री की मूल व छाया प्रतियां लाएं। 1956 तक राहुल संग्रह में और भी चीजें जुड़ीं। करीब 6400 किताबें और फोटो बिहार रिसर्च सोसाइटी में संग्रहित हैं। अगर ये चीजें लाने ले जाने में खराब हो गईं तो इसका कौन जिम्मेदार होगा? उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव उनके पिता की स्मृति, बौद्धिक विरासत व देश के लिए उनकी दृष्टि का अपमान है। इसे किसी भी हालत में सरकार के नियंत्रण से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
कौन हैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन
राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाव में 9 अप्रैल 1893 को हुआ था। उनके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। उनके पिता गोवर्धन पाण्डेय एक धार्मिक विचारों वाले किसान थे। 1907 में वे घर से भागकर चार मास तक कोलकाता में रहे और 1909 में हदार 16 साल का केदार फिर कोलकाता भाग गया। काशी में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और बन्ध 17 वें वर्ष में वैराग्य का मानस बना लिया। वे पैदल ही अयोध्या होते हुए मुरादाबाद पहुँचे और वहाँ से हरिद्वार गए। हरिद्वार से हिमालय, देव प्रयाग, टेहरी, जमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की फिर प्रयाग की प्रदर्शनी देखने के लिए घर से निकल गए। बनारस में रहकर संस्कृत, अंग्रेजी और हिन्दी का अध्ययन किया। परसा (बिहार) मठ के उत्तराधिकारी बने। वहाँ से भागकर पुरी, रामेश्वर आदि तीर्थों की यात्रा की। तिरुमिशी गए, वहाँ चार महीने रहे और दक्षिण भारत के तीर्थों के दर्शन किए। सर्वप्रथम तिरुपति बालाजी के दर्शन किए। आगरा में रहकर अरबी भाषा का अध्ययन किया। वहाँ से लाहौर गए और इस तरह उन्होंने भारत के 3 विभिन्न स्थानों की अनेक बार यात्राएँ कीं। 1923 में उन्होंने पहली बार नेपाल की यात्रा की और वहाँ डेढ़ मास तक रहे। 1936 में और फिर 1953 में उन्होंने नेपाल की यात्राएँ कीं। 1927 में वे श्रीलंका गए और वहाँ उन्नीस मास तक अध्यापन कार्य किया। 1960 में वे पुनः श्रीलंका गए और वहाँ रहकर अनेक ग्रन्थों की रचना की। 1932 में यूरोप, 1935 में जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि और ईरान की यात्रा की। 1938 में अफगानिस्तान, 1945 में ईरान और 1945 से 1947 तक पच्चीस -मास लेनिनग्राद विश्वविद्यालय रूस में प्राध्यापक का कार्य किया। वे चीन भी गए और तिब्बत भी। इस प्रकार उनका सम्पूर्ण जीवन एक यात्रा ही बनी रही। उन्होंने देश-विदेश के अनेकानेक स्थानों को न केवल देखा अपितु उन पर ग्रन्थों की रचना भी की। उनका जीवन एक यायावर का जीवन था। उनकी वृत्ति घुमक्कड़ी थी और अन्त तक घुमक्कड़ी ही बनी रही। उनके यात्रा वृतांत में यात्रा में आने वाली कठिनाइयों के साथ उस जगह की प्राकृतिक सम्पदा, उसका आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन और इतिहास अन्वेषण का तत्व समाहित होता है। किन्नर देश की ओर, कुमाऊ, दार्जिलिंग परिचय तथा यात्रा के पन्ने उनके ऐसे ही ग्रन्थ हैं। राहुल जी को हिन्दी और हिमालय से बड़ा प्रेम था। वे 1950 में नैनीताल में अपना आवास बना कर रहने लगे। यहाँ पर उनका विवाह कमला सांकृत्यायन से हुआ। इसके कुछ बर्षो बाद वे दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में जाकर रहने लगे, लेकिन बाद में उन्हें मधुमेह से पीड़ित होने के कारण रूस में इलाज कराने के लिए भेजा गया। 1963 में सोवियत रूस में लगभग सात महीनो के इलाज के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नही हुआ। 14 अप्रैल 1963 को उनका दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में देहांत हो गया।

More in देहरादून

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING