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आज है ईद-उल-फितर 2023 : इस त्योहार की तिथि, इतिहास, महत्व

आज है ईद-उल-फितर 2023 : इस त्योहार की तिथि, इतिहास, महत्व
सीए, नैनीताल। भारत विविधता से भरा हुआ देश है। जिस तरह हिंदू धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं, वैसे ही इस्लाम में भी कई त्योहार मनाए जाते हैं। इस्लाम का सबसे बड़ा त्योहार ईद-उल-फितर है, जो रमजान के पवित्र महीने के अंत का प्रतीक है। यह आमतौर पर इस्लामिक कैलेंडर के 10वें महीने शव्वाल में पहले दिन के चांद को देखने के बाद मनाया जाता है। ईद-उल-फितर इस्लामिक कैलेंडर के शव्वाल महीने में आती है, जिसमें एक महीने में लगभग 29 या 30 दिन होते हैं। किसी भी चंद्र हिजरी महीने की शुरुआत धार्मिक अधिकारियों द्वारा देखे गए नए चंद्रमा के अनुसार अलग होती है। ऐसे में ईद-उल-फितर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग दिन पड़ता है। इस साल ईद-उल-फितर 21 अप्रैल (शुक्रवार) से 23 अप्रैल (रविवार) तक मनाया जा सकता है। चंद्रमा के देखे जाने के अनुसार ईद की तारीख भी अलग हो सकती है। ईद-उल-फितर का त्योहार केरल में देश के बाकी हिस्सों से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसका कारण है कि यहां के लोग चंद्रमा के दर्शन के लिए पारंपरिक इस्लामी कैलेंडर का पालन करते हैं और उसी के अनुसार चंद्रमा के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। केरल एकमात्र भारतीय राज्य है, जिसकी ईद-उल-फितर की तारीख सऊदी अरब में चांद दिखने से तय होती है। इस बीच कश्मीर में ईद-उल-फितर राज्य के ग्रैंड मुफ्ती द्वारा निर्धारित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र कुरान पहली बार रमजान के महीने के दौरान पैगंबर मुहम्मद के सामने आई थी। मुस्लिम समुदाय के लोग इस महीने को शुभ मानते हैं और सुबह से शाम तक रोजे (उपवास) रखते हैं। इसके साथ खुद को अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित करते हैं और नकारात्मक विचारों से दूर रहते हैं। रमजान में लोग स्वादिष्ट भोजन के साथ रोजा इफ्तार करते हैं और दोस्तों और परिवार के लोगों से मिलते हैं। ईद-उल-फितर में दुनियाभर के मुसलमान मस्जिदों और ईदगाहों पर ईद की नमाज पढ़ते हैं और फिर एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। सभी लोग नए कपड़े पहनकर एक दूसरे के घर ईद मिलने जाते हैं और बच्चों को ईदी के तौर पर पैसे या अन्य उपहार भी देते हैं। इस दिन लोग घरों में सेवई, खीर, बिरयानी समेत कई लजीज पकवान भी बनाते हैं।
अहम मक्सद ग़रीबों को फितरा देना वाजिब
इस्लाम में दो ईदों में से यह एक है (दुसरी ईद उल जुहा या बकरीद कहलाती है)। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद उल फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम कुरान की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे हर्ष उल्लास से मनाते हैं ईद उल-फितर का सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं मजबूर हैं अपनी ईद मना सकें नये कपडे पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ से पहले करना होता है। ईद भाई चारे व आपसी मेल का तयौहार है ईद के दिन लोग एक दूसरे के दिल में प्यार बढाने और नफरत को मिटाने के लिए एक दूसरे से गले मिलते हैं उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। हालांकि उपवास से कभी भी मोक्ष संभव नहीं क्योंकि इसका वर्णन पवित्र धर्म ग्रन्थो में नही है। पवित्र कुरान शरीफ भी बख्बर संत से इबादत का सही तरीका लेकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह की पूजा करने का निर्देश देता है। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार का सबसे मत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ होता है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें पूरे महीने के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

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