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नैनीताल

लार से भस्म कर देने वाला राक्षस : कुमाऊं की रोचक लोककथा

लार से भस्म कर देने वाला राक्षस: कुमाऊनी की रोचक लोककथा
सीएन, नैनीताल।
पहाड़ से निकलने वाली नदी किनारे एक सुंदर सी बसावट हुआ करती थी. नदी वार और पार गांव वाले ही खेती करते और जहां से नदी निकलती उस पहाड़ के घने बियावन से लकड़ी ले आया करते. घुप्प अंधेरे वाले जंगल के भीतर साथ में बहने वाली नदी के पानी की आवाज को और भयानक बना देती. इसी जंगल के भीतर रहने लगा था एक राक्षस. पहले-पहल तो जो जंगल के बिलकुल भीतर चला जाता उसे राक्षस खाकर अपनी लार से भस्म कर देता. धीरे-धीरे इंसानी खून की गंध उसे गांव के करीब ले आई. अब तो गांव के लोग उसकी खीर हो गये. अँधेरा हुआ नहीं जो बाहर दिखा राक्षस उसे चट करके बचा-खुचा अपनी लार से भस्म कर दे. गांव वालों ने उससे बचने के लिये जंगल जाना छोड़ दिया और सूरज डूबने से पहले ही अपने दरवाजे बंद करने लगे फिर भी हर दिन कोई न कोई राक्षस की खीर बन ही जाता. एकबार उस गांव में राह चलता एक जोगी आया. जोगी बड़ा बुद्धिमान था गांव वालों ने उससे मदद मांगी तो वह उनकी मदद को राजी हो गया. रात का समय था जोगी गांव के एक घर में रहने लगा. पूरे गांव में अँधेरा था सिवा उस घर के जिसमें जोगी रह रहा था. राक्षस ने जब गांव भर में एक ही रोशनी वाले घर को देखा तो वह उस ओर ही बढ़ा. राक्षस जब उस घर में पहुंचा तो उसे इंसानी खून की बू आने लगी. घर के भीतर इंसान के होने की बात सोचकर राक्षस लार संभालता हुआ कहने लगा- आहा मैसैन- मैसैन बू…( आहा इंसानी बू) फिर गर्जता हुआ बोला- कौन है रे भीतर, सीधा-सीधा बाहर आता है कि तोडूं दरवाजा. भीतर से जोगी खूब मोटी आवाज में बोला- कौन है रे आधी रात को अड़कने वाला. राक्षस को ऐसे किसी जवाब की उम्मीद न थी. वह तो किसी मरियल आवाज में जान बचाने की भीख की उम्मीद कर रहा था. राक्षस ने ख़ुद को संभालते हुये कहा- किसकी जो मौत आई है जो मुझ जैसे ताकतवर से इतनी अकड़ में बात कर रहा है. जोगी ने जाखरा चलाकर खूब जोर से हंसने की आवाज निकाली और भारी भरकम आवाज में बोला- तू कहाँ का ताकतवर हुआ रे? मेरे नाख़ून के बराबर भी नहीं हुआ और ख़ुद को ताकतवर बोल रहा है. राक्षस था तो मोटी बुद्धि का, अचानक आई भारी भरकम हंसी से वह आधा हो ही चुका था सो उसे लगा कि इतनी भारी हंसी वाला और ऐसी हिम्मत भरी बातें करने वाला कोई साधारण आदमी तो होगा नहीं. न जाने कौन सा नया मसाण जो आया है बिना देखे समझे भिड़ना उसे अपनी सेहत के लिये ठीक न लगा. सो उसने पूछा- अच्छा तू इतना ताकतवर है तो जरा अपनी अँगुली तो दिखा. जोगी ने घर की खिड़की से तुरंत मुसल बाहर को कर दी. राक्षस बेचारा सन्न. इतनी मोटी और लम्बी ऊँगली वाले के बारे में न उसने कभी सोचा था न कभी सुना था. डरते-डरते उसने कहा- जरा अपने बाल तो दिखा धैं. जोगी ने खिड़की से बाबिल घास का मोटा झाडू हिला दिया. राक्षस बेचारा ठस्स रह गया. उसे पक्का यकीन होने लगा- हो न हो भीतर कोई न कोई अक्खम ही है. अब उसने अपना आखिरी हथियार फेंक कहा- जरा अपना थूक फेंक कर दिखा तो. राक्षस के कहने की देर थी जोगी ने घर के भीतर से दही की ठेकी से दही बाहर फेंक दिया. राक्षस को होश जैसी ही नहीं रही. डर से कंपकंपाता राक्षस इससे पहले की यह समझ पाता कि इतनी भारी हंसी वाला, इतनी मोटी व लम्बी ऊँगली और चोटी वाला, इतने गाढ़े और ठंडे थूक वाला कौन जो होगा भीतर से जोगी बोला-अरे वो तो मेरा नियम है की मैं एक दिन में एक ही शिकार खाता हूँ. आज मैंने इस घर के मालिक को खाया है. इंसान ही हुआ दांतों में फंसा रह गया अब खाली झाड़ी के तिनड़े से दांतों से निकलना हो रहा है. तू मुझे कोई राक्षस जैसा लग रहा है तेरे को खाने में आयेगा स्वाद. तू रुक कल तेरा ही बनाता हूँ. यहां जोगी का इतना कहना वहां राक्षस का भागना. कहते हैं जोगी की बात से राक्षस सात दिन सात रात तक ऐसा भागा की फिर सात समुद्र पार ही कहीं रुक सका. काफल ट्री से साभार

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