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नैनीताल

चूहे की बेटी के विवाह और चन्द्रमा, सूरज, पेड़, धरती की लोककथा

चूहे की बेटी के विवाह और चन्द्रमा, सूरज, पेड़, धरती की लोककथा
अशोक पाण्डे, नैनीताल।
किसी समय एक चूहा रहता था जिसकी एक बहुत सुन्दर विवाहयोग्य कन्या थी. चूहा बहुत महत्वाकांक्षी था और अपनी सामाजिक हैसियत ऊंची करने के लिए अपनी पुत्रे का विवाह संसार के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के साथ करने का पक्का निश्चय कर चुका था. इस उद्देश्य से वह सूरज के पास गया और उसे अपनी पुत्री विवाह हेतु प्रस्तुत की लेकिन सूर्य ने ऐसा करने से इनकार करते हुए कहा, “मेरे प्यारे दोस्त, अगर मेरी परिस्थितियां ठीक होतीं तो मैं अवश्य तुम्हारी बेटी से विवाह कर लेता. सबसे पहली बात यह है कि मैं गर्मी का केंद्र हूँ और तुम्हारी बेटी मेरी किरणों को बर्दाश्त नहीं कर सकेगी. दूसरी बात यह कि मेरे आस रहने को अपना कोई घर नहीं है  और चूंकि मुझे दिन-रात धरती के चारों तरफ चक्कर लगाना होता है, तुम्हारी बेटी के लिए भोजन-वस्त्र कमाने का मेरे पास समय ही नहीं होगा. बेहतर होगा तुम अपनी बेटी के विवाह के लिए मेरे भाई चंद्रमा के पास जाओ.” ऐसा सुनकर चूहे ने चंद्रमा के घर तक की यात्रा की और उससे मिलकर विवाह का प्रस्ताव दिया. चंद्रमा ने बहुत शालीनता के साथ चूहे की आतिर-खातिर की और कहा, “देखिये श्रीमान, मैं आपकी बेटी के लिए सही जोड़ा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे शरीर पर दाग हैं जिन्हें छिपाने की नीयत से मैं सिर्फ रात को निकलता हूँ. इसके अलावा मेरे ऊपर बादल का ऐसा जोर चलता है कि वह जब चाहे मुझे ढंक सकता है.  उचित तो यही होगा कि आप बादल से अपनी बेटी का विवाह करें क्योंकि वह मुझसे अधिक ताकतवर है.” चूहे पिता ने ऐसा ही किया और बादल को अपनी पुत्री का हाथ प्रस्तुत किया. बादल ने यह कहते हुए कि वह अपने  शत्रु पवन से आसानी से हार जाता है चूहे को राय दी कि अपनी बेटी का विवाह पवन से कर दे. चूहा पवन के पास गया जिसने उसकी बात सुन कर जवाब दिया, “देखिये जनाब दुनिया में मेरी कोई ताकतवर हैसियत नहीं है. यह सच है कि मैं चीजों को उड़ा सकता हूं लेकिन उस पत्थर का मैं कुछ नहीं कर सकता जो मुझसे अधिक भारी और ताकतवर है. बेहतर होगा अप उसे ही अपनी बेटी दें.” अब चूहा पत्थर के पास गया जिसने कहा, “मेरी बदकिस्मती है श्रीमान! मैं तो एक निर्जीव चीज हूँ जो चल-फिर नहीं सकता. मैं आपकी  बेटी के लिए रोटी-कपड़ा कैसे कमा सकूंगा?आप धरती के पास क्यों नहीं जाते  जिस में से कीमती धातु-पत्थर के अलावा और अनेक तरह की स्वादिष्ट चीजें उगती हैं? उसी से विवाह कर आपकी बेटी को दुनिया भर की सुख-सुविधाएं हासिल होंगी.” इस सुझाव से चूहा बहुत खुश हुआ और धरती के पास जा पहुंचा और अपनी बात रखी. धरती ने कहा, “आपप्रस्ताव स्वागत योग्य है लेकिन मेरा आपकी बेटी से विवाह असंभव है क्योंकि मैं उस पेड़ की जड़ों से बंधा हुआ हूँ जिसे मैंने अपने सर पर उठा रखा है.बेहतर होगा आप पेड़ के पास जाकर अपनी बेटी का विवाह उसी से करें. वह मुझसे अधिक शक्तिशाली है.” अब चूहा पेड़ के पास गया और उस संबोधित कर अपना पस्ताव उसके सामने रखा.पेड़ ने कहा, “हालांकि धरती के ऊअर मेरा थोड़ा बहुत नियंत्रण चलता है पर आपके छोटे-छोटे चूहे मुझसे कहीं बेहतर हैं.  आप लोग मेरी जड़ों को काट-काट कर मुझे ख़तम करने की शक्ति रखते हैं इसलिए आप मुझसे कहीं ज्यादा शक्तिशाली हैं और इसलिए आपने अपनी बेटी का विवाह किसी चूहे से ही करना चाहिए. वह आपका प्रस्ताव अवश्य स्वीकार कर लेगा.” इस तरह आखिरकार चूहा एक और चूहे के पास गया जिसके साथ खूब धूम-धाम और उत्सव के साथ उसकी बेटी का विवाह हुआ.
यह कथा ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ से ली गयी है. 

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