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नैनीताल

स्वाधीनता संग्राम जब बंगाल के विभाजन के बाद अल्मोड़ा के नंदा देवी नामक स्थान पर विरोध सभा

स्वाधीनता संग्राम   जब बंगाल के विभाजन के बाद अल्मोड़ा के नंदा देवी नामक स्थान पर विरोध सभा
सीएन, नैनीताल।
1905 में बंगाल के विभाजन के बाद अल्मोड़ा के नंदा देवी नामक स्थान पर विरोध सभा हुई। इसी वर्ष कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में उत्तराखंड से हरगोविन्द पंत, मुकुन्दीलाल, गोविन्द बल्लभ पंत बद्री दत्त पाण्डे आदि युवक भी सम्मिलित हुये। 1906 में हरिराम त्रिपाठी ने वन्देमातरम् जिसका उच्चारण ही तब देशद्रोह माना जाता था, उसका कुमाऊँनी अनुवाद किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक इकाई के रूप में उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। इसी वर्ष उत्तराखंड के अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक इकाई के रूप में उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। इसी वर्ष उत्तराखंड के अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ। 1916 के सितम्बर माह में हरगोविन्द पंत, गोविन्द बल्लभ पंत, बद्री दत्त पाण्डे, इन्द्रलाल साह, मोहन सिंह दड़मवाल, चन्द्र लाल साह, प्रेम बल्लभ पांडेय, भोलादत पाण्डे और लक्ष्मी दत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ परिषद की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखंड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजना था। 1926 तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारों की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनीतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियां संपादित कीं। 1923 तथा 1926 के प्रांतीय काउंसिल के चुनाव में गोविन्द बल्लभ पंत हरगोविन्द पंत, मुकुन्दी लाल तथा बद्री दत्त पाण्डे ने प्रति पक्षियों को बुरी तरह पराजित किया। 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया। 1927 में साइमन कमीशन की घोषणा के तत्काल बाद इसके विरोध में स्वर उठने लगे और जब 1928 में कमीशन देश मे पहुँचा तो इसके विरोध में 29 नवम्बर 1928 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 16 व्यक्तियों की एक टोली ने विरोध किया जिस पर घुड़सवार पुलिस ने निर्ममतापूर्वक डंडों से प्रहार किया। जवाहरलाल नेहरू को बचाने के लिये गोविन्द बल्लभ पंत पर हुये लाठी के प्रहार के शारीरिक दुष्परिणाम स्वरूप वे बहुत दिनों तक कमर सीधी नहीं कर सके थे।कुमाऊँ कमिश्नरी के मैदानी क्षेत्र अवश्य इस दौरान गदर से प्रभावित रहे जो कमिश्नर रैमजे के लिये चिंता का विषय बने। जुलाई 1857 में बकरीद के मौके पर रामपुर में विद्रोह भड़कने और उससे नैनीताल के प्रभावित होने की आशंका से रैमजे ने ब्रिटिश औरतों और बच्चों को नैनीताल से हटा कर अल्मोड़ा भेज दिया था हालांकि रामपुर के नवाब अंग्रेज़ों के सहयोगी थे। नैनीताल पर कब्ज़ा करने का प्रथम प्रयास सितंबर 1857 में हुआ और 17 सितम्बर 1857 की एक घटना में मैदानी भाग में स्थित हल्द्वानी शहर पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा भी कर लिया था जिसे बाद में अंग्रेजों ने वापस हासिल कर लिया। इस आक्रमण का नेतृत्व काला खान नामक विद्रोही कर रहा था। स प्रकार भारत के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष के बहुत उल्लेखनीय प्रभाव इस क्षेत्र में नहीं देखने को मिलते और कुल मिलाकर कमिश्नर रैमजे का शासनकाल शांतिपूर्ण शासन का काल माना जाता है। इसी दौरान सरकार के अनुरूप समाचारों का प्रस्तुतीकरण करने के लिये 1868 में समय विनोद तथा 1871 में अल्मोड़ा अखबार की शुरुआत हुई। 1906 में हरिराम त्रिपाठी ने वन्देमातरम् जिसका उच्चारण ही तब देशद्रोह माना जाता था उसका कुमाऊँनी अनुवाद किया। 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया। 1927 में साइमन कमीशन की घोषणा के तत्काल बाद इसके विरोध में स्वर उठने लगे और जब 1928 में कमीशन देश में पहुॅचा तो इसके विरोध में 29 नवम्बर 1928 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 16 व्यक्तियों की एक टोली ने विरोध किया जिस पर घुड़सवार पुलिस ने निर्ममता पूर्वक डंडो से प्रहार किया। जवाहरलाल नेहरू को बचाने के लिये गोविन्द बल्लभ पंत पर हुए लाठी के प्रहार के शारीरिक दुष्परिणाम स्वरूप वे बहुत दिनों तक कमर सीधी न कर सके थे। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई 1938 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के आंदोलन का समर्थन किया। सन 2000 में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। इसका निर्माण 9 नवम्बर 2000 को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।

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