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सियार और बाघिन के सरदारों में तय हुआ शादी का प्रस्ताव : पहाड़ी लोककथा

सियार और बाघिन के सरदारों में तय हुआ शादी का प्रस्ताव : पहाड़ी लोककथा
लोककथा :
पहाड़ सियारों के मूल घर हुआ करते थे और बाघ रहते थे तराई में. एक बार दोनों के सरदारों में तय हुआ कि दोनों अपनी-अपनी जगह बदल लें. सियार रहेंगे तराई में और बाघ रहेंगे पहाड़ों में. सियार तभी तराई पहुंचे थे जब बाघों ने पहाड़ चढ़ना शुरु किया था. एक साथ इतने सारे बाघों को देखकर सियार डर गये कि कहीं बाघ उन पर हमला कर उन्हें अपना निवाला न बना लें लेकिन सियारों ने धैर्य नहीं छोड़ा और दिमाग से काम लिया. पास में एक हाथी की लाश देखकर सियारों का सरदार उस पर चढ़ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि उसने हाथी को मार डाला है. बाघों का झुण्ड उस जगह के पास पहुंचने ही वाला था कि सियारों का सरदार दहाड़ें मारकर चीखने लगा- मेरी टेढ़ी नोक वाली तलवार ले आओ ताकि मैं यहां से गुजरने वाले पहले शेर की खोपड़ी फोड़ सकूं. बाघों ने जब सियार को इस कदर गुस्से से चीखता सुना तो कोई भी आगे कदम बढ़ाने को तैयार न हुआ. पहले तुम जाओ, पहले तुम जाओ के चक्कर में बाघों के बीच झगड़ा शुरु हो गया. इतने में सियारों का सरदार घूरते हुये बाघों की ओर मुड़ा और कहा- भाइयो तुम्हें हमसे डरने की कोई जरूरत नहीं है. हम सब तो भाई-भाई हैं. अपने इस भाईचारे को और ज्यादा मजबूत करने के लिये तुम अपनी एक बाघिन का ब्याह मेरे संग कर दो. जिस आत्मविश्वास और अदाकारी से सियार ने अपनी बात रखी थी उससे बाघ बड़े सदमे में थे. जान बचाने के लिये उन्हें सियार की बात मान लेने में ही समझदारी लगी और एक बाघिन का ब्याह सियार से हो गया जिसे वह अपनी गुफा में ले गया. अगले दिन जब सियार और बाघिन भूखे थे तो दोनों का शिकार के लिये जंगल की ओर जाना तय हुआ. बाघिन आदतन होशियार थी सो उसने जंगल में एक संकरे रास्ते पर सियार को खड़ा किया और कहा- जब वह जंगल से हिरणों के झुण्ड का पीछा करते हुये आये तो वह यहां उनको दबोच ले. सियार कोने में खड़ा हो गया. हिरणों का झुण्ड आया पर सियार एक भी हिरन न पकड़ सका. जब बाघिन ने सियार से शिकार न पकड़ पाने का कारण पूछा तो उसने उससे कहा- किसी डरे हुये प्राणी को मारना सही बात नहीं है. सियार ने ऐसा मूर्खतापूर्ण सवाल पूछने पर बाघिन के कान के नीचे एक मुक्का अलग से धरा. बाघिन ने मुक्का सह लिया क्योंकि सियार उसका पति जो था और वह अपने पति का आदर करना जानती थी. अगले दिन बाघिन हिरणों का एक बड़ा झुण्ड भगाते हुये लाई इस बार सियार हिरन का एक छोटा सा बच्चा ही पकड़ सका जो भाग नहीं सकता था. जब बाघिन ने सवाल किया तो सियार ने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया. बाघिन ने धैर्य से तमाचा सह लिया. तीसरे दिन शिकार के समय बाघिन ने सियार को एक भैंसे पर हमला करने को कहा. सियार के बस की यह भी न थी. मजबूरन बाघिन को अकेले भैंसे से भिड़ना पड़ा. बाघिन ने एक ही बार में भैंसे को मार गिराया. इस पर सियार को बुरा लगा गया और उसने बाघिन को मारते हुये कहा- वह उसे धीरे-धीरे मारना चाहता था इस तरह एक ही झटके में नहीं. बाघिन ने कुछ न कहा. अगले दिन उन्हें के चौड़ी बड़ी नदी पार करनी थी. बाघिन ने तैरकर नदी पार कर ली पर सियार डरकर वापस आ गया. मजबूर होकर बाघिन तैरकर दूसरी ओर लौटी और अपने पति को अपने साथ नदी पार ले आई. जैसे ही दोनों ने नदी पार कि सियार उसे पीटते हुये कहने लगा- वह बिना उसकी ईजाजत के कैसे अकेले निकल गयी थी. बाघिन को बहुत गुस्सा आया पर वह चुप रही. अब जब उन्हें लौटते समय नदी पर करनी थी तो बाघिन सीधा तैरकर दूसरे किनारे पर चली गयी पर सियार पानी में बहता हुआ नदी किनारे दो मील आगे पहुंचा. नदी किनारे जब दोनों मिले तो सियार ने बाघिन को उसकी बदतमीजी के लिये कड़ी फटकार लगाई. पर जब इस बार सियार बाघिन को मारने आगे बड़ा तो बाघिन ने उसे वहीं दबोचा और चित रखा.
यह कथा ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ के आधार पर है.        

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