पर्यावरण
खतरा : समय से पहले खिलने लगा बुरांश, वैज्ञानिक भी हैरान, औषधीय गुण होंगे खत्म, कारोबारी निराश
खतरा : समय से पहले खिलने लगा बुरांश, वैज्ञानिक भी हैरान, औषधीय गुण होंगे खत्म, कारोबारी निराश
सीएन, नैनीताल। उत्तराखंड के पहाड़ों में जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई देने लगा है। कई स्थानों में बर्फवारी नही होने या कम बर्फबारी के कारण इस वर्ष बुरांश का फूल भी फरवरी, मार्च के बजाय जनवरी माह से ही खिलना शुरू हो गया। साथ में 26 से अधिक हिमालयी रीजन में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों के प्रजनन चक्र पर बुरी तरह प्रभाव पड़ने से इनका अस्तित्व भी संकट में आ गया है। उत्तराखंड के नैनीताल स्थित डीएसबी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. डॉ. ललित तिवारी ने बताया कि बुरांश उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, जो 1800 मीटर से ऊपर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाया जाता है। बुरांश का वैज्ञानिक नाम रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम है। बुरांश के खिलने का समय फरवरी से मार्च महीने तक होता है, लेकिन पिछले 15 सालों से बुरांश दिसंबर के अंतिम सप्ताह व जनवरी में ही खिल रहा है। उत्तराखंड में भारत का सबसे अच्छी क्वालिटी का बुरांश होता है। इसका मेडिसिनल उपयोग होता है। जूस बनाया जाता है। अगर वक्त से पहले बुरांश खिल रहा है तो उसकी मेडिसिनल क्वालिटी घटेगी। इससे उत्तराखंड के बुरांश की बाजार में मांग भी घटने लगेगी ऐसे में किसानों और उससे जुड़े छोटे उद्योगों को नुकसान उठाना पड़ेगा। पहाड़ी फल काफल भी समय से पहले पक चुका है जो पर्यावरण संरक्षण और बुरांश के जीवन चक्र के लिहाज से चिंता का विषय है। प्रो. ललित तिवारी कहते हैं कि प्रकृति में बुरांश की 1200 प्रजातियां मिलती हैं। लेकिन भारत के हिमालय के इलाकों में इसकी कुल 87 प्रजातियां पाई जाती हैं। उत्तराखंड में बुरांश की छह प्रजातियां मिलती हैं। उच्च हिमालयी इलाकों में सफेद बुरांश भी पाया जाता है। जूस कारोबारी संजीव भगत का कहना है कि बेमौसम बुरांश का फूल खिलने के कारण कारोबार पर भी इसका असर पड़ेगा। बताया कि अमूमन 20 फरवरी के बाद बुरांश का फूल जूस बनाने के लिए लोग लेकर आते हैं, उस समय पर्याप्त मात्रा में बुरांश का फूल आता है। मगर इस बार जनवरी के पहले सप्ताह में ही बुरांश लेकर कुछ लोग पहुंच गए थे, लेकिन यह काफी कम था। बारिश नहीं होने के कारण सभी पेड़ों पर बुरांश पूरी तरह से नहीं खिला है। कोपलें भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए हैं। ऐसे में कारोबार 35 से 40 फीसदी तक कम होने की संभावना है।
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