पर्यावरण
आज 17 मई को है लुप्तप्राय प्रजाति दिवस: संकटापन्न प्रजातियों के प्राकृतवास समाप्त न होने दें
आज 17 मई को है लुप्तप्राय प्रजाति दिवस: संकटापन्न प्रजातियों के प्राकृतवास समाप्त न होने दें
सीएन, नैनीताल। हर साल 17 मई को लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर में हजारों लोग लुप्तप्राय के बारे में सीखते हैं। संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए कार्रवाई करते हैं। इस दिन संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए कार्रवाई करते हैं। यह वैश्विक दिवस डेविड रॉबिन्सन और लुप्तप्राय प्रजाति गठबंधन द्वारा 2006 में बनाया और स्थापित किया गया था। दुनिया से लगातार कई जीवों की प्रजातियां लुप्तप्राय रही है। शायद इतिहास में विलुप्त होने के बारे में सबसे पहले और सबसे अधिक ज्ञात विलुप्तियों में से एक डायनासोर की विलुप्ति है। लुप्तप्राय प्रजाति वह है जो आज भी दुनिया में है, लेकिन अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो यह अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रहेगी। अंतर्राष्ट्रीय संघ प्रकृति के संरक्षण के लिए लुप्तप्राय की स्थिति तय करता है। 2006 से वर्ष के तीसरे शुक्रवार के दिन यह दिवस संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए सीखने, कार्रवाई करने के लिए मनाया जाता है। प्रजातियां और उनकी आबादी इकोसिस्टम के बिल्डिंग ब्लॉक हैं, जो अकेले और सामूहिक रूप से सभी के जीवन के लिए परिस्थितियों को सुरक्षित करते हैं। वे भोजन, दवा, मिट्टी का निर्माण, अपघटन, पानी को फिल्टर और प्रवाह करने, परागण, कीट नियंत्रण और जलवायु को रेगुलेट करते हैं। इनके बिना पृथ्वी पर मानव जीवन भी नहीं रह सकता। यूरोप अकेले में पिछले दशक में इनकी आबादी सत्तर फीसदी कम हुई है। मानव जनित जैव विविधता जलवायु संकट और हैबिटेट लॉस के कारण अब हर दस मिनट में एक प्रजाति हरदम के लिए विलुप्त हो रही हैए मतलब एक दिन में 144, वर्ष भर में पचास हजार से ज्यादा। एक अनुमान के अनुसार 2030 तक लगभग दस लाख प्रजातियां हरदम के लिए विलुप्त हो जायेंगी। विलुप्त होने से पहले यह लुप्तप्राय श्रेणी में रखी जाती है। इन्ही के लिए यह दिवस है। पिछले पचास वर्षों में सत्तर फीसदी जंगली जानवर पृथ्वी पर कम हुए। पलटी खाया हुआ पारिस्थितिक तंत्र यह है कि अब जीवित जीवों में साठ फ़ीसदी पशु है जिसमें सूअर शामिल हैं, छत्तीस फीसदी मानव और चार प्रतिशत वन्य स्तनधारी है। पक्षियों में सत्तर प्रतिशत मुर्गियां और तीस प्रतिशत जंगली पक्षी हैं। हमारे देश में जब भी लुप्तप्राय प्रजाति की बात होती है तो प्राथमिकता बाघ तक ही सीमित रहती हैं। इसे आईकॉनिक बनाने के चक्कर में हम अन्य लुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजाति जंगली कुत्ते, भेड़िए, भालू, तेंदुआ, पैंगोलिन सबको भूल गए हैं। कई पक्षी और पेड़ की प्रजातियां लुप्तप्राय है। इन्हें बचाने के लिए कोई ठोस योजना बनाने पर भी चर्चा नहीं होती, जिसकी जरूरत है। आपके क्षेत्र, राज्य और देश में बहुत सी वन्य प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं और कई प्रजातियां पूर्व में हीं विलुप्त हो चुकीं हैं। एक बार जो प्रजाति हमारे ग्रह से विलुप्त हो जाती है उसे वापस नहीं लाया जा सकता है। अतः यह श्रेयष्कर है कि हम ऐसी संकटापन्न प्रजातियों के प्राकृतवास समाप्त न होने दें। यदि विकास आदि के विभिन्न प्रोजेक्ट के कारण ऐसा हो रहा है तो कृपया उनका पुरजोर विरोध करें, और उनके संरक्षण में अपनी सक्रियता सहभागिता सुनिश्चित करें।
