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पर्यावरण

नैनी झील में फिर दिखाई दे रही मगूंरा प्रजाति की मांसाहारी मछली यानी कैट फिस, झील की जैव पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा

नैनी झील में फिर दिखाई दे रही मगूंरा प्रजाति की मांसाहारी मछली यानी कैट फिस, झील की जैव पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
पिछले चार दशक से नैनी झील में जैव पारिस्थितिकी तंत्र को बचाये रखने के लिए जहां एरेशन कर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जा रही है। वहीं झील में पाये जाने वाली खतरनाक मछलियां झील को प्रदूषित ही नही कर रही हैं बल्कि जैव पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खरा बन गई है। 2008-9 में झील से मगूंरा प्रजाति की मांसाहारी मछली यानी कैट फिस को निकाला गया था लेकिन अब वह फिर दिखाई देने लगी हैं। मगूंरा प्रजाति की मांसाहारी मछली महाशीर मछली के लिए खतरा भी बनी हुई है। हालांकि पूर्व में पंतनगर मत्स्य महाविद्यालय के सहयोग से झील प्राधिकरण ने मछलियां निकालने को अभियान चलाया था, लेकिन अभी पूर्ण सफलता नहीं मिली है। इसके लिए और एक अभियान चलाने की बात मत्स्य वैज्ञानिकों ने कहीं है। झील में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग भारी मात्रा में करने के कारण गम्बूशिया, बीग हैड व मगूंरा प्रजाति की मछलियां झील को प्रदूषित करती है। इनमें सबसे अधिक खतरनाक मछली थाईलैंड व चीन मूल मगूंरा मानी गई है। यह मछली मांसाहारी होती है। झील में पाली जा रही महाशीर व सिल्वर कार्प मछलियों को सर्वाधिक खतरा पैदा हो जायेगा। बिग हैड जहां झील में पाये जाने वाले जन्तु प्लवक को नुकसान पहुंचाती हैं वहीं मगूंरा भारी मात्रा में महाशीर प्रजाति की मछलियों को निगल जाती हैं। यह झील में तैरने वाले तैराकों पर भी हमला कर देती है। पंतनगर मत्स्य महाविद्यालय मत्स्य विज्ञान विभाग के प्राचार्य डा. आशुतोष मिश्रा ने बताया कि झील विकास प्राधिकरण द्वारा पूर्व में झील से गम्बूशिया, बिग हेड व मगूंरा मछलियों को निकालने का अभियान चलाया था। गम्बूशिया 95 प्रतिशत तक निकाली जा चुकी है, जबकि बिग हैड व मगूंरा मछलियां अभी झील में पायी गई है। गम्बूशिया मछली तेजी से प्रजनन करती है और झील में ही खत्म हो जाती है। इससे प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। लिहाजा इस प्रजाति का समूल नष्ट किया जाना जरूरी है।
धार्मिक अनुष्ठान के तहत डाली गई नैनी झील में मगूंरा
मनुष्य व जल चरों के लिए खतरनाक मानी जाने वाली मगूंरा मछली यहां झील में एक समुदाय के लोगों ने धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने को डाली गई। मूल रूप से थाईलैंड में पायी जाने वाली यह मछली 40 किलो भार तक की होती हैं। यह मछली घुलित ऑक्सीजन को नुकसान पहुंचाती है। भारत में मगूंरा उत्पादन प्रतिबंधित किया गया है। चूंकि इसका मांस खाने से चर्म रोग होने की आशंका बन जाती है और कैंसर जैसी घातक बीमारी की वजह बन सकती है।
थाई मगूंरा मछली खाना हो सकता है जानलेवा
थाई मगूंरा ऐसी ही मछली है जिसे खाना जानलेवा हो सकता है। यह मछली कैंसर जैसी घातक बीमारी की वजह बन सकती है। भारत में इस मछली की बिक्री पर बैन लगा हुआ है। कई जगहों पर प्रतिबंध के बावजूद इस मछली को बेचा जाता है, लेकिन लोगों को इसे भूलकर भी नहीं खाना चाहिए। ऐसा करना उनके लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है। थाई मगूंरा मछली को भारत में बैन किया गया है। यह मछली न केवल इंसानों की सेहत के लिए खतरनाक है बल्कि यह जलीय जीवों को भी गंभीर नुकसान पहुंचाती है। भारत सरकार ने इसके पालन, बिक्री और सेवन पर रोक लगा रखी है। थाई मगूंरा मछली में कैंसर पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं। इसके सेवन से शरीर में हानिकारक टॉक्सिन्स प्रवेश करते हैं, जो गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। यही कारण है कि इसे कार्सिनोजेनिक फिश यानी कैंसर कारक मछली भी कहा जाता है।
मगूंरा मछली को 1998 में सबसे पहले केरल में प्रतिबंधित
थाई मगूंरा मछली को 1998 में सबसे पहले केरल में प्रतिबंधित किया गया। उसके बाद वर्ष 2000 में देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मगूंरा मछली के पालन और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सबसे बड़ी वजह इसका मांसाहारी होना है। वहीं इसका उपयोग करने वालों में कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। थाईलैंड की प्रजाति होने के कारण इसे थाई मगूंरा भी कहा जाता है। चिकित्सकों की मानें तो मगूंरा मछली खाने से कैंसर का खतरा रहता है। प्रतिबंधित होने के बावजूद भी इस मछली को बाजारों में खुले तौर पर बेचा जा रहा है। राजधानी यूपी व उत्तराखंड की सभी मंडियों में मगूंरा मछली देखी जा सकती है। जबकि राज्य का मत्स्य विभाग इस मछली के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने में पूरी तरीके से विफल साबित हो रहा है।

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