पर्यावरण
मार्च माह के मध्य में ही सवा सात फीट नीचे हो गया है नैनी झील का जलस्तर
-कम जल दोहन कर लगातार पानी रोस्टर से वितरित करना अब हो गया जरूरी
-नैनी झील के जलागम क्षेत्रों से रोजाना पेयजल को 8 लाख लीटर पानी का दोहन
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। इस वर्ष अंतिम वर्षा अगस्त-सितम्बर माह में हुई थी। तब नैनी झील अपने मानक के अनुसार 12 फीट तक भर गई थी। लेकिन इन छह माह के अंतराल में झील का जल स्तर शून्य लेबल 4 फीट 9 इंच पर पहुंच गया है। हर रोज इंच-दर-इंच पानी घट रहा है। हर रोज कम हो रहे नैनी झील के जल स्तर से चिंताएं बढ़ने लगी है। 2016 की गर्मियों में झील का जो रूप देखा गया। वैसी ही आशंकाएं इस बार भी हो रही है। दूसरी ओर रोजाना 8 लाख लीटर पानी का दोहन झील के जलागम क्षेत्रों से जल संस्थान द्वारा किया जा रहा है। पर्यावरणविदों जलागम क्षेत्रों से रोजाना हो रहे जल दोहन पर नियंत्रण कर पानी लगातार रोस्टर से वितरित करने पर बल दिया है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में भी झील बहुत छोटा आकार ले लेगी। जानकार लोगों का कहना है कि जल दोहन नियंत्रित कर पानी की बर्बादी को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किये जाने चाहिए। इसके लिए संबंधित विभागों को कार्य योजना बना कर गंभीर प्रयास किये जाना जरूरी है। साथ ही जल संरक्षण के लिए जन जागरूकता भी अब जरूरी है। अगर प्रयास नहीं किये गये तो जीवनदायिनी झील को बचा पाना आने वाले समय में कठिन हो जायेगा। मालूम हो कि बीते वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मानसूनी वर्षा अच्छी हुई। 2016 की गर्मियों में झील का जलस्तर 17 फीट तक गिर गया था। जबकि इस वर्ष सवा सात फीट नीचे पहुंच गया। अच्छी वर्षा के कारण झील पुन अपने स्वरूप में आ गई। इससे पूर्व झील की इस हालत को लेकर स्थानीय नागरिक, पर्यावरणविद ही नहीं बल्कि पीएमओ कार्यालय सहित प्रदेश सरकार भी चिंतित दिखी। लेकिन इसके बाद भी यहां कोई ठोस नीति अब तक नही बन सकी। झील को बचाने के लिए अब स्थानीय लोगों को आगे आना होगा। हर नागरिक को पानी की बर्बादी को रोकने के लिए पहल करनी होगी। इसके साथ ही शासन.प्रशासन व संबंधित विभागों को भी पानी के अत्यधिक दोहन को रोकने, पेयजल लाईनों तथा टैंकों से हो रहे पानी के रिसाव को रोकने के साथ ही घरों के पानी को नालों में डालने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। इस वर्ष मानसून के बाद अब तक नैनीताल में पर्याप्त वर्षा नही होने से जहां झील रिचार्ज नहीं हो रही हैं। वहीं जल संस्थान झील के जलागम क्षेत्रों से रोजाना लाखों लीटर पानी नलकूपों से निकाल रहा है। नैनी झील 40 प्रतिशत भूमिगत जल से तथा 60 प्रतिशत बरसात के जल से रिचार्ज होती है। जानकारों की माने तो अगर अब भी पर्याप्त वर्षा नहीं हुई तो गर्मियों में जल संकट पैदा हो सकता है। पूर्व पालिका सभासद संजय साह का कहना है कि इसके जलागम क्षेत्रों से लगातार इन दिनों 8 लाख लीटर पानी जल संस्थान 11 नलकूपों से खींच रहा है। इससे भी झील प्रभावित हो रही है। जल संस्थान को अब अधिक जल दोहन बंद कर शहर में रोस्टर से पानी वितरित करना चाहिए। वरना आने वाले दिनों में शहर को भारी संकट से गुजरना पड़ेगा। पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत का स्पष्ट कहना है कि झील में लगातार गाद भरने से इसका जल संग्रहण क्षेत्र संकुचित हो गया है। सरकारी तंत्र को पानी के लिये अत्यधिक जल दोहन झील के जलागम क्षेत्रों से नहीं करना चाहिये। झील के मानवीय कारणों से जल स्तर कम होने को गंभीरता से लेना होगा। बता दें कि सूखाताल झील से लगे बारापत्थर स्नोव्यू व पालिटेक्निक की पहाड़ियां नैनी झील का जलागम क्षेत्र है। बरसात में इन क्षेत्रों के जल स्रोतों व बरसात के पानी से सूखाताल रिचार्ज होती है। भू वैज्ञानिकों के मुताबिक सूखाताल झील से पानी भूमिगत होकर नैनी झील को रिचार्ज करता है
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