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पर्यावरण

आसमान में बढ़ता जा रहा पानी, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, दोगुनी हो जाएंगी वायुमंडलीय नदियां

आसमान में बढ़ता जा रहा पानी, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी, दोगुनी हो जाएंगी वायुमंडलीय नदियां
सीएन, नईदिल्ली।
पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ है। पर धरती का सारा पानी सिर्फ नीचे नहीं बहता है। पृथ्वी के वायुमंडल में भी पानी का विशाल भंडार है, जिसे वायुमंडलीय नदियां कहते हैं। नए शोध में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वायुमंडलीय नदियों में पानी बढ़ता जा रहा है। एक नए अध्ययन में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण की मिशेल मैकलेनन के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन जलवायु मॉडल और सबसे खराब ग्रीनहाउस.गैस परिदृश्य का विश्लेषण किया। परिणाम बताते हैं कि अंटार्कटिका में आने वाली वायुमंडलीय नदियों की संख्या 2100 तक दोगुनी हो सकती हैं। वे जो नमी प्रदान करती हैं उसकी मात्रा भी ढाई गुना बढ़ सकती है। इस परिवर्तन के पीछे का कारण सामान्य भौतिकी है। गर्म हवा अधिक जल वाष्प धारण कर सकती है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, दक्षिणी महासागर और निचला वायुमंडल स्पंज की तरह भर जाता है। वायुमंडलीय नदियाँ दिखाई नहीं देतीं, लेकिन भारत में उनकी तीव्रता बढ़ रही है और वे अत्यधिक वर्षा और बाढ़ में योगदान दे रही हैं।
विशेषज्ञ हाल ही में वायनाड में हुए भूस्खलन के लिए तीव्र मानसूनी वर्षा और वनों की बजाय वृक्षारोपण को तरजीह देने वाले भूमि-उपयोग परिवर्तन को जिम्मेदार मान रहे हैं। लेकिन एक अधिक अदृश्य वायुमंडलीय घटना की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वायुमंडलीय नदियाँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म होते महासागरों द्वारा पोषित जलवाष्प की ध्रुव-बद्ध धाराएँ हैं। जब वे उत्तर की ओर जाती हैं, तो वे तेज हवाओं से प्रेरित होती हैं और अपने रास्ते में आने वाले क्षेत्रों में भारी वर्षा लाती हैं। भारत ने भी वर्ष 1985 से वर्ष 2020 के दौरान इसका असर देखा है। इस दौरान भारत में 70 प्रतिशत बाढ़ वायुमंडलीय नदियों के कारण आई थी। भारत के पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के दक्षिणी क्षेत्र में भारी वर्षा जैसी बड़ी समस्याएँ हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित कारकों में वर्षा की तीव्रता में वृद्धि के लिए जिम्मेदार एक मौसम संबंधी घटना है, जिसे वायुमंडलीय नदियाँ के रूप में जाना जाता है। गर्मियों में उमस भरी गर्मी और मानसून के दौरान भारी वर्षा उपमहाद्वीप के लिए सामान्य बात है, लेकिन हाल के वर्षों में दोनों की तीव्रता में स्पष्ट रूप से वृद्धि हुई है। जुलाई-सितंबर के मानसून के महीने आर्द्र हो गए हैं, साथ ही दुनिया के गर्म होने के कारण वर्षा के पैटर्न में भी अनियमितता आई है। 

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