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स्वास्थ्य

आज है विश्व होम्योपैथी दिवस : कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है दिवस

आज है विश्व होम्योपैथी दिवस : कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है दिवस
सीएन, नई दिल्ली।
साल 1796 में जर्मनी में सैमुएल हैनिमैन द्वारा शोध के पश्चात होमियोपैथी इलाज अस्तित्व में आया था. विश्व होम्योपैथी जागरूकता संगठन द्वारा डब्ल्यूएचएओ सर्वप्रथम नई दिल्ली में एक वार्षिक सम्मेलन में आधिकारिक रूप से घोषित किए जाने के बाद, 10 अप्रैल 2005 में पहला विश्व होम्योपैथिक दिवस मनाया गया। डब्ल्यूएचओ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो दुनिया भर में होम्योपैथी इलाज को समझने और उपयोग को बढ़ावा देता है। तभी से हर वर्ष होम्योपैथिक चिकित्सकों, संगठनों एवं उत्साही लोगों द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से यह दिवस मनाया जाता है। इन आयोजित कार्यक्रमों में होम्योपैथी और इसके लाभों के बारे में सेमिनार, कार्यशालाएं, मुफ्त क्लीनिक, सार्वजनिक व्याख्या आदि शामिल होते हैं। होम्योपैथी के इर्द-गिर्द भ्रामक प्रचारों, वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के बावजूद, इसके उपचार एवं गुणों को लोग सराह और स्वीकार कर रहे हैं। होम्योपैथी के संस्थापक कहे जाने वाले डॉ सैमुअल हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को हुआ था। इसलिए उनकी जयंती पर विश्व होम्योपैथिक दिवस मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। होम्योपैथी चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली है, जो प्राकृतिक उपचार प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अत्यधिक हलके एवं पतले पदार्थों का इस्तेमाल करती है। यह लाइक क्योर लाइक के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि एक पदार्थ जो एक स्वस्थ व्यक्ति में लक्षण पैदा करता है, एक बीमार व्यक्ति में समान लक्षणों के इलाज के लिए पतला रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।विश्व होम्योपैथी दिवस कई मायने में महत्वपूर्ण है. पिछले 200 वर्षों से भी ज्यादा समय से होम्योपैथी इलाज चलन में है। होम्योपैथी के सिद्धांतों को विकसित करने में डॉ. हैनिमैन के अभूतपूर्व कार्य एवं दवा के अभ्यास और स्वास्थ्य सेवा के हमारे दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव पड़ा है। विश्व होम्योपैथी दिवस एक सुरक्षित और प्रभावी पूरक दवा के रूप में होम्योपैथी के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह दिवस होम्योपैथी के चलन को बढ़ाने और स्वास्थ्य सेवा के मुख्य मुख्यधारा से जोड़ने की वकालत करता है, साथ ही होम्योपैथिक संगठनों द्वारा चल रहे प्रयासों पर प्रकाश डालता है। होम्योपैथी एक ठोस और सुचारू इलाज साबित हो सकता है, लेकिन इसके लिए चिकित्सक को मरीज की संपूर्ण हिस्ट्री, यानी रोगी का नाम, आयु, शिक्षा, पता, पेशा इत्यादि जानना जरूरी है। इसके बाद उसकी मानसिक समस्याओं, लक्षणों को भी जानना जरूरी है, क्योंकि किसी को नींद की समस्या, किसी को एकाग्रता की कमी, किसी को बेचैनी जैसी तकलीफ हो सकती है; इसी तरह कुछ अत्यधिक वर्क लोड और हीन भावना से ग्रस्त हो सकते हैं। कुछ को मनोवैज्ञानिक शिकायतें मसलन किसी विशेष प्रकार के भोजन की इच्छा में वृद्धि, या किसी विशेष प्रकार के भोजन से घृणा, जैसी मिली-जुली शिकायतों के साथ शुरू हो सकती हैं। इसके बाद शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं की जानकारी भी जरूरी है। भारत में होम्योपैथी के उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। अनुमान है कि भारत में 10 करोड़ से अधिक लोग होम्योपैथी का उपयोग अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में 200,000 से अधिक पंजीकृत होम्योपैथिक डॉक्टर और 7,000 से अधिक होम्योपैथिक अस्पताल और औषधालय हैं। सरकारें स्वयं होम्योपैथिक अस्पताल चलाती हैं। भारत के बाद ब्राजील एक ऐसा देश है जहां होम्योपैथी काफी लोकप्रिय है और व्यापक रूप से प्रचलित है, जिसमें 15,000 से अधिक पंजीकृत होम्योपैथिक डॉक्टर और बड़ी संख्या में होम्योपैथिक फार्मेसी हैं। भारत में राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है। इसकी स्थापना 10 दिसंबर 1975 को कोलकाता में हुई थी और अब यह आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन है। यह संस्थान 2003-04 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था और 2004-05 के सत्र से पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय से संबद्ध है और होम्योपैथी में डिग्री पाठ्यक्रम संचालित करता है।

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