स्वास्थ्य
14 जून को ही क्यों मनाते हैं रक्तदाता दिवस? जानें इसका इतिहास और महत्व
14 जून को ही क्यों मनाते हैं रक्तदाता दिवस? जानें इसका इतिहास और महत्व
सीएन, नैनीताल। विश्व रक्तदान दिवस हर वर्ष 14 जून को मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस दिन को रक्तदान दिवस के रूप में घोषित किया गया है। वर्ष 2004 में स्थापित इस कार्यक्रम का उद्देश्य सुरक्षित रक्त रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदाताओं के सुरक्षित जीवन रक्षक रक्त के दान करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते हुए आभार व्यक्त करना है। खून के बिना शरीर मांस और हड्डियों से बना सिर्फ एक कंकाल रह जाता है। खून की कमी से व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ सकता है। इसी कमी को दूर करने के लिए हर साल लाखों करोड़ों लोग रक्तदान करते हैं, जो किसी जरूरतमंद की जान बचाने इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इस दिन को रक्तदाता दिवस भी कहा जाता है। हर साल रक्तदाता दिवस की एक खास थीम होती है। साल 2023 के लिए विश्व रक्तदाता दिवस की थीम है ‘रक्त दो, प्लाज्मा दो, जीवन साझा करो, अक्सर साझा करो’ इस साल रक्तदाता दिवस 14 जून, 2023 को मनाया जाएगा। रक्तदाता दिवस मनाने की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2004 में की थी। तब से हर साल इस दिन को 14 जून को मनाया जाने लगा। इसके पीछे एक खास कारण है। वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर ने ब्लड ग्रुप सिस्टम की खोज की थी। उनके इस योगदान के लिए 1930 में कार्ल लैंडस्टीनर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। रक्तदाता दिवस वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर को समर्पित हैं, जिनका जन्मदिन 14 जून को होता है. विश्व रक्तदाता दिवस की शुरुआत दुनिया भर के लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से की गई थी। जिससे विभिन्न खतरनाक बीमारियों से प्रभावित मरीजों को नया जीवन देने के लिए रक्त दिया जा सके। इस दिन हर देश के पुरुष, महिलाएं एवं स्वयंसेवक जरूरतमंदों को रक्त और प्लाज्मा दान करते हैं। इस दिन जगह जगह पर रक्तदान शिविर भी लगाए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो हर साल करीब 118.54 मिलियन लोग रक्तदान करते हैं।
क्या हैं दाता से रक्त प्राप्त करने के मुख्य तरीके
दाता से रक्त प्राप्त करने के दो मुख्य तरीके हैं। अपरिवर्तित रक्त के रूप में सीधे शिरा से ज्यादातर रक्त ले लिया जाता है। आम तौर पर इस रक्त को अलग भागों में, ज्यादातर लाल रक्त कोशिकाओं और प्लाज्मा में विभाजित किया जाता है, क्योंकि अधिक से अधिक प्राप्तकर्ताओं को केवल एक घटक विशेष की जरूरत होती है। अन्य तरीका दाता से रक्त लेने का है, इसमें एक अपकेंद्रित्र (सेंट्रफ्यूज) या एक फिल्टर का उपयोग कर इसे अलग कर वांक्षित हिस्सों को संचित कर लिया जाता है और बाकी दाता को वापस दे दिया जाता है। यह प्रक्रिया अफेरेसिस कहलाती है और अक्सर यह काम इसके लिए विशेष रूप से तैयार मशीन के जरिए किया जाता है। सीधे रक्त आधान के लिए शिरा का उपयोग किया जाता है, लेकिन बदले में रक्त धमनी से लिया जा सकता है। इस मामले में, रक्त संचित नहीं किया जाता है, बल्कि दाता से सीधे प्राप्तकर्ता में पंप कर दिया जाता है। रक्त आधान का यह पुराना तरीका है और आज के समय में शायद ही कभी इसका इस्तेमाल किया जाता है। रसद और घायल सैनिकों का इलाज करके लौटे डॉक्टर जब नागरिक जीवन में लौट जाते हैं तब संचित रक्त के लिए बैंक की स्थापना की समस्या के कारण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चरणबद्ध रूप से इसे बंद कर दिया गया।