राष्ट्रीय
चढ़ते तापमान की गर्मी में रिकॉर्ड झुलसने लगे, पारे ने 47 किया पार
रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की वजह है ग्लोबल वार्मिंग : भारतीय मौसम विभाग
सीएन, नईदिल्ली। अभी अप्रैल खत्म ही हुआ है और चढ़ते तापमान की गर्मी में रिकॉर्ड झुलसने लग गए हैं. देश के कई इलाकों में पारे ने 47 डिग्री सेल्सियस का स्तर छू लिया है या छूने के करीब है. मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की वजह ग्लोबल वार्मिंग है. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक रह चुके डॉ. केजे रमेश का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से भारत के वातावरण में जो बदलाव सन 2025 और 2030 में आने का अनुमान लगाया जा रहा था, वह अभी से दिखाई देने लगे हैं.
डॉ. रमेश ने बताया कि हम पूर्व-औद्योगिक युग से 1.2 डिग्री सेल्सियस वॉर्मिंग का स्तर पहले ही पार कर चुके हैं, इसलिए मौसम में बदलाव तो होने ही थे. लेकिन ये बदलाव इतनी जल्दी हो जाएंगे, इसका अनुमान नहीं था. भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिनमें इस साल इतनी जल्दी गर्मी ने जोर पकड़ा है. अप्रैल में औसत मासिक तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस रहा है, लेकिन जो विसंगतियां हम देख रहे हैं, वो इससे कहीं ज्यादा हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में अप्रैल-मई में हीटवेव आम बात हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से पारा इतनी जल्दी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा है, उसने दुनिया भर के जलवायु वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है. मार्च में पिछले 122 वर्षों का औसत अधिकतम तापमान का उच्चतम स्तर 33.1 डिग्री का रिकॉर्ड पहले ही टूट चुका है. हीटवेव के दो लंबे दौर आ चुके हैं. लू के ये दौर हिमाचल के पहाड़ों से लेकर महाराष्ट्र के तटीय इलाकों तक देखे गए है. वायुमंडलीय विज्ञान व जलवायु के मामलों पर भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सलाहकार रह चुके डॉ. रमेश का कहना है कि मार्च में हीटवेव असाधारण घटना थी. हम 2025 के बाद इन बदलावों की संभावना जता रहे थे, जो 2030 तक होने थे. लेकिन वो बदलाव अभी सामने आ रहे हैं. संभावना है कि आने वाले वर्षों में ये और तीखे होंगे और बार-बार अपना असर दिखाएंगे. मौसम में इन बदलावों का असर फसलों पर पड़ना भी शुरू हो चुका है. इस बार उत्तर पश्चिम इलाकों में 87 फीसदी तक कम बारिश हुई. इसकी वजह से गेहूं की फसल में 6 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ तक की गिरावट देखी गई है. हालात ये है कि पंजाब और हरियाणा में किसानों को कम पैदावार के चलते मवेशियों के लिए चारा (गेहूं का भूसा) तक नहीं मिल पा रहा है. कोयले की सप्लाई में कमी से पैदा हुए बिजली संकट ने कई शहरों और कस्बों की बत्ती गुल कर दी है. 2016 से 2019 तक भारतीय मौसम विभाग का नेतृत्व करने वाले डॉ. रमेश ने आशंका जताई कि आने वाले समय में हीटवेव की स्थिति और भी विकराल हो सकती है. उन्होंने बताया कि तेजी से बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक में बर्फ की परत तेजी से पतली हो रही है. इससे दुनिया में सर्कुलेशन का पैटर्न बदल रहा है. इसका नतीजा उत्तरी गोलार्ध के और गर्म होने के रूप में सामने आ सकता है. इसके अलावा, पहले जो सौर विकिरण जमी हुई बर्फ से परावर्तित होकर लौट जाता था, अब महासागरों में अवशोषित हो रहा है. इससे आने वाले वर्षों में खासतौर से दक्षिण एशिया और भारत जैसे उष्णकटिबंधीय इलाकों में बेहद तेज गर्मी के हालात बन सकते हैं.