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जन मुद्दे

हिंदी पत्रकारिता दिवस : वर्तमान पत्रकारिता का परिदृश्य

30 मई 1826 को हिंदी का पहला समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड किया गया था शुरू
आज के दौर में हो गया दरबारी और सत्ता पसंद लुटीयन पत्रकारों की गैंग का जन्म
सीएन, नईदिल्ली।
हर वर्ष 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। देश में 195 वर्ष पहले शुरू हुई इस मिशन पर लोगों की ‘विश्वसनीयता’ आज भी बरकरार है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता की राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका भी रहती है। सामाजिक कुरीतियाें को उजागर करने व इसके उत्थान में अहम भूमिका निभाते लोग पुलिस-प्रशासन और नेताओं से ज्यादा ‘भरोसा’ करते हैं. पत्रकारिता के बिना लोकतंत्र अधूरा है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के साथ पत्रकारिता जुड़ी हुई है। किसी भी देश को सरकार चलाने में पत्रकारिता का भी बड़ा योगदान है। चाहे कैसी भी प्राकृतिक आपदाएं हो लोगों को सूचना पहुंचाने के लिए पत्रकार मौके पर एक ‘योद्धा’ की तरह डटा रहता है। कोरोना के दौरान अभी तक देश में कई पत्रकारों ने अपनी जान गंवा दी है। आज बात होगी पत्रकारिता दिवस को लेकर। पिछले एक वर्ष से देश में कोविड-19 महामारी के दौर इस ‘मिशन’ की बड़ी भूमिका साबित हुई। इस महामारी के प्रति देशवासियों को लगातार खबरों से पत्रकारिता जागरूक करने में लगी हुई है। पत्रकारिता को समाज का आईना भी कहा जाता है। हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत साल 1826 में मानी जाती है तब से लेकर मौजूदा समय तक पत्रकारिता ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं जब से लेकर अब तक इसका स्वरूप बदला, काम करने का अंदाज बदला, कलेवर बदला, लेकिन एक चीज पर बदलाव नहीं हुआ वह है इसकी ‘विश्वसनीयता’ आज भी देश और दुनिया में कायम है। अपने शुरुआती दौर से लेकर मौजूदा समय में पत्रकारिता जन-जन तक आवाज पहुंचाने के लिए सबसे अच्छा माध्यम बना हुआ है। करीब दो दशक पहले पत्रकारिता को नया नाम ‘मीडिया’ कहा जाने लगा है.‌ हिंदी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर तय किया है। आज हिंदी भाषी पत्रकारों के लिए बेहद खास दिन है। आज ही के दिन यानी 30 मई 1826 को हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ शुरू किया गया थ । हालांकि आज के युग में पत्रकारिता के कई माध्यम हो गए हैं जैसे-अखबार, मैगजीन, रेडियो, दूरदर्शन, समाचार चैनल और डिजिटल मीडिया। पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय बन गया है, जिसमें देश और दुनिया भर से समाचारों को इकट्ठा करना, लिखना और उसे लोगों तक पहुंचाना शामिल है। भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई थी। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से 30 मई 1826 में प्रथम हिंदी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ किया था। उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया था. इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका आखिरकार 1927 के आखिरी में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। लेकिन इस समाचार पत्र से ही भारत में आजादी की अलख भी जगह दी थी।

पत्रकारिता करने के लिए किराए पर उपलब्ध रहते हैं लुटीयन पत्रकार
भारत में आजादी के बाद की पत्रकारिता का उद्देश्य बदल जाने से उसकी गंभीरता और स्तर में गिरावट देखने को मिलता है। लेकिन आपातकाल के बाद से पत्रकारिता में नए दरबारी और सत्ता पसंद लुटीयन पत्रकारों की गैंग का जन्म हुआ। जो एक खास पार्टी की चरणवंदना करने वाली और अपने आपको सेक्युलर कहलाने के साथ एक खास विचारधारा और तुष्टीकरण की नीतियों को प्रोत्साहित करने वाली रही। इस जमात के पत्रकार देश की बहुसंख्यक आबादी को दोषी बताने और उनकी मानसिकता को कुंठित करने वाली पत्रकारिता करने लगे, जिसके परिणाम स्वरूप देश से विकास पत्रकारिता का लोप होता चला गया और सभी को साथ लेकर चलने के बजाय सरकार भी कुछ खास समुदाय के लिए नीतियाँ बनाने लग गई। जिसमें देश की बहुसंख्यक आबादी को नजर अंदाज किया गया। जिस पर इन्हीं दरबारी पत्रकारों ने लंबे-लंबे लेख लिख कर उसे जायज ठहराया। दरबारी पत्रकारों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्हें देश विरोधी बातों में अभिव्यक्ति की आजादी नजर आती है और असामाजिक तत्वों के कृत्यों में मानवीय अधिकार। जिनकी वकालत करने के लिए ये आधी रात को तैयार खड़े रहते हैं। ये नक्सलियों, अलगाववादियों, माओवादियों, आतंकवादियों, खालिस्तानियों आदि देश विरोधियों के दरबार में पत्रकारिता करने के लिए किराए पर हमेशा उपलब्ध रहते हैं। वर्तमान में वही पत्रकार अपनी पुरानी सत्ता को वापस लाने के लिए गिद्ध पत्रकारिता करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। जो पत्रकारिता के लिए बहुत ही दुर्भाग्य का विषय है। यकीनन पत्रकारिता के पुरोधाओं ने कभी भी इस दिन के लिए पत्रकारिता की नींव नहीं रखी थी। पत्रकारिता का सबसे प्रमुख चरित्र राष्ट्रवाद और देशभक्ति ही है। जो वर्तमान की पत्रकारिता से नदारद दिखाई पड़ती है। आज खबरों में मसाला डालने और स्वहित के लिए पत्रकार, देश और समाज का अहित वाली पत्रकारिता करने से भी नहीं चूकते। एक वो समय था जब आजादी के मतवाले पत्रकार देशहित और राष्ट्रवाद के लिए अपनी जान भी कुर्बान करने से पीछे नहीं हटते थे और कहाँ आज छोटे-छोटे लाभ के लिए पत्रकार देशहित और राष्ट्रवाद से समझौता करने में भी नहीं चूकते। आज हिंदी पत्रकारिता के आरंभ से 195 साल बीत चुके हैं और आज पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह से व्यावसायिकता का चोला ओढ़ कर एकतरफा सेक्युलर हो चुका है।

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