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रतन टाटा जैसा इश्क, दोस्ती व नेतृत्व भला कौन कर पाएगा, प्यार जो कभी कम नहीं होगा….

रतन टाटा जैसा इश्क, दोस्ती व नेतृत्व भला कौन कर पाएगा, प्यार जो कभी कम नहीं होगा
सीएन, नईदिल्ली।
9 अक्टूबर को भारत के सबसे पसंदीदा और प्यार किए जाने वाले बिजनेस टायकून रतन टाटा का 86 की उम्र में निधन हो गया है। उनका चले जाना ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी अपने को खो दिया हो। यही तो वो जुड़ाव है जो टाटा को सबके लिए रतन बनाता था। और ऐसा फिर कभी किसी के लिए महसूस होगा, ये कह पाना मुश्किल है। रतन टाटा, एक ऐसा नाम जिसे भारत के लोग गर्व से लेते थे। वो जब इनके बारे में सुनते थे या फिर बात करते थे तो ऐसा लगता था जैसे किसी अपने की ही बात हो रही है। किसी बिजनेसमैन का आम जनता के दिलों में इस तरह से घर बना लेना फिक्शनल कहानी से कम नहीं है। पर टाटा तो टाटा थे। चाहे इश्क रहा हो दोस्ती या फिर लीडरशिप, उनके जैसा किसी और का बन पाना आसान नहीं। यही तो वजह है कि टाटा को जैसा प्यार लोगों से मिला, किसी और बिजनेसमैन को वैसे कभी मिलेगा, ये सोच पाना भी मुश्किल है। 86 की उम्र में बिजनेस टायकून को खोने के बाद एक ऐसी उदासी है जैसे सभी ने किसी अपने को खो दिया हो। आखिर रतन टाटा में ऐसा क्या था, जो उन्हें कैल्कुलेटिव बिजनेसमैन होते हुए भी एक ऐसा इंसान बनाता था, जिससे लोग जुड़ पाते थे और अपनी प्रेरणा के रूप में देखते थे। रतन टाटा ने ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को दिए इंटरव्यू में बताया था कि वो लॉस एंजल्स में एक लड़की से मोहब्बत करने लगे थे। कुछ पारिवारिक कारणों के चलते टाटा को वापस भारत आना पड़ा। वो चाहते थे कि उनकी गर्लफ्रेंड भी यहां आ जाए। हालांकि, 1962 के इंडो-चाइना वॉर के कारण लड़की के माता-पिता ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। और टाटा की लव स्टोरी अधूरी ही रह गई। रतन टाटा के सर्कल में किस ओहदे के लोग उठते.बैठते होंगे, इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं। उनका फ्रेंड सर्कल दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों से भरा हुआ था। लेकिन दोस्ती ताकत और पैसों पर नहीं तौली जा सकती। से भी कम शांतनु के साथ शेयर करते थे। इस बात में कोई दो राय ही नहीं है कि रतन टाटा भी अन्य बिजनेसमैन की तरह ही हर कदम को गुणा.भाग करके ही उठाते थे। वो जब निर्णय लेते थे, तो दिल को जरा किनारे कर देते थे। कोई जब इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को रन कर रहा हो, तो उसके लिए ऐसा करना जरूरी भी हो जाता है। हालांकि, प्रॉफिट कमाने के लिए रतन ने कभी अपने ईमान को नहीं बेचा। यही वजह है कि जब भी किसी भी चीज से टाटा नाम जुड़ा, लोगों का विश्वास भी उस पर अपने आप आ गया। आज की तारीख में किसी और टायकून के लिए कोई ऐसा महसूस कर सकेगा, ये सोच पाना भी थोड़ा मुश्किल है। तभी तो लोग उन्हें अपने लिए आदर्श मानते थे और मानते रहेंगे। रतन टाटा अरबों की संपत्ति के मालिक थे, लेकिन वो जिस सादगी, अदब और मुस्कुराते हुए हमेशा सबके सामने आते थे, वो अपने आप में सीख देता था कि कैसे दौलत होते हुए भी इंसान जमीन से जुड़ा हुआ रह सकता था। रतन टाटा समाज को बेहतर बनाने में यकीन रखते थे। वो सही मायनों में लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वो जब जीवित थे तो शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, समाज सेवा आदि के लिए कुल 9000 करोड़ रुपयों का दान दे चुके थे। इतना ही नहीं टाटा तो देश के लोगों के लिए नैनो तक लेकर आए। किसी ने कल्पना तक नहीं की थी कि लाख रुपये से थोड़ी सी ज्यादा कीमत में वो गाड़ी के मालिक बन सकते हैं। लेकिन रतन का यही तो सपना था। वो अपने भारतीयों को अफोर्डेबल कार देना चाहते थे। एक ओर जहां लोग दौलत आते ही सिर्फ अपनी लग्जरी पर ध्यान देने लग जाते हैं, वहीं टाटा सिखाते थे कि समाज और देश के लिए कुछ कर पाना सभी की जिम्मेदारी है। और चाहे चैरिटी के जरिए हो या फिर कुछ फैसलों के जरिए, सभी को इसमें सहयोग देना चाहिए।

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