दुर्घटना
पुलवामा के शहीद : आतंकी हमले से छलनी हुआ था देश का सीना
पुलवामा के शहीद : आतंकी हमले से छलनी हुआ था देश का सीना
सीएन, श्रीनगर। साल 2019 के फरवरी महीने की 14 तारीख ने देश को झकझोर कर रख दिया था। आज इस आतंकी घटना को चार साल पूरे हो गए हैं, कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले की आज तीसरी बरसी है। तीन साल पहले आज ही के दिन (14 फरवरी) जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के वाहन पर आतंकी हमला हुआ था। इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर हमलावर ने विस्फोटक भरी कार से सीआरपीएफ काफिले की बस को टक्कर मार दी थी। धमाका इतना भयंकर था कि बस के परखच्चे उड़ गए। इसके बाद घात लगाए आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग भी की। हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। आत्मघाती हमलावर द्वारा विस्फोट में उड़ा दी गई बस के ड्राईवर जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी और वो किसी अन्य साथी की जगह पर आए थे। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी दानेश राणा ने पुलवामा हमले से जुड़ी घटनाओं पर एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड नामक किताब लिखी है जिसमें हमले के पीछे की साजिश का जिक्र किया गया है। साजिशकर्ताओं के साथ की गई पूछताछ, पुलिस के आरोप पत्र और अन्य सबूतों के आधार पर राणा ने कश्मीर में आतंकवाद के आधुनिक चेहरे को रेखांकित करते हुए 14 फरवरी 2019 की घटनाओं के क्रम को याद करते हुए लिखा है कि कैसे काफिले में यात्रा कर रहे जवान रिपोर्टिंग टाइम से पहले ही आने लगे थे। नियम के अनुसार, अन्य ड्राइवरों के साथ पहुंचने वाले आखिरी लोगों में हेड कांस्टेबल जयमल सिंह शामिल थे। ड्राइवर हमेशा सबसे आखिरी में रिपोर्ट करते हैं। उन्हें नींद लेने के लिए एक्स्ट्रा आधे घंटे की अनुमति है क्योंकि उन्हें मुश्किल यात्रा करनी पड़ती है। राणा ने लिखा है, जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी, वह दूसरे सहयोगी की जगह पर आए थे। हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित किताब में कहा गया है, हिमाचल प्रदेश के चंबा के रहने वाले हेड कांस्टेबल कृपाल सिंह ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था क्योंकि उनकी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली थीV कृपाल को पहले ही पंजीकरण वाली बस सौंपी गई थी और पर्यवेक्षण अधिकारी ने जम्मू लौटने के बाद उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कहा थाV इसके बाद जयमल सिंह को बस ले जाने की जिम्मेदारी मिली। राणा लिखते हैं, वह एक अनुभवी ड्राइवर था और कई बार गाड़ी चला चुका था। वह इसके ढाल, मोड़ और कटावों से परिचित था। 13 फरवरी की देर रात, उसने अपनी पत्नी को पंजाब में फोन किया और उसे अंतिम समय में अपनी ड्यूटी बदलने के बारे में बताया। यह उनकी अंतिम बातचीत। जवानों में महाराष्ट्र के अहमदनगर के कांस्टेबल ठाका बेलकर भी शामिल थे। उसके परिवार ने अभी-अभी उसकी शादी तय की थी और सारी तैयारियां चल रही थीं। बेलकर ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था, लेकिन अपनी शादी से ठीक 10 दिन पहले, उसने अपना नाम कश्मीर जाने वाली बस के यात्रियों की सूची में पाया। राणा लिखते हैं लेकिन जैसे ही काफिला निकलने ही वाला था, किस्मत उस पर मेहरबान हो गई। उसकी छुट्टी अंतिम समय में स्वीकृत हो गई थी! वह जल्दी से बस से उतर गया और मुस्कुराया और अपने सहयोगियों को हाथ हिला कर अलविदा कहा। उसे क्या पता था कि यह अंतिम समय होगा। जयमल सिंह की नीले रंग की बस के अलावा, असामान्य रूप से लंबे काफिले में 78 अन्य वाहन थे, जिनमें 15 ट्रक, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस से संबंधित दो जैतूनी हरे रंग की बसें, एक अतिरिक्त बस, एक रिकवरी वैन और एक एम्बुलेंस शामिल थे। पुलवामा हमले का असली मास्टरमाइंड कौन है, अभी तक स्पष्ट तौर पर कुछ भी पता नहीं चला है। हमले के बाद हर साल 14 फरवरी को भारत के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए कई विजिल्स, कैंडल मार्च निकाले जाते हैं। हर साल भारत वीरों को श्रद्धांजलि देता है, उनके नाम पर माल्यार्पण करता है। भारतीय इतिहास में यह दिन नासूर की तरह है। आतंकी घटना ने भारत को दहला दिया है। गुनहगार कहा हैं, तलाश जारी है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक पुलवामा आतंकी हमले की योजना पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर गाजी अब्दुल रशीद ने बनाई थी। वह जैश-ए-मोहम्मद के नेता मौलाना मसूद अजहर के सबसे भरोसेमंद सलाहकारों में से एक है। आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद का एक शीर्ष कमांडर गाजी अब्दुल रशीद, पुलवामा में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड हो सकता है। जैश के संस्थापक मसूद अजहर ने पूरी प्लानिंग रची। अधिकारियों के मुताबिक पुलवामा में आत्मघाती हमले को अंजाम देने वाला आदिल अहमद डार को एक्सपर्ट गाजी रशीद ने ट्रेनिंग दी थी। साल 2018 में दिसंबर महीने में गाजी रशीद और उसके दो साथी कश्मीर में घुसपैठ करने में कामयाब हो गए थे। इस हमले की खबर आते ही हर देशवासी की रूह कांप उठी और सबकी आंखें नम हो गई थीं। इस समय देश में सब मौन सा हो गया था और हर हिंदुस्तानी के सीने में जवानों की शहादत का बदला लेने की चिंरागी जल उठी थी। हर कोई बस यही मांग कर रहा कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए और हुआ भी यही। इंडियन एयरफोर्स ने पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में उसी की भाषा में जवाब देते हुए सबक सिखाया। पुलवामा हमले के 14 दिन बीत जाने के बाद 26 फरवरी को इंडियन एयरफोर्स ने सर्जिकल स्ट्राइक की और पाकिस्तान में घुसकर उनके आतंकी ठिकानों को तहस-नहस कर दिया और 40 जवानों की मौत का बदला 300 आतंकियों की मौत से लिया।