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पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 7 मार्च को पुण्यतिथि: जिन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम पूरा किया
पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 7 मार्च को पुण्यतिथि: जिन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम पूरा किया
सीएन, नैनीताल। भारत के स्वतंत्रता सेनानी पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 7 मार्च को पुण्यतिथि है। पंडित गोविंद बल्लभ पंत आजादी के एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के अपना काम पूरा किया। गोविंद बल्लभ पंत ने ना सिर्फ आजादी की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदी को भी सम्मान दिलाने का काम किया। वर्तमान भारत के मौजूदा स्वरूप के लिए उन्होंने बड़ा योगदान दिया है। वे भारत के जाने-माने वकील के साथ-साथ उत्तर प्रदेश राज्य के पहले मुख्यमंत्री और भारत के चौथे गृह मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पंडित गोविंद बल्लभ पंत को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा जा चुका है। वे भारतीय आंदोलनों में भाग लेने वाले सबसे प्रसिद्ध चेहरा थे। एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता के रूप में गोविंद बल्लभ पंत जी ने निरपेक्ष होकर देश की प्रगति में अपना योगदान दिया है। आजादी के पश्चात भाषा के आधार पर राज्यों के विभाजन में उनका अहम योगदान रहा है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में खूंट नामक गांव में 10 सितंबर 1887 में इनका जन्म हुआ था। एक महाराष्ट्रीयन मूल के ब्राह्मण परिवार में गोविंद बल्लभ पंत ने जन्म लिया था। उनके पिता का नाम मनोरथ पंत तथा माता का नाम गोविंदी बाई था। गोविंद जी के जन्म के कुछ सालों बाद उनके माता-पिता पौड़ी गढ़वाल रहने के लिए चले गए। जिसके पश्चात् वे अपनी मौसी धनी देवी के यहां रहने लगे। वर्ष 1899 में 12 वर्ष की छोटी आयु में उनका विवाह पंडित वाला दत्त जोशी की पुत्री गंगा देवी से हुआ। अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोविंद बल्लभ पंत ने माता पिता के छत्रछाया में ही पूर्ण किया। 1897 में एक स्थानीय रामजे कॉलेज अल्मोड़ा में प्राथमिक पाठशाला में उनका दाखिला करवाया गया। इंटर के परीक्षा अच्छे नंबर से उत्तीर्ण करने के पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रवेश किया। साल 1907 में बीए से उन्होंने राजनीतिक, गणित तथा अंग्रेजी साहित्य जैसे विषयों को चुना। वर्ष 1910 में पुनः अल्मोड़ा जाकर उन्होंने वकालत शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में वह रानीखेत जाने के पश्चात काशीपुर में भी गए। काशीपुर में गोविंद बल्लभ पंत ने एक स्थानीय संस्था प्रेमसभा का गठन किया जिसके माध्यम से वे शिक्षा व साहित्य के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न करते थे। गोविंद बल्लभ पंत के विद्यार्थी जीवन में महात्मा गांधी और अन्य लोगों के कार्यों का बड़ा प्रभाव पड़ा। कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर दिसंबर 1921 में उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। 9 अगस्त 1925 में हुए काकोरी कांड में पकड़े गए दोषियों के समर्थन में पंत जी ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को फांसी से बचाने के लिए मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर वायसराय को एक पत्र भी लिखा था लेकिन उसे गांधी जी का समर्थन प्राप्त ना होने के कारण वे अपने लक्ष्य में असफल रहे। साल 1930 में ब्रिटिशों के अन्याय पूर्ण नमक कानून को तोड़ने के लिए आयोजित किए गए दांडी मार्च में हिस्सा लेकर पंत जी ने आंदोलन को गति प्रदान की थी। जिसके बाद उन्हें और कई आंदोलनकारियों को कैद कर लिया गया था। उसी दरमियान वे नैनीताल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए स्वराजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुने गए। उम्मीदवार के पद पर रहते हुए उन्होंने कई पक्षपात और अन्याय पूर्ण प्रचलित प्रथाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से कार्य किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच हुए वैचारिक मतभेदों को दूर करने के लिए भी पंत जी ने बहुत प्रयास किया था। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के कारण गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार कर लिया गया था। 1945 तक वे और कई अन्य कांग्रेस समिति के सदस्य अहमदनगर किले में पूरे तीन सालों तक जेल में बंद रहे। जिसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपने स्वास्थ्य के खराब होने के झूठे बहाने पर पंत जी को जेल से छुड़वाने में सफलता मिली। आजाद भारत में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में गोविंद बल्लभ पंत जी को चुना गया। 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवंबर 1939 तक ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रांत के प्रीमियर चुने गए। साल 1946 से लेकर 1954 तक गोविंद बल्लभ पंत ने उत्तर प्रदेश पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। भारत सरकार के सबसे बड़े पदों में से एक गृह मंत्री के पद पर वर्ष 1955 से लेकर 1961 तक गोविंद बल्लभ पंत जी ने अपना योगदान दिया। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के पश्चात उन्हें गृह मंत्री के पद के लिए चुना गया था। भारत सरकार में जब गोविंद बल्लभ पंत जी केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कार्यरत थे उस दरमियान उनकी तबीयत अक्सर खराब रहती थी। 7 मार्च 1961 के दिन हार्ट-अटैक के कारण गोविंद बल्लभ पंत जी का निधन हो गया। नैनीताल सीट पर पंत परिवार का रहा दबदबा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की नैनीताल लोकसभा सीट का इतिहास काफी रोचक रहा है। यहां पर आजादी के बाद भारत रत्न स्वर्गीय पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार का दबदबा रहा है। उनकी बहू इला पंत कुमाऊं की एक मात्र महिला सांसद रही है। इला पंत के बाद आजतक कोई भी महिला कुमाऊं क्षेत्र से इला पंत एकमात्र महिला सांसद रही हैं। वर्ष 1962 से उनके पुत्र स्व. केसी पंत नैनीताल लोकसभा सीट से लगातार तीन बार कांग्रेस की ओर से सांसद रहे। वह केंद्र सरकार में रक्षा मं.त्री, योजना मंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
