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फांसी देते समय कैदी के कान में कहता है जल्लाद, मै अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं, मै आपके सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की कामना करता हूं
फांसी देते समय कैदी के कान में कहता है जल्लाद, मै अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं, मै आपके सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की कामना करता हूं
सीएन, नईदिल्ली। कानून के अनुसार गंभीर अपराधों के लिए दोषी को फांसी की सजा दी जाती है, जेल नियमावली में इस प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया गया है। कोर्ट द्वारा दोषी को मौत की सजा सुनाने के बाद डेथ वारंट जारी किया जाता है, जिसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है। इस वारंट पर चारों ओर काली धारियां बनी होती हैं और इसे दोषी के सामने ही तैयार किया जाता है। इस वारंट को लिखने के लिए इस्तेमाल की गई कलम को बाद में तोड़ दिया जाता है। यह प्रतीकात्मक होता है कि दोषी की जिंदगी समाप्त होने वाली है और साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि जज को दोबारा इस वारंट पर हस्ताक्षर न करने पड़ें। वारंट की एक प्रति दोषी के वकील और परिवार को दी जाती है। यदि दोषी को वारंट में कोई त्रुटि नजर आती है, तो वह कानूनी रूप से चुनौती दे सकता है। नियमों के अनुसार डेथ वारंट जारी होने और फांसी की तारीख के बीच कम से कम 14 दिनों का अंतराल अनिवार्य होता है। इस अवधि में दोषी को अन्य कैदियों से अलग रखा जाता है, हालांकि वह उनसे मिल सकता है लेकिन उनके साथ भोजन नहीं कर सकता। उसे कुछ समय के लिए कैदखाने से बाहर घूमने और खेलने का अवसर भी दिया जाता है। दोषी की आखिरी इच्छा पूछी जाती है, लेकिन वास्तव में यह केवल विशेष परिस्थितियों में ही लागू होती है। दोषी से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है लेकिन यह केवल किसी विशेष व्यक्ति से मिलने या पसंदीदा भोजन तक ही सीमित होती है। अन्य कोई असामान्य मांग यदि नियमों के तहत संभव न हो तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। फांसी की प्रक्रिया प्रातःकाल सूर्योदय से पहले पूरी की जाती है। यह इसलिए ताकि जेल प्रशासन का बाकी कार्य बाधित न हो और परिवार को अंतिम संस्कार के लिए पर्याप्त समय मिल सके। अलग.अलग मौसमों के अनुसार फांसी का समय निर्धारित किया जाता है। सार्वजनिक अवकाश के दिन फांसी नहीं दी जाती। फांसी के कुछ दिन पहले दोषी का वजन लिया जाता है ताकि उसके अनुसार फांसी का तख्ता और रस्सी तय की जा सके। दो दिन पहले एक रेत की बोरी का उपयोग करके परीक्षण किया जाता है जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि रस्सी दोषी के वजन को सहन कर पाएगी। फांसी से दो दिन पहले जल्लाद को जेल बुला लिया जाता है। उसकी जिम्मेदारी होती है कि वह व्यवस्था की समीक्षा करे और प्रक्रिया को सुचारू रूप से पूरा करे। फांसी से पहले दोषी को स्नान कराया जाता है और साफ.सुथरे कपड़े पहनाए जाते हैं। उसकी पसंद का अंतिम भोजन दिया जाता है। इसके बाद जेल सुपरिटेंडेंट, मेडिकल अधिकारी, जल्लाद और अन्य अधिकारी दोषी को फांसी स्थल तक ले जाते हैं। फांसी के दौरान दोषी के हाथ पीछे बांध दिए जाते हैं और उसे तख्ते पर खड़ा किया जाता है। जल्लाद उसके चेहरे को काले कपड़े से ढक देता है। अंतिम क्षणों में जल्लाद दोषी के कान में कहता है…मै अपने फर्ज के आगे मजबूर हूँ मै आपके सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की कामना करता हूं….इसके बाद जल्लाद लीवर खींचता है और दोषी का जीवन समाप्त हो जाता है। मेडिकल अधिकारी आधे घंटे बाद शव की जांच करता है और सुनिश्चित करता है कि मृत्यु हो चुकी है। जेल सुपरिंटेंडेंट इस प्रक्रिया की रिपोर्ट इंस्पेक्टर जनरल को सौंपता है और कोर्ट में इसकी पुष्टि करता है। पोस्टमार्टम के बाद प्रशासन यह निर्णय लेता है कि शव परिवार को सौंपा जाएगा या जेल में ही अंतिम संस्कार किया जाएगा। फांसी की पूरी प्रक्रिया बेहद अनुशासित और विधि.सम्मत होती है। इसके हर चरण को सख्त नियमों के तहत पूरा किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि न्याय की प्रक्रिया निष्पक्ष और विधिसम्मत तरीके से पूरी हो।
