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संघ की हरी झंडी, मोदी से अनबन, नितिन गडकरी बीजेपी संसदीय बोर्ड से हुए बाहर

संघ की हरी झंडी, पीएम मोदी से अनबन, नितिन गडकरी बीजेपी संसदीय बोर्ड से हुए बाहर
सीएन, नागपुर।
पिछले महीने नागपुर में आयोजित एक समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि कभी-कभी वह सोचते हैं कि राजनीति छोड़ दें क्योंकि जीवन में कई और चीज करने के लिए पड़े हैं। एक अन्य समारोह में गडकरी ने कहा था कि दानदाता राजनीतिक दलों के पीछे पड़े रहते हैं और उनकी मांग को पूरा करना पड़ता है। चूंकि मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं हूं तो मुझे इस तरह की चीजों से वास्ता नहीं पड़ता है। ऐसा लगता है कि वह इन बयानों के जरिए संकेत दे रहे थे। तीन सप्ताह बाद नागपुर से बीजेपी सांसद गडकरी को पार्टी संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया। इसके अलावा केंद्रीय चुनाव समिति से भी हटा दिया गया। इसमें कई नए चेहरों को शामिल किया गया, जिसमें महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी शामिल थे। कहा तो ये भी जा रहा कि गडकरी को हटाने के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी सहमति थी। मौजूदा फेरबदल को विश्लेषक गडकरी और पीएम नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह के बीच मनमुटाव को मान रहे हैं। हालांकि कई अन्य लोगों का मानना है कि ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बदले समीकरण के कारण है। विश्लेषकों का मानना है कि गडकरी की आरएसएस के साथ नजदीकी की बात अब उतनी सही नहीं लग रही है। यही नहीं गडकरी का डिमोशन और फडणवीस का प्रमोशन के कई मायने हैं। फडणवीस भी नागपुर से जीतते हैं। एक वक्त था जब फडणवीस महाराष्ट्र के सीएम बने थे तो वह गडकरी से काफी पीछे थे। बीजेपी नेता फडणवीस के आगे बढ़ने के पीछे उनकी सफलता को भी कारण बताते हैं। महाराष्ट्र में राज्यसभा से लेकर विधानपरिषद में पार्टी की जीत। इसके अलावा राज्य में एकनाथ शिंदे गुट के साथ मिलकर सरकार बनाना और एमवीए सरकार को अपदस्थ करना उनकी बड़ी उपलब्धियों में गिना गया। इसके अलावा फडणवीस गोवा के प्रभारी भी ते। यहां विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बहुमत हासिल किया था। विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी ऐसा कोई भी बड़ा फैसला बिना आरएसएस की सहमति के नहीं ले सकती है। गडकरी आरएसएस लीडरशिप के करीबी हैं। दूसरा वह नागपुर से ही आते हैं। हालांकि दत्तात्रेय होसबोले के सरकार्यवाह बनने के बाद चीजें बदलने लगी थीं। संघ प्रमुख के बाद सरकार्यवाह दूसरे नंबर पर होते हैं और वे अहम फैसले भी लेते हैं। गडकरी के लिए होसबोले की जगह भैयाजी जोशी ज्यादा मुफीद थे। वे पीएम मोदी के भी करीब थे। विश्लेषकों का मानना है कि अब इस बात की उम्मीद कम ही है कि आरएसएस गडकरी को हटाने के फैसले को पलटने की कोशिश करेगी। उधर, होसबोले अभी नागपुर में पूरी तरह शिफ्ट नहीं हुए हैं। जबकि जोशी सरकार्यवाह के कार्यकाल के दौरान यहां रहते थे। नेताओं का कहना है कि गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाने के फैसले से कुछ सप्ताह पहले ही अवगत करा दिया गया था। बताया जा रहा है कि वह अपने पद से इस्तीफा देने को भी तैयार हो गए थे। यह पहली बार नहीं है कि गडकरी जैसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले मंत्री का कद घटा हो। जब उनपर वित्तीय गड़बड़ी का आरोप लगा था तो उन्हें बीजेपी अध्यक्ष का कार्यकाल दूसरी बार नहीं मिल पाया था। 2019 में जब गडकरी दूसरी बार मंत्री बने तो उनका पहला विभाग शिपिंग और जल संसाधन मंत्रालय वापस ले लिया गया था। इसकी जगह उन्हें माइक्रो, स्मॉल और मिडियम एंटरप्राइजेज मंत्रालय का प्रभार दिया गया था। लेकिन पिछले साल वो मंत्रालय भी उनसे ले लिया गया था और उस समय सहयोगी रह गए शिवसेना के पूर्व नेता नारायण राणे का दे दिया गया था। बीजेपी नेताओं का कहना है कि इन सबके बाद भी गडकरी अपने बेहतरीन काम के कारण केंद्र में मंत्री बने रहेंगे क्योंकि संघ और बीजेपी नेतृत्व उन्हें नाराज नहीं करना चाहती है। नागपुर के कुछ बीजेपी नेताओं ने कहा कि गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे वरिष्ठ नेताओं को संसदीय बोर्ड से हटाने का फैसला आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि पीएम मोदी और शाह भविष्य की टीम बना रहे हैं। ऐसी टीम जो दो दशक तक पार्टी की सेवा कर सकें। यही वजह है कि पार्टी ने फडणवीस जैसे युवा चेहरे और असम के पूर्व सीएम सर्वानंद सोनेवाल को शामिल किया गया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि वो नेता 50-65 वर्ष के बीच के नेताओं पर फोकस रख रहे हैं बजाए 65-80 वर्ष वाले। हमें यह सामान्य बदलाव दिखता है। ये पार्टी के विचारधारा के अनुसार भी है। यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी बढ़ती उम्र के कारण रिटायर होने को कहा गया था। वे युवा नेतृत्व को चुन रहे हैं ताकि भविष्य के लिए बेहतर नेता तैयार किए जा सकें।

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