जन मुद्दे
काले कौवा काले घुघूती माला खा ले…गाकर बच्चों ने मनाया घुघतिया त्यार
राज्य के कुमाउं में मकर सक्रांति पर क्यों मनाया जाता है घुघुतिया त्यौहार
सीएन, नैनीताल। घुघतिया पर्व धूमधाम से मनाया गया। मकर संक्रांति के दूसरे दिन सोमवार की सुबह बच्चों ने परंपरागत तरीके से कौवों को बुलाकर उन्हें विशेष पकवान घुघते, बडे़, पूरी आदि खिलाए। बच्चे सुबह से ही गले में घुघते की माला पहन कर कौवों को बुलाने लगे थे। बीते शनिवार को घरों में घुघुते और अन्य पकवान बनाए गए। सोमवार की सुबह से ही बच्चे आटे और गुड़ से बने घुघुतों की माला गले में पहनकर घरों की छतों तथा आंगन से काले कौवा काले घुघूती माला खा ले ले कौवा पूरी की आवाज देकर कौवों को बुलाने लगे थे। बच्चों ने माला में घुघुते, तलवार, संतरा, पूरी, खजूरे, बड़ा आदि पिरो रखे थे। कौवे के लिए सभी पकवान बनाकर घर के बाहर एक बर्तन में रखे थे बच्चों द्वारा कौवे का आह्वान किया गया तथा फिर कौवे द्वारा यह पकवान खा लिए गए। लोगों ने एक दूसरे को घुघुतिया के हार की शुभकामनाएं दी।
क्यों मनाया जाता है घुघुतिया त्यौहार
उत्तराखंड राज्य के कुमाउं में मकर सक्रांति पर “घुघुतिया” के नाम से त्यौहार मनाया जाता है। यह कुमाऊ का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और यह एक स्थानीय पर्व होने के साथ साथ स्थानीय लोक उत्सव भी है क्योंकि इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन घुघुत बनाया जाता है। घुघुतिया त्यौहार मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा है। यह लोककथा कुछ इस प्रकार है। जब कुमाउं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे, तो उस समय राजा
कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के मरने के बाद राज्य उसे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना करी और कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद को संतान का सुख प्राप्त हो गया, जिसका नाम निर्भय चंद पडा। राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से घुघती के नाम से पुकारा करती थी और अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बांधकर रखती थी। मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओ को दे दूंगी। उसको डराने के लिए रानी काले कौआ काले घुघुती माला खाले बोलकर डराती थी। ऐसा करने से कौऐ आ जाते थे और रानी कौओ को खाने के लिए कुछ दे दिया करती थी। धीरे धीरे निर्भय और कौओ की दोस्ती हो गयी। दूसरी तरफ मंत्री घुघुती (निर्भय) को मार कर राज पाठ हडपने की उम्मीद लगाये रहता था ताकि उसे राजगद्दी प्राप्त हो सके। एक दिन मंत्री ने अपने साथियो के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। घुघुती (निर्भय) जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुप चाप उठा कर ले गया। जब मंत्री घुघुती (निर्भय) को जंगल की ओर ले जा रहा था तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती (निर्भय) को देख लिया और जोर जोर से कॉव-कॉव करने लगा। यह शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकालकर लहराने लगा। उस कौवे ने वह माला घुघुती (निर्भय) से छीन ली। उस कौवे की आवाज़ को सुनकर उसके साथी कौवे भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियो पर नुकली चोंचो से हमला कर दिया। हमले से घायल होकर मंत्री और उसके साथी मौका देख कर जंगल से भाग निकले। राजमहल में सभी घुघुती (निर्भय) की अनूपस्थिति से परेशान थे। तभी एक कौवे ने घुघुती (निर्भय) की मोती की माला रानी के सामने फेक दी। यह देख कर सभी को संदेह हुआ कि कौवे को घुघुती (निर्भय) के बारे में पता है इसलिए सभी कौवे के पीछे जंगल में जा पहुंचे और उन्हें पेड के निचे निर्भय दिखाई दिया। उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गयी। जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा है तो राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौवो को भी बुलाकर खिला दे और यह कथा धीरे धीरे सारे कुमाउं में फैल गयी और इस त्यौहार ने बच्चो के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन मीठे आटे से जिसे “घुघुत” भी कहा जाता है। उसकी माला बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार घुघुतिया त्यौहार की ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते है इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से ही जाना जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने देह त्याग ने के लिए मकर सक्रांति का ही दिन चुना था। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। साथ ही साथ इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है, उत्तर दिशा में देवताओं का वास भी माना जाता है इसलिए इस दिन जप-तप, दान-स्नान, श्राद्ध-तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।