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मार्मिक : विधवा मां को देखते ही सब बंद कर लेते थे खिड़की-दरवाजे, बेटे ने कराई दूसरी शादी
विधवा मां को देखते ही सब बंद कर लेते थे खिड़की-दरवाजे, बेटे ने कराई दूसरी शादी
सीएन, कोल्हापुर। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के एक युवा ने समाज में व्याप्त एक बड़ी कुरीति को हरा दिया. अमूमन माता-पिता अपने बच्चों की शादी कराते हैं लेकिन कोल्हापुर के एक युवक ने अपनी मां की शादी कराकर उनके जीवन में दोबारा खुशियां लाने की कोशिश की. दरअसल युवक के पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद से उसकी मां अकेली हो गई थीं. जब युवराज शेले के पिता की मृत्यु हुई तब उनकी मां की उम्र महज 40 वर्ष थी. पिता की मृत्यु के बाद जहां उनकी मां के जीवन में सूनापन आ गया था वहीं मोहल्ले के लोग भी उनकी मां को नीची नजर से देखने लगे थे. वह समाज के अपमान और अलगाव का शिकार हो गईं. जिसके बाद युवराज शेले ने अपनी मां की दूसरी शादी करवाने की ठानी. कोल्हापुर के छोटे से गांव शिंगणापुर के रहने वाले युवराज शेले के पिता 48 वर्षीय नारायण काम से लौट रहे थे, तभी एक सड़क दुर्घटना में वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे अस्पताल में दो महीने कोमा में रहने के बाद, उनकी मृत्यु हो गई. तब युवराज की उम्र 22 साल की थी. अचानक, कमाऊ सदस्य की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई. जिससे उन्हें पढ़ाई छोड़कर नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन कॉलेज छोड़ने से ज्यादा दुख उन्हें इस बात से हुआ कि पिता की मृत्य के बाद उनकी मां बेहद मायूस रहने लगी थीं. युवराज अपने माता-पिता को एक खुशहाल जोड़े के रूप में याद करते हैं. उन्होंने कहा कि मेरे पिता और मां में एक गहरा बंधन था. रोमांस का उनका विचार एक कप चाय पर एक दूसरे के साथ सब कुछ साझा करने जितना आसान था. शेले ने कहा कि मैं स्पष्ट रूप से देख सकता था कि पिता की मौत के बाद मेरी मां बेहद दुखी थीं. शेले ने बताया कि पिता की मौत के बाद मेरी मां को उनकी चूड़ियां तोड़ने, उनकी चमकीली, रंगीन साड़ियों को सादे, सुस्त साड़ियों से बदलने और उनके सिंदूर को पोंछने के दृश्यों ने मुझे झकझोर कर रख दिया. हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने सभी ग्राम सभाओं से विधवापन से जुड़े कर्मकांडों पर रोक लगाने को कहा है और 7,500 से अधिक गांवों ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. युवराज ने बताया कि उनकी मां रत्ना अगर अपने घर से बाहर कदम भी रखतीं, तो पड़ोसी अपने दरवाजे-खिड़कियां बंद कर लेते. स्कूल जाने वाले बच्चों को शेले हाउस के पास से नहीं जाने को कहा जाता था, कहीं ऐसा न हो कि वे उनका चेहरा देख लें और दुर्भाग्य को आमंत्रित कर लें. युवराज शेले ने कहा, “ये वही लोग थे जिनसे मेरी मां की दोस्ती थी. लेकिन विधवापन ने उनके चारों ओर सब कुछ बदल दिया.”अपने मां की दयनीय हालत देखकर शेले ने उनकी शादी कराने का फैसला किया. उन्होंने अपनी मां की दूसरी शादी करने की संभावना तलाशना शुरू कर दिया. इसके पहले तक शिंगणापुर या आसपास के किसी गांव में विधवा पुनर्विवाह नहीं हुआ था. इस विषय पर शेले ने जब रिश्तेदारों को बताया तो कुछ ने उनका मजाक उड़ाया. तो वहीं दूसरे परेशान हो गए. लोग उनका फोन रख देते या आवेश में आ जाते थे. पुनर्विवाह के विचार से रत्ना स्वयं भयभीत थीं. हर बार जब शेले उनसे बात करते तो उनकी लड़ाई हो जाती. शेले ने बताया, “मुझे याद नहीं कि लड़ाई के बाद मैंने कितनी रातें घर के बाहर सीढ़ियों पर बैठकर बिताई थीं.” रत्ना का तर्क बेहद सरल था कि यह शेले के शादी करने की उम्र थी, उनकी नहीं. लेकिन शेले के संकल्प को तब बल मिला जब एक पड़ोसी, जिनकी पत्नी का देहांत हो गया था, ने कुछ महीनों के भीतर दूसरी शादी कर ली. उन्होंने कहा, “यदि एक विधुर पुनर्विवाह कर सकता है, तो विधवा क्यों नहीं.” महीनों के प्रयास और इमोशनल ब्लैकमेल के बाद, शेले ने रत्ना को पुनर्विवाह के विचार को स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया. शेले के एक रिश्तेदार मारुति वाटकर (45) का कुछ साल पहले अपनी पत्नी से अलगाव हो गया था. वह उन कुछ रिश्तेदारों में से एक थे जो रत्ना और शेले दोनों के सपोर्टर थे. शेले ने बताया, “उन्होंने हमारे कठिन समय के दौरान हमारा समर्थन किया. वह एक सभ्य इंसान हैं और मुझे लगा कि वह मेरी मां को खुश रखेंगे.” शेले वाटकर के बारे में अपनी मां और उऩकी बहनों को समझाने में सफल रहे. पुनर्विवाह के विचार के बारे में शुरू में संदेह करने वाली मौसियों ने अब पूरी तरह से इसे स्वीकार कर लिया. इसमें उन्हें एक महीने से अधिक का समय लगा, लेकिन उन्होंने आखिरकार रत्ना से ‘हामी’ भरवा ली. शेले ने तब वाटकर से संपर्क किया. यहां से चीजें तेजी से आगे बढ़ीं. जैसे ही वाटकर ने अपने परिवार से बात की, यह बात गांव में फैल गई. हैरानी की बात है कि चारों तरफ प्रतिक्रियाएं सकारात्मक थीं. अंतिम चरण रत्ना और वाटकर के बीच एक बैठक थी, जो सफल रही. जिसके बाद 12 जनवरी को शादी के सादे समारोह का आयोजन हुआ. दोपहर में हल्दी की रस्म हुई और शाम को शादी हुई. शादी में पड़ोसी, रत्ना की ओर से रिश्तेदार और शेले के दोस्त मौजूद थे. सभी ने पूरे मन से भाग लिया. शेले ने कहा कि यह अजीब था, लेकिन उनके जाने के बाद पहली बार मैंने अपने पिता की उपस्थिति को भी महसूस किया.