जन मुद्दे
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस : बेटी कुदरत का उपहार, नहीं करो उसका तिरस्कार
सीएन, नईदिल्ली। भारत में 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2008 में हुई थी। इसकी शुरुआत महिला और बाल विकास मंत्रालय ने की थी। कहा जाता है इस दिन को मनाने का उद्देश्य देश में बालिकाओं के साथ होने वाले भेदभाव के प्रति लोगों को जागरुक करना है। साल 2008 से इस दिन को पूरे देश में मनाया जाता है। वैसे इस दिन देशभर में बालिका बचाओं अभियान चलाया जाता है। इसके अलावा लड़कियों को उनके अधिकार दिलवाने के लिए भी अभियान चलाये जाते हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से साल 2015 में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की शुरुआत हुई थी। दरअसल सरकार का ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान काफी सफल रहा है। इस अभियान के जरिये भी लड़कियों और महिलाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया जाता रहा है। आज के समय में महिलाओं के प्रति होने वाली कई अमानवीय प्रथाओं, जैसे- भ्रूण हत्या के मामलों में कमी आई है। ऐसे अभियान लोगों की मानसिकता को बदलते हैं और आज राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का भी आधार यही है। लड़कियों की सुरक्षा, शिक्षा, लिंग अनुपात, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर आज के दिन ही नहीं बल्कि हर दिन लोगों को विचार करना चाहिए। लड़कियों को भी समान अधिकार दिए जाने चाहिए। उन्हें वह सब करने की आजादी होना चाहिए जो किसी अन्य को मिलती है। आज के दिन सभी को केवल राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई ही नहीं देनी चाहिये बल्कि सभी को यह शपथ भी लेनी चाहिए कि हम लड़कियों का सम्मान करेंगे और हर क्षेत्र में उनको बढ़ावा देंगे। आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरीतियों का शिकार हैं। ये कुरीतियों उसके आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हज़ारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (क़रीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियाँ 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (क़रीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले माँ बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज़्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं। कन्या भ्रूण हत्या की वजह से लड़कियों के अनुपात में काफ़ी कमी आयी है। पूरे देश में लिंगानुपात 933:1000 है। 1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक, हिन्दू और मुसलमानों दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है। 2001 की जनगणना का यह तथ्य सबसे ज़्यादा हैरान करता है कि 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है। यहाँ कुल लिंग अनुपात में 8 के अंतर के मुक़ाबले बच्चों के लिंग अनुपात में अब 24 का अंतर दर्ज है। यह उनके स्वास्थ्य और जीवन-स्तर में गिरावट का अनुपात भी है। यह अंतर भयावह भविष्य की ओर भी इशारा करता है। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। गौरतलब है कि ‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रंस राइट्स’ यानी एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज़्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज़्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी आँकड़ों में दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की जहाँ 25 प्रतिशत लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है, वहीं 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत (ठीक दोगुनी) से भी ज़्यादा लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है। 2008 के एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं। लोगों को इसके दुष्परिणामों के प्रति आगाह करने और लड़कियों को बचाने के लिए 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। बालिकाओं की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीज़ों पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीज़ों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए। किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने ‘समग्र बाल विकास सेवा’, ‘धनलक्ष्मी’ जैसी योजनाएँ चलाई हैं। हाल ही में लागू हुई ‘सबला योजना’ किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों, ख़ासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।