जन मुद्दे
कौन हैं एडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरी? हाई कोर्ट का जज बनाने पर क्यों हुआ विवाद
कौन हैं एडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरी? हाई कोर्ट का जज बनाने पर क्यों हुआ विवाद
सीएन, नईदिल्ली। एडवोकेट एल सी विक्टोरिया की नियुक्ति को चुनौती दी गई है, लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है कि नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद मामला कोर्ट के सामने उठाया गया हो। 30 साल पहले एक ऐसा मामला हो चुका है जिसमें हाई कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया गया था कि एडवोकेट केएन श्रीवास्तव के खिलाफ करप्शन का आरोप है। एडवोकेट एल सी विक्टोरिया की नियुक्ति को लेकर हलचल मची है। सुनने में कुछ अजीब लग रहा है कि जिस जज की नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी हो चुका है उसके खिलाफ आरोपों की झड़ी लग गई है। सोशल मीडिया पर बहस जारी है कि नियुक्ति बचेगी या रद्द होगी। पर ऐसी घटना भारत के न्यायिक इतिहास में कोई पहली बार नहीं हुई है। इसके पहले भी एक ऐसा हुआ है कि नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद मामला कोर्ट में पहुंच गया था। एलसी विक्टोरिया जैसा ही एक ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आ चुका है। जिसमें हाई कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी थी। एडवोकेट केएन श्रीवास्तव की नियुक्ति का मामला था। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर आरोप लगाया गया था कि एडवोकेट केएन श्रीवास्तव के खिलाफ करप्शन के कई आरोप हैं। हाई कोर्ट के जज के तौर पर काम करने के लिए वह पात्रता नहीं रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तर्कों को सुनने के बाद श्रीवास्तव की नियुक्ति को खारिज कर दिया था। जाहिर है कि कुछ इसी तरह का मामला एडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरी का भी है। हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। कुछ लोगों ने अर्जी दाखिल कर विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में मामला उठाते हुए एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने 1992 के केस का हवाला दिया और कहा कि पहले ऐसा हो चुका है। तब 1992 में कुमार पद्म प्रसाद बनाम केंद्र सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति के आदेश के बाद नियुक्ति रद्द कर दी थी। राजू रामचंद्रन ने एडवोकेट गौरी पर सबसे बड़ा आरोप लगाया है कि उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक बयान (हेट स्पीच) दिए हैं। दरअसल1992 का पद्म प्रसाद केस में ही केएन श्रीवास्तव को गुवाहाटी हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्ति के आदेश को चुनौती दी गई थी। तब उन पर करप्शन का आरोप लगाया गया था और कहा गया था कि एडवोकेट के तौर पर उन्होंने प्रैक्टिस भी नहीं की है। बाद में नियुक्ति आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और शपथ पर रोक लगा दी थी। गौरी की नियुक्ति के खिलाफ आवाज उठाने वाले वकीलों का कहना है कि अल्पसंख्यक के खिलाफ बयान देने के कारण उन पर देश के सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती। एडवोकेट एलसी विक्टोरिया गौरी मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल के पद पर कार्यरत हैं और वह हाई कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखती हैं।